दक्षा वैदकर
ऑफिस में घंटों साथ काम करने के बाद वहां के सदस्य भी एक परिवार की तरह ही हो जाते हैं. सभी हंसी-मजाक करते हैं. लंच करते हैं. चाय पीने जाते हैं, लेकिन इस सब के बावजूद हमें यह याद रखना होगा कि यह सच में परिवार नहीं है. यहां हमें हर चीज का हिसाब बराबर रख कर चलना चाहिए. उदाहरण के तौर पर घर में मां या पत्नी अपने हिस्से का खाना रोज अपने बच्चों या पति को खिला सकती हैं, लेकिन ऑफिस में यह नहीं चल सकता. घर में एक भाई अगर कमा नहीं रहा है, तो दूसरा उसका पूरा खर्च उठा सकता है, लेकिन ऑफिस के सहकर्मी के साथ आप ऐसा नहीं कर सकते. इसलिए हमें प्रोफेशनल लाइफ में हिसाब बराबर रखना चाहिए, वरना यहां के रिश्तों में भी खटास घुलती जाती है.
यह बातें इसलिए, क्योंकि सभी ऑफिस में ऐसे लोग जरूर होते हैं, जो खुद कभी लंच नहीं लाते, लेकिन सामनेवाले का टिफिन खुलते ही बिना आमंत्रण के उसका पूरा खाना खा लेते हैं. वे चाय पीने साथियों के साथ जाते हैं, लेकिन जब पेमेंट देने की बात आती है, तो बच कर निकल जाते हैं. बहाना करते हैं.
समझने वाली बात है, यदि एक-दो बार आप टिफिन लाना भूल गये या मजबूरी वश नहीं ला पाये, तो दूसरे के टिफिन से शेयर करना ठीक है. लेकिन अगर आप रोज ही ऐसा करते हैं, तो एक न एक दिन सामनेवाले को यह बात जरूर खटकेगी. यदि आपकी मजबूरी है कि आप टिफिन नहीं ला सकते और आपको साथियों के साथ बैठ कर ही लंच करना है, तो बेहतर है कि खाने के रूप में न सही, दूसरे रूप में उस साथी को कुछ दें. ताकि उन्हें लगे कि आप भी उन पर उतना ही खर्च कर रहे हैं, जितना कि वे आप पर.
हमें यह समझना होगा कि सामनेवाले को उसकी मां या पत्नी ने लंच दिया है, ताकि वह पेट भर खा सके. यदि हम उसके हिस्से का भोजन कम कर रहे हैं, तो बदले में हमें कभी-कभी खुद भी कुछ खिलाना चाहिए. यही प्रोफेशनल तरीका है. हिसाब रखना जरूरी है, क्योंकि पैसे पेड़ पर नहीं उगते. सभी को रुपये बचाना है.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
बात पते की..
हमेशा रुपये बचाने की कोशिश में दूसरों का खर्च करायेंगे, तो सारे दोस्त आपको देख दूर भागने लगेंगे. कंजूसों का साथ कोई नहीं चाहता.
चाय पीने जायें या साथ लंच करने. एक बार अगर सामनेवाला खर्च कर रहा है, तो दूसरी बार का खर्च आपको उठाना ही चाहिए. यही सही है.
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