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योग से पहले शरीर की शुद्धि जरूरी

योग का मतलब होता है ‘मिलन’. सामान्य रूप से हमारे यहां जीवात्मा व परमात्मा के मेल को योग कहते हैं. हठयोग में इड़ा और पिंगला के मेल को और वैष्णव संप्रदायों में राधा-कृष्ण के मिलन को योग कहा जाता है. योग में दो विपरीत शक्तियां मिलती हैं और भौतिक शास्त्र में इसी को योग कहते […]

योग का मतलब होता है ‘मिलन’. सामान्य रूप से हमारे यहां जीवात्मा व परमात्मा के मेल को योग कहते हैं. हठयोग में इड़ा और पिंगला के मेल को और वैष्णव संप्रदायों में राधा-कृष्ण के मिलन को योग कहा जाता है. योग में दो विपरीत शक्तियां मिलती हैं और भौतिक शास्त्र में इसी को योग कहते हैं. परमाणु तकनीकी में जो अणु विस्फोट होता है, उसमें दो तत्व विपरीत दिशा में जाते हैं, एक-दूसरे से मिलते हैं.

यह योग कैसे सिद्ध होगा? सबसे पहले शरीर की शुद्धि होनी चाहिए, क्योंकि जो कुछ भी होगा, इसी मंदिर में होगा. यह मंदिर साफ होना चाहिए. इस मंदिर में नसें हैं, नाड़ियां हैं, खून हैं. सारे मल को साफ करना है. इसके लिए हमारे ऋषि-मुनियों ने हठयोग का अभ्यास बतलाया. इसमें नेति, धौति, कपालभाति, त्रटक, नौलि और बस्ति-ये छह कर्म बतलाये गये हैं. इन छह कर्मो को करने के बाद फिर आसन होता है.

आसन-जाग्रतावस्था में सुषुप्ति
आसन का मतलब शारीरिक व्यायाम नहीं होता है. इस शब्द को आपको थोड़ा बदलना चाहिए. आसन का मतलब होता है, शरीर की एक स्थिति. अभी हम इस आसन में बैठे हैं. यदि हम लेट जाते हैं, तो दूसरे आसन में आ जायेंगे. यदि हम खड़े हो जाते हैं, तो दूसरी स्थिति में आ जायेंगे. आसन का मतलब होता है, शारीरिक स्थिति या भंगिमा. योगासन का मतलब होता है, ऐसी स्थिति जो योग के लिए ठीक है. जैसे पद्मासन में बैठ गये. चिन्मुद्रा या कोई मुद्रा लगा ली, आंखें बंद कर लीं. शरीर शांत हो गया. हिलना-डुलना बंद हो गया. इससे शरीर में हृदय को आराम मिलेगा. रक्त का चाप गिरेगा. मस्तिष्क में जो तरंग-प्रणाली है, उसमें परिवर्तन आयेगा. शरीर में जो हॉर्मोन इधर-उधर से इधर चक्कर लगा रहे हैं, उनका चक्कर लगाना बंद हो जायेगा. दिमाग में जो रासायनिक क्रिया है, वह थोड़ी देर के लिए चुप हो जायेगी. तुम सोए नहीं हो, जगे हो. फिर भी तुम्हारे शरीर में वही स्थिति पैदा होती है, जो निद्रा या सुषुप्ति की अवस्था में रहती है.

जाग्रत अवस्था में सुषुप्ति के लक्षणों को शरीर में प्रकट करना, यह योगासन में होता है और साथ ही जाग्रत अवस्था में शरीर में ऐसे लक्षणों को प्रकट करना, जो मछली, सांप, टिड्डी, मेंढक आदि जानवरों के शरीर में होते हैं, जो रासायनिक क्रियाएं उनके शरीर में होती हैं वे तत्संबंधी आसन में आने पर इस शरीर में भी पैदा होती हैं. उदाहरण के तौर पर मत्स्यासन को ले लो. मत्स्यासन का मतलब होता है-मछली आसन. मछली के अंदर कौन-सी क्रियाएं होती हैं. मछली तो बिना ऑक्सीजन के पानी में चौबीसों घंटे रहती है और अपने पंख हिलाती रहती है. इसका मतलब होता है कि उसकी मांसपेशियां बहुत मजबूत है.

मछली की मांसपेशियां इतनी मजबूत क्यों हैं? इसका वैज्ञानिक कारण क्या है? समुद्र के तल में पानी का इतना भार होता है, कि जो गोताखोर नीचे जाते हैं, उनके मस्तिष्क के अंदर नाइट्रोजन पैदा हो जाती है. जब लोग समुद्र के तल में जाते हैं, तो एक हद तक जाते हैं, नहीं तो मस्तिष्क में नाइट्रोजन पैदा होने की संभावना रहती है. लेकिन मछली के अंदर नाइट्रोजन पैदा नहीं होती. मस्त्यासन का अर्थ यह हुआ कि तुम एक ऐसी स्थिति में आ रहे हो, जो मछली जैसी है और उस मछली की स्थिति द्वारा तुम अपने शरीर में उन तत्वों को पैदा कर रहे हो या रोक रहे हो या दबा रहे हो, जिनकी वजह से शरीर में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का संतुलन नियंत्रित होता है.

-योग विद्या पुस्तक से साभार

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