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मेरे अनुभवों का विस्तार हैं मेरे चित्र

पेशे से फ्रेंच भाषा की प्राध्यापक रह चुकीं ज्योति नागपाल के भीतर बचपन में पड़ा कला का बीज आज एक खूबसूरत दरख्त बन कर उनकी पहचान से जुड़ गया है. उनके चित्र मनुष्य को प्रकृति से जोड़ते हैं. चित्रकार ज्योति नागपाल से प्रीति सिंह परिहार की बातचीत.. चित्रकला की तरफ रुझान कब और कैसे हुआ?बचपन […]

पेशे से फ्रेंच भाषा की प्राध्यापक रह चुकीं ज्योति नागपाल के भीतर बचपन में पड़ा कला का बीज आज एक खूबसूरत दरख्त बन कर उनकी पहचान से जुड़ गया है. उनके चित्र मनुष्य को प्रकृति से जोड़ते हैं. चित्रकार ज्योति नागपाल से प्रीति सिंह परिहार की बातचीत..

चित्रकला की तरफ रुझान कब और कैसे हुआ?
बचपन से मेरा इस ओर रुझान रहा है. स्कूल में जब बच्चे खेलते थे, मैं क्लास में बैठ कर पेंसिल से कुछ न कुछ बनाती रहती थी. हां, सबकुछ छोड़ कर सिर्फ और सिर्फ इसके साथ जीना मैंने बहुत बाद में शुरू किया. मैं पेंटिंग करती थी, लेकिन इसे अपनी पहचान के साथ जोड़ने की तरफ मैंने कभी ध्यान नहीं दिया. मैं पंजाब विश्वविद्यालय में फ्रेंच पढ़ाती थी. इसके बाद कश्मीर विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगी. फिर यूएसए चली गयी. इस दौरान पेंटिंग तो बनाती रही, लेकिन मेरे चित्रों की पहली एग्जीविशन 1993 में लगी आइफेक्स गैलरी में. मेरे काम को लोगों ने पसंद किया. इस बीच मैं परिवार के साथ लंबे समय तक मिडिल ईस्ट में थी. वहां मेरी कई सोलो एग्जीविशंस हुईं. तब से मैं पूरी तरह चित्रकला की ही हो गयी.

आपके चित्रों में प्रकृति गहरे प्रभाव के साथ उभर कर आती है. इस जुड़ाव की खास वजह?
कोई भी कला महज कल्पना नहीं होती. वह अनुभवों से आकार लेती है. मैं लंबे समय तक कश्मीर में रही हूं, जिसे धरती का स्वर्ग कहा जाता है. वहां की स्वाभाविक सुंदरता को न सिर्फ मैंने नजदीक से देखा,गहराई से महसूस भी किया. मैं यूरोप में प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर जगहों में रही हूं. कला का संबंध मुनष्य के स्वभाव से भी होता है. मुङो प्रकृति हमेशा से आकर्षित करती रही है. मैंने घंटों पेड़ों के बीच खामोश वक्त बिताया है. पेड़ों, फूल-पत्तियों के रंगों को धूप और छाया में देर तक देखा है. इसलिए भी शायद मेरे चित्रों में प्रकृति बार-बार आती है. आज जब शहरों का विस्तार हमसे यह सुख छीन रहा है, मुङो लगता है कि मैं अपने चित्रों से ही सही लोगों को प्रकृति की तरफ लेकर जाऊं.

हाल ही में लगी आपके चित्रों की प्रदर्शनी की थीम थी ‘लाइफ ऑफ सेलीब्रेशन’. इसके बारे में बताएं ?
प्रकृति का संबंध ऋतुओं से है. गर्मियां आती हैं, उसके बाद बारिश, फिर शरद, हेमंत, शिशिर और बसंत. ऋतुओं के साथ प्रकृति का रंग बदलता जाता है. महानगर में रहनेवाले लोगों की जिंदगी में ऋतुओं का यह रंग नहीं है. मैंने उन तक उन रंगों को पहुंचाने की कोशिश की है. यह चीज जिंदगी से भी जुड़ी है. मनुष्य का जीवन भी बचपन, किशोरावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और बुढ़ापे में बंटा हुआ है. यह जीवन की ऋतुएं हैं. हर ऋतु को जिंदगी सेलीबेट्र करती है. मैंने अपने चित्रों में इस सेलीब्रेशन को अभिव्यक्त किया है.

आप अपनी कलाशैली को किस तरह बयान करेंगी?
कई लोग इसे ‘रियलिस्टिक’ का नाम देते हैं, पर मैं नहीं समझती हूं कि यह रियलिस्टिक है. यह ज्यादा इंप्रेशनिस्ट है. मेरे चित्रों में चीजें डीटेले में नहीं हैं. उनका इंप्रेशन है. अगर मैं देवदार के पेड़ बना रही हूं तो हर पत्ते का डीटेल नहीं है, सिर्फ एक इंप्रेशन है.

कोई चित्र कैनवास पर उतरने से पहले ही दिमाग में बन जाता है या कूची अपने आप एक आकार बनाती जाती है?

कुछ तो दिमाग में होता है. कोई जगह, कोई दृश्य, कोई विचार. आप उसके बारे में सोचते हैं. जब आप पेंट करना शुरू करते हैं, तो जरूरी नहीं कि जो सोचा है वही बन कर आयेगा. कुछ नयी चीजें बनाते हुए जुड़ जाती हैं.

चित्रकला का समाज से क्या रिश्ता है?
कोई भी कला समाज से अलग नहीं होती. प्रकृति और स्त्री, दोनों के साथ जो हो रहा है, उसे मेरे चित्रों में देख सकते हैं.

कहा जाता है कि चित्रकला अनंत से अंतर (अंदर) की यात्र का परिणाम है. आपके लिए यह क्या है?
मेरे लिए चित्रकला अभिव्यक्ति है. अपने अनुभवों और विचारों को साझा करने का माध्यम है. हैप्पीनेस है. आप एक अनुभव को अपनी कला में रीक्रिएट करते हैं. आपने जो महसूस किया, वह दूसरों तक पहुंचता है. मैं प्रकृति के साथ बहुत गहराई से जुड़ी हुई हूं, इसलिए मुङो लगता है कि पर्यावरण को जो क्षति पहुंचाई जा रही है, उसे अपनी कला के माध्यम से बचाऊं.

एक चित्रकार के तौर आप किससे सबसे अधिक प्रभावित रही हैं?
मैंने फ्रेंच साहित्य पढ़ा है. फ्रेंच इंप्रेशनिस्ट आर्टिस्ट का मुझ पर बहुत प्रभाव रहा है. मोनेट, रेनॉयर, देगास ने मुङो प्रभावित किया. ये सभी नेचर आर्टिस्ट थे. एमएफ हुसैन की कुछ सीरीज मुङो प्रभावित करती रही हैं.

आपकी ज्यादातर चित्र प्रदर्शनियां मिडिल ईस्ट में लगीं. क्या भारत में इस कला को जितनी अहमियत मिलनी चाहिए, नहीं मिल रही है?
यहां पहचान बनाने के लिए संघर्ष तो करना ही पड़ता है. बहुत तरह की कलाएं हैं यहां. यह अच्छी बात भी है कि हमारे यहां सब तरह का आर्ट मौजूद है. सब अपनी-अपनी रुचि के मुताबिक काम कर रहे हैं. लेकिन अपने जॉनर में अपनी पहचान बनाने के लिए हार्डवर्क और किस्मत दोनों, अपनी तरह से काम करते हैं. पर अब कला को बहुत अहमियत भी मिल रही है. पेंटिंग्स खरीदनेवाले बेशक कम हैं, लेकिन लोग इसे देखने, इस पर बात करने में रुचि लेने लगे हैं.

एक चित्रकार के तौर पर आपकी दिनचर्या क्या होती है ?
मेरा ज्यादातर समय चित्र बनाते हुए ही बीतता है. सुबह घर का काम खत्म करके दोपहर 2 बजे से शाम 8 या 9 बजे तक का पूरा समय मैं रंगों के साथ कैनवास के पास होती हूं. हां, एक महिला को टाइम मैनेज करना पड़ता है, क्योंकि उस पर कई तरह की जिम्मेवारियां होती हैं.

चित्रकला से इतर और क्या पसंद है आपको ?

संगीत. मैंने शास्त्रीय संगीत सीखा है कॉलेज के दिनों में. खाली वक्त में अपने लिए गा लेती हूं. यात्रओं का भी मुङो शौक है. जब समय मिलता

है, तो गुलाम अली और जगजीत सिंह को सुनती हूं.

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