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महामुकाबले के लिए बना ली है रणनीति

-मिशन 2014-।। ब्रजेश कुमार सिंह।।(संपादक, एबीपी न्यूज,गुजरात) शुक्रवार की शाम दिल्ली में गोवा की पुनरावृत्ति हो गयी. बीजेपी के सबसे वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी के जबरदस्त विरोध के बावजूद पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नरेंद्र मोदी के नाम का एलान कर डाला. अगले साल होनेवाले लोकसभा चुनावों के लिए मोदी बना दिये गये प्रधानमंत्री पद […]

-मिशन 2014-
।। ब्रजेश कुमार सिंह।।
(संपादक, एबीपी न्यूज,गुजरात)

शुक्रवार की शाम दिल्ली में गोवा की पुनरावृत्ति हो गयी. बीजेपी के सबसे वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी के जबरदस्त विरोध के बावजूद पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नरेंद्र मोदी के नाम का एलान कर डाला. अगले साल होनेवाले लोकसभा चुनावों के लिए मोदी बना दिये गये प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार.

दरअसल तीन महीने पहले गोवा में भी यही हुआ था. आडवाणी के विरोध के बावजूद राजनाथ सिंह ने मोदी को पार्टी की चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया था. इसके विरोध में आडवाणी ने पार्टी के तीन प्रमुख पदों से इस्तीफा दे दिया था. पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हस्तक्षेप के बाद आडवाणी ने इस्तीफा वापस ले लिया. इस बार भी एक तरफ जहां राजनाथ सिंह ने मोदी के नाम का पीएम उम्मीदवार के तौर पर एलान किया, तो दूसरी तरफ आडवाणी ने इसके विरोध में राजनाथ को पत्र लिख कर उनके कामकाज पर ही सवाल उठा दिया.

आडवाणी ने जब 10 जून, 2013 को इस्तीफा दिया था, तब भी राजनाथ के साथ ही पार्टी के अंदरूनी हालात को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े किये थे. खास बात ये भी रही कि मोदी के सियासी कैरियर को लेकर तीन महीने के अंतराल पर जब ये दो बड़े फैसले हुए, तो आडवाणी इन फैसलों से दूर ही रहे. सवाल यह है कि आखिर एक समय पार्टी के सबसे कद्दावर नेता रहे आडवाणी के विरोध को भी राजनाथ सिंह ने दरकिनार क्यों कर दिया. राजनाथ का तर्क दोनों मौकों पर यही रहा कि मोदी पार्टी ही नहीं, देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं और जनभावनाओं और पार्टी कार्यकर्ताओं की इच्छा का सम्मान करते हुए ऐसा किया गया. राजनाथ के साथ पार्टी के ज्यादातर नेता खड़े दिखे, फैसले का समर्थन किया.

यहां तक कि सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू और अनंत कुमार जैसे घोषित आडवाणी समर्थक भी दोनों फैसलों मे शरीक रहे. एक तरफ आडवाणी को मनाते रहे, तो दूसरी तरफ राजनाथ के फैसले का समर्थन भी किया. जाहिर है, आडवाणी को दरकिनार करते हुए जब पार्टी ने मोदी को पीएम उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट कर दिया है, तो मोदी बीजेपी को 2014 के चुनावों में जीत की राह पर ले जायेंगे. कैसे? ध्यान रहे कि पार्टी ने मोदी पर काफी बड़ा जुआ खेला है, वो भी सोच समझ कर. एनडीए में बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी जदयू एनडीए से तीन महीने पहले बाहर जा चुकी है, मोदी को लेकर ही. देश की ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियां 2002 के गुजरात दंगों का हवाला देते हुए धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मोदी के करीब भी फटकने से परहेज कर रही हैं. ऐसे सियासी माहौल में अगले छह महीनों के अंदर मोदी करेंगे क्या? मोदी कैंप से जो संकेत उभर कर आ रहे हैं, उनके मुताबिक अब मोदी एनडीए के पीएम उम्मीदवार के तौर पर हर महीने पांच से सात बड़ी रैलियां देश के अलग-अलग हिस्सों में करने जा रहे हैं. हालांकि मोदी ने इसकी शुरु आत फरवरी में दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से ही कर दी थी. इसके बाद वो केरल से लेकर कोलकाता और मुंबई से लेकर पुरी तक गये. लेकिन अब पीएम उम्मीदवार के तौर पर वो चुनावी एजेंडा सेट करेंगे. इस तरह अगले छह महीनों में 50 से ज्यादा रैलियां करेंगे.

चुनाव पास आने के साथ ही मोदी तकनीक का भी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करेंगे. 2012 के गुजरात विधानसभा चुनावों में मोदी 3डी होलोग्राम तकनीक का इस्तेमाल कर चुके हैं. मोदी को भली-भांति पता है कि वो देश के सभी 542 लोकसभा क्षेत्रों में जा नहीं पायेंगे, ऐसे में 3डी तकनीक के सहारे ही सही अपने को वो लोगों के सामने पेश करेंगे. फेसबुक, ट्विटर जैसे वैकल्पिक मीडिया का भी मोदी की तरफ से जम कर इस्तेमाल होगा, खास तौर पर युवा और शहरी वोटरों को अपने से जोड़ने के लिए.

तकनीक का इस्तेमाल तो एक तरफ, मोदी क्या अपने साथ कुछ नये साथी जोड़ पायेंगे. उनके आलोचक उनके सामने सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा करते हैं कि मोदी गंठबंधन धर्म के अनुकूल नहीं. ऐसे में मोदी की कोशिश इस मोरचे पर अपनी काबिलियत साबित करने की होगी. जो संकेत उभरे रहे हैं, उनके हिसाब से मोदी अगले कुछ महीनों में एक तरफ जहां असम गण परिषद को वापस एनडीए के कैंप में लायेंगे, वहीं, झारखंड की सियासत के दो बड़े चेहरों-बाबूलाल मरांडी और सुदेश महतो को भी अपने पाले में लाने की कोशिश करेंगे. इसके अलावा महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ राज ठाकरे भी बीजेपी एनडीए के फोल्डर में ला सकते हैं मोदी. कर्नाटक के पूर्व सीएम वीएस येदियुरप्पा को फिर से बीजेपी में आ सकते हैं. येदियुरप्पा खुद इसके संकेत दे रहे हैं. फिलहाल इस बात को लेकर शंका हो सकती है कि आखिर मोदी कर पायेंगे ऐसा, नतीजे के लिए करना होगा अगले कुछ महीनों का इंतजार.

सवाल यह भी है कि क्या चुनावों के बाद कुछ पार्टियां मोदी या यूं कहें कि बीजेपी के साथ आ सकती हैं सरकार बनाने के खेल में? इस सिलसिले में जो एक नाम सबसे पहले उभर कर आता है, वो है जयललिता का. अन्नाद्रमुक प्रमुख जयललिता और मोदी एक-दूसरे के प्रशंसक हैं. जयललिता कई बार मोदी के नेतृत्व क्षमता की तारीफ भी कर चुकी हैं. ऐसे में चुनावों के पहले स्थानीय समीकरणों के हिसाब से जयललिता, मोदी के साथ भले न जुड़े, लेकिन चुनाव बाद उनके साथ की पक्की आस है मोदी को. मोदी का सबसे बड़ा गणित है कि अगर एक बार बीजेपी की झोली में दो सौ के करीब सीटें आ जाएं, तो बाकी कई दल सरकार बनाने के लिए उनके करीब आ जायेंगे. उनमें वे दल भी हो सकते हैं, जो आज मोदी को कम्युनल कह रहे हैं, लेकिन भारतीय राजनीति के अवसरवादी सिद्धांत के तहत उनको मोदी को सेक्युलर कहने में भी परहेज नहीं होगा सत्ता का सुख भोगने के लिए, मलाई साझा करने के लिए.

लेकिन दो सौ का खेल आसान है क्या? मोदी होमवर्क में माहिर हैं. मोदी के नाम की घोषणा अभी हुई है, लेकिन वे महीनों पहले से चुपचाप देश की हर लोकसभा सीट के सियासी और जातिगत समीकरण का सर्वेक्षण कराने में लगे थे. इन सीटों पर कौन जीत सकता है, कौन से मुद्दे चल सकते हैं, इसकी भी ली जा रही है जानकारी. मोदी का गणित करीब 350 सीटों पर गंभीरता से चुनाव लड़ने का है, मतलब ये कि जहां पार्टी का उम्मीदवार सीधे मुकाबले में हो. इन 350 सीटों में से दो सौ से लेकर दो 210 सीटों तक निकल आने की उम्मीद है आज के हालात में. अगर मोदी एक बार दो सौ का आंकड़ा छू लेते हैं, तो आगे का गणित उनके लिए आसान होगा, ऐसा मानने में उनके सिपहसालारों को संदेह नहीं है.

मुद्दे की बात यह है कि आखिर बीजेपी को इस ऊंचाई पर ले जाने के लिए मोदी करेंगे क्या? महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद जैसे मुद्दे तो हैं ही, युवाओं के सपनों की बात भी करेंगे वो. यूपीए के 10 साल के कामकाज को अंधकारमय बताते हुए उजाले की ओर ले जाने का सपना दिखायेंगे मोदी. लेकिन मोदी की कोशिश जिस एक दिशा में 2014 की चुनाव को ले जाने की होगी, वो है इसे मोदी बनाम राहुल में तब्दील करने की. हालांकि कांग्रेस कह रही है कि वो 2014 चुनावों के लिए अपने उम्मीदवार का नाम घोषित नहीं करेगी, बल्कि पीएम कौन बनेगा, इसका फैसला चुनाव के बाद होगा. लेकिन मोदी कांग्रेस को इस बात के लिए मजबूर करेंगे कि वो अपना उम्मीदवार सामने लाये. आखिर जिस मतबूत नेतृत्व और विकास पुरुष की मोदी की इमेज को प्रोजेक्ट कर बीजेपी सियासी फायदा उठाने की सोच रही है, वो कोशिश तभी कामयाब होगी, जब सामने राहुल हों. और ऐसा करने के लिए बीजेपी का कैंपेन कुछ उसी दिशा में हो सकता है, जैसा 2012 के गुजरात विधानसभा चुनावों में हुआ था.

तमाम प्रचार कैंपेन में मोदी को सामने रख कर सवाल ये खड़ा किया जाता था कि बीजेपी का कप्तान तो सामने है, आखिर कौन है कांग्रेस का कप्तान. बीजेपी और एनडीए के कप्तान मोदी की 2014 के महामुकाबले की सबसे बड़ी रणनीति विरोधी कप्तान को अटैक करने की ही है. और तो और मोदी ये सवाल भी खड़ा करने से नहीं चूकेंगे कि क्यों कांग्रेस अब मनमोहन सिंह को पीएम का उम्मीदवार बनाने को तैयार नहीं है, जिन्हें बड़ी शान से पेश किया गया था 2009 के चुनावों में. कहीं इसका कारण मनमोहन सिंह की अगुआई वाली सरकार में हुए हजारों करोड़ रु पये के भ्रष्टाचार तो नहीं, मोदी ये सवाल भी दाग सकते हैं. तय मानिए, गुगली से लेकर शॉर्ट बॉल सबकुछ फेकेंगे मोदी. अभी तो बस शुरु आत हुई है यानी मोदी के नाम के एलान के साथ. वैसे आपको बता दें कि मोदी के नाम का एलान जिस वक्त किया गया, वो ग्रह नक्षत्रों को ध्यान में रख कर किया गया. शुक्र वार की शाम जब ये एलान हुआ, उस समय अनुराधा नक्षत्र था, जो नक्षत्र है शनि का. शुक्र और शनि का गंठजोड़ ज्योतिष शास्त्र में सार्वजनिक जीवन से जुड़े किसी आदमी के लिए किसी नये मुकाम की दिशा में प्रस्थान करने के लिए काफी शुभ होता है. क्या रणनीति के स्तर पर इस कदर की सावधानी बरतने वाले मोदी 2014 का महामुकाबला जीत पायेंगे या उन्हें मिलेगी हार, बस देखते रहिए आगे-आगे होता है क्या.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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