सर्वश्रेष्ठ काम छोड़ना चाहता था. मगर उसके पिता नहीं चाहते थे कि उनका बेटा एक बड़ी नामचीन बहुराष्ट्रीय कंपनी की नौकरी छोड़े. पिता ने बेटे को समझाया कि ‘‘लगे रहो, क्योंकि किसी भी ऊंचे तनाव के नये-नये जॉब में ऐसे कठिन वक्त स्वाभाविक ही होते हैं. तुम्हारे सभी साथी तुम्हारी ही उम्र के युवा और महत्वाकांक्षी हैं, लगे रहो,’’ फोन पर उसने अपने पिता को बताया भी था कि काम के दबाव की वजह से वह लगातार दो दिनों तक नहीं सो पाया है.
अगले दिन वह इस दुनिया में नहीं रहा. आज पढ़िए आखिरी कड़ी.
हमारा दिन चार मील दूर जिम तक साइक्लिंग करते हुए जाने से शुरू होता. साइक्लिंग में हममें से जो भी आगे होता, अगर वह पीछे मुड़कर दूसरे को देखने की कोशिश करता, तो पीछेवाला बोलता, ‘‘मैं ठीक हूं, पीछे देखने की जरूरत नहीं है, साइकिल असंतुलित हो सकती है.’’ जिम में हम साथ-साथ कसरतें करते, मैं एक उत्साही शिक्षक की भूमिका में होता और वह एक उत्सुक शिक्षार्थी की.
उसने यह जान और समझ लिया था कि अच्छा स्वास्थ्य अपने कार्यस्थल पर कड़ी मेहनत करने की पहली सीढ़ी है. वह सतर्क स्वभाव का था और इस नाते उसने हरएक व्यायाम को सूक्ष्मता से सीखा. शामों में जब सूरज अभी भी चमक ही रहा होता, तो हम साइक्लिंग के लिए निकलते. हम प्लेजेंटन बार्ट स्टेशन तक जाते, अपनी साइकिलों के साथ एलिवेटर से ऊपर जाकर ओविरब्रिज पार करते और डब्लिन शहर के केंद्र में पहुंच जाते. हम घंटों तक साइक्लिंग करते रहते और पहाड़ों की बगल से होकर गुजरता हुआ बाइक ट्रैक हमारा पसंदीदा मार्ग हुआ करता.
यह साथ, यह आनंद और मजा अवर्णनीय था. मैं और मेरा बेटा एकसाथ साइक्लिंग करते, प्रकृति की सराहना करते और ताजा शुद्ध हवा में सांसें लेते. कभी-कभी हम कुछ पेय लेने के लिए किसी स्टारबक्स पर रु कते. डब्लिन सेफवे का फ्रूट योगट हमारी अगली पसंदीदा चीज थी. जीवन आगे बढ़ रहा था, जीवन ऊंचा उड़ रहा था, इससे बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता था.
मगर क्या इससे बुरी भी कोई चीज हो सकती थी?
शाम में शतरंज की हमारी बिसात बिछा करती. उसने इस खेल में अपने जीजा की भी दिलचस्पी जगा दी थी. सो, अब हम तीन थे और जीतनेवाला बारी-बारी से खेल जारी रखता. जैसे-जैसे मेरी बेटी के प्रसव का दिन निकट आता गया, हम बाहर कम जाया करते और घर में ही शतरंज पर जमे रहते.
दिन में मेरा बेटा और मैं निकट के स्टोनब्रिज मॉल तक टहलते हुए चला जाता, हम छोटी-मोटी चीजें खाते, कुछ खरीदा करते अथवा बस यों ही लॉबी में बैठ एक दूसरे की मौजूदगी का अहसास किया करते.
अंतत:, भगवान ने मुङो एक अन्य उपहार दिया. हमारे घर एक स्वस्थ सुंदर नातिन ने जन्म लिया. जीवन बस पूर्णता की ओर बढ़ रहा था. चारों ओर खुशियां लबालब थीं. मेरा बेटा मामा बनकर फूला न समाता था. पूरा घर बस उस बच्ची के इर्दगिर्द घूमने लगा. वह आकर्षण का केंद्र और सबकी आंखों का तारा बन बैठी.
मेरी छुट्टियां खत्म हुईं. मुङो भारत में अपने काम पर लौटना था. मेरा बेटा हवाई-अड्डे पर मुङो विदा देने पहुंचा. हम एक दूसरे के गले लगे, उसने महान भारतीय परंपरा के अनुरूप मेरे पांव छूए और मैं अपनी उड़ान पर सवार हो गया.
अंतिम विदाई
सितंबर 2014, प्लेजेंटन, अमेरिका
मैं एक बार फिर अपने परिवार के साथ होने के लिए अमेरिका आया. मेरा प्यारा पुत्र अब गोल्डमैन सैक्स का एक गौरवान्वित सदस्य था. मैं तुरंत ही उससे मिलने सैनफ्रांसिस्को उड चला. मुङो बिलकुल साफ-साफ याद है कि वह अपने शानदार ऑफिस के बाहर मुझसे मिलने मेरी ओर बढ़ा आ रहा था. जब वह निकट आया, तो मेरे दिल में भावनाओं का जो ज्वार उठ रहा था, उसे व्यक्त करना कठिन है.
मैंने उसे कसकर चिपटा लिया और कुछ मिनटों तक उसे उसी तरह पकड़े रखा, उसने मेरे पांव छूए और हमारे आंसू बह चले. मैं क्या करूं कि वह पल मेरे इस जीवन में दोबारा आ जाए? जीवन क्यों ऐसे कीमती और यादगार पल दिया करता है, जिन्हें आप अपने दिल में भी जोगाए नहीं रह सकते? यह अनुचित है, अन्यायपूर्ण है और अथाह है.
हम दोनों कॉफी तथा पिज्जा के लिए गये. मुङो उससे बहुत कुछ सुनना था. उसके अनुभव, उसके सहकर्मी, उसकी अनुभूतियां और जॉब की संतुष्टि. यह स्पष्ट था कि वह खुश और उत्साहित था. अत्यंत गहन बातचीत के दौरान हम गार्लिक-ब्रेड को पिज्जा समझकर खाते रहे. जब वेटर एक भरापूरा पिज्जा लेकर पहुंचा, तो हम अपनी मूर्खता पर जी खोलकर हंसे थे.
बहुत मजा आया. खाने के बाद मेरे पुत्र ने बिल के भुगतान की अनुमति मांगी. मेरा सीना गर्व से फूल गया. भावनाओं पर काबू रख पाना कठिन था. आंखें प्यार, गर्व और खुशी से भींगी थीं. अब चूंकि वह काम कर रहा था, सो, वह केवल सप्ताहांत में ही प्लेजेंटन आ सकता था. वह जब भी वहां आता, तो थका और उनींदा होता. ‘‘पापा, मैं पूरी नींद नहीं ले पाता हूं.
मैं लगातार बीस घंटे काम करता रहता हूं.’’ कुछ सप्ताहांतों में भी वह काम ही करता रहता. मैंने विरोध किया, ‘‘बेटे, इस तरह तो तुम अपना स्वास्थ्य बरबाद कर लोगे.’’ वह जवाब देता, ‘‘चिल ए पापा, मैं युवा और ताकतवर हूं. इन्वेस्टमेंट बैंकिंग में कड़ी मेहनत करनी ही होती है.’’ अब इसके आगे मैं और कुछ नहीं कह सकता था, पर स्पष्टत: मेरी पत्नी और मैं इस चीज से खुश नहीं था.
पतझड़ का मौसम गरमियों जैसा अच्छा नहीं होने जा रहा था. उसके पास समय की और भी कमी हो गयी, वह शारीरिक और मानसिक रूप से थक गया और सबसे बढ़कर उसे नींद की कमी हो गयी.
फिर भी हमने अपने पास उपलब्ध समय का सबसे अच्छा इस्तेमाल किया. हम सैर करने गये, थोडी साइक्लिंग भी की और कभी-कभी जिम भी गये. मेरे अंतिम दिन वह मुझसे मिलने नहीं आ सका, क्योंकि वह व्यस्त था. इसलिए मैं सैनफ्रांसिस्को चला गया. हमने कॉफी पी और भरे दिल से विदा ली. मुङो अभी भी याद है कि बार्ट स्टेशन में मेरे नीचे उतरते वक्त वह हाथ हिलाता रहा. मेरे जेहन में बसी एक तसवीर.. बस यही एक चीज मेरे पास बची है.
अब कुछ भी मुङो शांति नहीं दे सकता, कोई भी मेरे आह्लाद के वे पल मुङो वापस नहीं कर सकता, कहीं भी मुङो सुकून नहीं मिल सकता, फिर कभी मैं उत्साहित नहीं रह सकता. क्या इस दुनिया में वस्तुत: कोई अंतर्निहित व्यवस्था है? यह निश्चित है कि ऐसा जरूर है.
यदि ऐसा न हो, तो फिर हम दिन और रात की, मौसम में बदलाव की और प्राणियों के बड़े होने की व्याख्या किस तरह कर सकते हैं? पर यह व्यवस्था तब कहां चली जाती है, जब प्रकृति को इस पृथ्वी पर जीवन का संतुलन बनाए रखने का खेल खेलना होता है? क्या कभी सरदी के पहले वसंत और पतझड़ के बाद ग्रीष्म आ सकता है? तो फिर उम्र की व्यवस्था में व्यतिक्र म क्यों? क्यों वह परमशक्ति इतनी झक्की है? क्यों इतनी बेदिल है? क्यों इतनी अविवेकी है?
मुङो मालूम है कि कोई भी कभी मेरे इन प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकता.
अंत की शुरुआत
वसंत, 2015 , सैनफ्रांसिस्को
नया साल सादगी और शांति से शुरू हो गया. इसने ऐसा कोई भी संकेत नहीं दिया कि यह अपने गर्भ में एक कयामत, एक प्रलय छिपा रखा था, जिसकी संभावना पर कोई भी मातापिता अपने जीवनकाल में गौर नहीं कर सकता.
मेरी नातिन भलीभांति बढ़ रही थी, मेरी बेटी अपने जॉब में ठीक थी और उसके पति की कंपनी भी अच्छा कर रही थी. राजस्थान के बीकानेर में हमारा स्कूल भी अपनी स्थिति सुदृढ़ करता जा रहा था.
मेरे दिल की धड़कन, मेरा बेटा, अपने जॉब में अच्छी तरह जम रहा था. उसके फोनकॉल की संख्या कम हो गयी थी, क्योंकि वह अत्यंत व्यस्त हो चला था, पर उसके मेल और मेसेज ने लाइफलाइन चालू रखा था. जनवरी के मध्य से उसने शिकायत करनी शुरू की, ‘‘यह जॉब मेरे लिए नहीं है. बहुत ज्यादा काम और बहुत कम समय. मैं घर वापस आना चाहता हूं.’’ जैसा कि शायद कोई भी माता-पिता करेगा, हमने उसे समझाया कि लगे रहो, क्योंकि किसी भी ऊंचे तनाव के नये-नये जॉब में ऐसे कठिन वक्त स्वाभाविक ही होते हैं.
‘‘सोनी, तुम्हारे सभी साथी तुम्हारी ही उम्र के युवा और महत्वाकांक्षी हैं, लगे रहो,’’ मैं उससे कहा करता. धीरे-धीरे अपने जॉब से उसकी शिकायतें, उसकी असहजता की तीव्रता तथा शिकायतों की संख्या बढ़ती ही चली गयी. हमारे मेल, हमारे मेसेज, हमारे फोनकॉल उससे सहानुभूति प्रकट करते रहे, मगर हमने उसे जॉब छोड़ देने की खुली छूट नहीं दी, जैसा शायद वह चाहता था.
मार्च 2015 के तीसरे सप्ताह में बगैर हमसे मशविरा किये उसने अपना त्यागपत्र दे दिया और तब हमें फोन किया. उससे मेरा पहला वाक्य था, ‘‘सोनी, मैं नहीं चाहता था कि तुम जॉब छोड़ दो, पर अब जब तुम उसे छोड़ ही चुके हो, तो हम तुम्हारे साथ हैं. घर वापस आ जाओ.’’ वह उदास और असहज लगा.
‘‘पापा, छोड़ने में कुछ वक्त लग जाएगा. कुछ दिनों में मेरा एचआर बंद हो जाएगा.’’ मैंने पूछा, ‘‘अब तुम क्या करना चाहते हो?’’ ‘‘पहले खुद को तरोताजा करूंगा, घर में बना खाना खाऊंगा, सैर करूंगा, जिम जाऊंगा और अंत में अपने स्कूल में काम कर उसका विस्तार करूंगा,’’ उसने जवाब दिया. यह एक ऐसी चीज थी, जिसे मैं नहीं चाहता था कि वह अपने करियर के इस चरण में करे. मैं चाहता कि वह गोल्डमैन सैक्स में अपना एक साल पूरा कर ले, कॉरपोरेट जीवन के बारे में कुछ जान ले और तब कोई फैसला करे.’’
होनी हमारे परिवार के लिए अपनी घड़ी तय कर रही थी. हमें क्या पता था कि एक सुनामी हम पर प्रहार करने जा रही है, जो हमारे जीवन का कुछ इस तरह मूलोच्छेद कर देगी कि दोबारा फिर कभी उसकी जड़ नहीं जमेगी. भाग्य की विडंबना से उसे अपने त्यागपत्र पर पुनर्विचार करने को कहा गया और मेरे दबाव देने पर उसने उसे फिर से ज्वाइन कर लिया.
अब देखिए कि उसी व्यक्ति ने, जिसने उसका पालन-पोषण किया था, उसे सांचे में ढाला था, जो उसे अपना मानता था, उसके लिए यह घातक निर्णय ले लिया. मैंने क्यों उसे वहां काम करना जारी रखने को कहा? यदि उसकी कंपनी उसे अपने निर्णय पर पुनिर्वचार करने का मौका न देती, तो क्या हुआ होता? ये पीड़ाजनक प्रश्न हमेशा अनुत्तरित ही रहेंगे. इस ब्रह्मांड में कोई ऐसी शक्ति नहीं, जो उस त्रसदी को अनकिया कर सके, जिसने हम पर प्रहार किया.
बेचारा बेटा, उसने वह जॉब फिर ज्वाइन कर लिया और एक बार फिर जी-जान से यह कोशिश की कि उस कड़े और लगातार जारी रहनेवाले एक ऐसे काम से वह अपना तालमेल बिठा सके, जहां कोई फुरसत न थी, नींद न थी, अवकाश न था.
16 अप्रैल, 2015, भारतीय समयानुसार दोपहर बाद 3.10 यानी कैलिफोर्निया के समयानुसार रात के 12.30 बजे. वह हमें फोन कर कहता है ‘‘पापा, अब हद हो गयी. मैं दो दिनों से सो नहीं सका हूं, कल सुबह एक क्लायंट मीटिंग है, जिसके लिए मुङो एक प्रेजेंटेशन पूरा करना है, मेरे वाइस प्रेसिडेंट नाराज हैं और मैं अपने ऑफिस में अकेला बैठा काम कर रहा हूं.’’ मैं आपे से बाहर हो उठा. ‘‘तुम पंद्रह दिनों की छुट्टी ले लो और घर आ जाओ,’’ मैंने कहा. उसने जवाब दिया, ‘‘वे इसे मंजूर नहीं करेंगे.’’
मैंने कहा, ‘‘तो फिर उन्हें कहो कि वे इसे तुम्हारा त्यागपत्र समझ लें.’’ अंतत:, वह इस पर सहमत हुआ कि वह एक घंटे में अपना काम खत्म कर अपने अपार्टमेंट चला जायेगा, जो उसके ऑफिस से आधे मील की दूरी पर था और फिर सुबह में ऑफिस लौटेगा.
वह सुबह हमारे जीवन में नहीं आई, मेरा सोनी बेटा कभी अपने अपार्टमेंट नहीं पहुंच सका. एक राक्षस, एक शैतान ने अपनी किसी बड़ी मोटरगाड़ी से कुचलकर उसके प्राण ले लिए. मेरा बेटा, जिसकी अस्थियां, रक्त, मांस मेरे खुदके ही थे, किसी व्यक्ति की क्रूर और क्षणिक भूल का शिकार बन गया, उसका जो स्वयं भी किसी का पुत्र ही है. हो सकता है, सैनफ्रांसिस्को पुलिस अंतत: उसकी पहचान कर ले, कानून उसे कठोर से कठोर सजा दे ले, पर मुङो मेरा बेटा कौन वापस दे सकता है?
अब तो मैं, मेरी पत्नी, मेरी बेटी, मेरे दामाद सभी जीवित लाश की तरह हैं. उसका प्यार, उसकी जिंदादिली, उसका साथ, अब ये सब किसी सुदूर अतीत में स्थित हैं, जो कभी वापस नहीं आएंगे. अब कौन मेरे साथ शतरंज खेलेगा? कौन मेरे साथ साइक्लिंग के लिए जायेगा, जिम जायेगा?
कौन-सी चीज मुङो यह आत्मविश्वास दिलायेगी कि इस पृथ्वी पर मेरे पास एक ऊंची शिक्षा प्राप्त और सक्षम बेटा मौजूद है? कौन मेरी पत्नी को एक पुत्र की ऊष्मा दिया करेगा? अब वह किसके लिए व्यंजन बनायेगी? किसके लिए एक दुल्हन पसंद करेगी? अब किसमें मेरी बेटी एक साथी, एक मित्र, एक सहारा पायेगी? उसने मेरी बेटी को यह वचन दिया था कि दो वर्षों में वह उन सबको डिज्नीलैंड ले जायेगा. और अब?
हर कोई हमसे यह कहता है कि ईश्वर में आस्था रखिए, मजबूत बनिए, समय सारे घाव भर देगा.
वे यह नहीं समझते, समझ सकते भी नहीं, कि हमने कोई आत्मा नहीं खोयी है, बल्कि एक जिंदा चीज खो दी है, जिसकी भौतिक मौजूदगी की हमें हर पल जरूरत है. मेरी पत्नी अपने इस यकीन में पूरी तरह निश्चित और अडिग है कि हमारा बेटा हमारे परिवार में लौट आयेगा. अगले साल की शुरूआत में, वह कहती है, प्रकृति का चक्र एक बार फिर हमारे पक्ष में घूमेगा.
इसलिए मेरे बेटे, कुछ वक्त के लिए तुम मेरे बगैर अपनी सैर जारी रखो, क्योंकि मैं तुम्हारे युवा और शक्तिशाली पैरों का साथ नहीं दे सकता. मैं तुम्हारी वापसी का इंतजार कर रहा हूं, ताकि तुम मुझसे फिर चिपट सको, मेरे लिए कुछ-कुछ खरीद सको और हम एक बार फिर शतरंज की बिसात बिछा सकें.
अगली गरमी हमारी होगी. कुदरत फिर हमारा साथ देगी.
(समाप्त)
अनुवाद : विजय नंदन