मिसाल :नृत्यांगना के हौसले की कहानी
कैंसर जानलेवा बीमारी है. लेकिन क्या, इसका पता लगते ही हमें अपने जीवन का अंत मान लेना चाहिए? क्या ऐसा सिर्फ फिल्मों में ही होता है, जब हीरो को इस बात का पता चलता है कि उसे कैंसर है, तो वह और लोगों की तरह रुआंसा होकर मौत का इंतजार करने के बजाय अपनी जिंदगी खुल कर जीने और बीमारी से लड़ने की कोशिश करता है.
कुछ महीने पहले हॉलीवुड अभिनेत्री एंजेलीना जॉली ने अपने स्तन कैंसर का पता चलने पर न केवल सफलतापूर्वक उसका ऑपरेशन कराया, बल्कि इससे लड़ने का अपना अनुभव भी दुनिया के साथ बांटा. हमारे देश में लोग ऐसे उदाहरण पेश कर रहे हैं. ऐसे में हम आज द वीक हेल्थ से साभार पेश कर रहे हैं दक्षिण भारत की नृत्यांगना आनंदा शंकर जयंत की कहानी, जिन्होंने कैंसर को चुनौती दी और आज अपने शौक को पूरा करते हुए जिंदगी के हर पल को जीने की नयी राह तलाशी है. आइए रू -ब-रू हों आनंदा की कहानी से, खुद उन्हीं की जुबानी.
अनुभव
जिस दिन मुझे कैंसर का पता चला, उसी दिन मैंने यह फैसला कर लिया था कि मैं नृत्य करना नहीं छोड़ूंगी. मैं नकारात्मक विचारों को मन में न लाकर फिल्में देखकर, किताबें पढ़कर और ध्यान लगाकर खुद को हमेशा खुश रखने की कोशिश करती. मेरा मानना है कि हममें से हर किसी को अपने शौक और जुनून को बनाये रखना चाहिए, केवल पैसे कमाने या कैरियर बनाने के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी आत्मा की संतुष्टि के लिए भी. मैंने अपने अनुभवों से यह सीखा है कि आप अपनी जिंदगी को क्या बनाना चाहते हैं, यह पूरी तरह से आप पर ही निर्भर करता है.
आमतौर पर कैंसर सबके लिए बुरा अनुभव ही लेकर आता है, लेकिन मेरे लिए इससे जुड़ी सबसे अच्छी बात यह रही कि इस बीमारी का पता चलने के बाद मैं खुद को अच्छी तरह जान पायी. एक जुलाई 2008 को जब मुझे इस बीमारी का पता चला, तो मेरे मन में कई सवाल एक साथ कौंधने लगे. मसलन, क्या मेरी जिंदगी और नृत्य का मेरा शौक खत्म होने जा रहे हैं? मैं कई बार अपने पति जयंत से यह पूछा करती कि क्या मेरे लिए सब कुछ खत्म हो चुका है. अब मैं समझ सकती हूं कि एक पति होने के नाते उन्हें इस बारे में मुझसे अधिक चिंता हो रही होगी.
उन्हीं दिनों उन्होंने मुझसे कहा कि मैं रेलवे की अपनी नौकरी से ब्रेक ले लूं और इस बीमारी से लड़ने की तैयारी करूं. मुझे उनकी बात सही लगी और मैंने ऐसा ही किया. मैंने इस बीमारी से लड़ने का फैसला किया. इस दौरान मुझे अपनी सास और जयंत का भावनात्मक रूप से सहारा मिला. तब मैंने सोचा कि अब मैं किसी से इस बीमारी को छिपाऊंगी नहीं और न ही अपनी किस्मत को यह कहकर कोसूंगी कि बीमारी मुझे ही क्यों हुई?
अगली सुबह मैंने अपने नाते-रिश्तेदारों को फोन कर बताया कि मुझे स्तन कैंसर है. इसके साथ ही मैंने उनसे साफ -साफ कह डाला कि वे इस पर दु:ख या हमदर्दी जताने के लिए मेरे घर आना चाहें तो उन्हें यह सब करने की कोई जरूरत नहीं है. अलबत्ता इन सबसे इतर अगर वे मेरे साथ हंसी-मजाक करने और हलके -फुलके समय बिताने मेरे घर आना चाहते हैं तो उनका स्वागत है.
कैंसर से जुड़े इस सिलसिले की शुरुआत तब हुई जब कुचीपुड़ी डांस कन्वेंशन के तीन हफ्ते के दौरे पर मुझे अमेरिका जाना था. इस दौरे पर निकलने से दो दिन पहले बरबस ही मेरा ध्यान स्तन पर उभर आये एक गांठ पर चला गया. उसी दिन अपने काम से लौटते वक्त मैं एक डायग्नॉस्टिक सेंटर में गयी और अपना मैमोग्राफी टेस्ट कराया. वहां के डॉक्टर उसके नतीजे से खुश नहीं दिखे और उन्होंने मुझे इसके लिए अपोलो अस्पताल जाने की सलाह दी. मैंने डॉक्टरों की बात मानी और नतीजे लेने की जिम्मेवारी जयंत को देकर मैं अपने डांस ट्रिप के लिए अमेरिका रवाना हो गयी.
जयंत ने सारी तैयारियां पूरी कर रखी थीं. उन्होंने ऑन्कोप्लास्टिकब्रेस्ट सजर्न डॉ रघुराम से बात कर ली थी, जिनके साथ उसी शाम हमारा अप्वाइंटमेंट फिक्स्ड था. उन्होंने मेरी कोर बायॉप्सी करायी. तब जाकर मुझे इस बीमारी को लेकर पहली बार डर का एहसास हुआ. डॉक्टर ने जल्द से जल्द सजर्री करा लेने की जरूरत बतायी. लेकिन मैं इसके पक्ष में नहीं थी क्योंकि 21 जुलाई को मेरा परफॉर्मेस था. लेकिन जयंत के हस्तक्षेप पर सात जुलाई को मेरा ऑपरेशन हुआ. मैंने उस ऑपरेशन के पहले और बाद में खुद को खुश बनाये रखने की पूरी कोशिश की.
जैसे ही मुझे अपने कमरे में लाया गया, मैंने अस्पताल का डरावना गाउन उतार फेंका और जयंत की पुरानी शर्ट-पैंट पहन ली. उसके बाद मैंने अपने सिर के बाल ऊपर की ओर किये और माथे पर बिंदी लगायी. दो दिनों बाद मैं संगीत नाटक अकादमी के लिए अपने लैपटॉप पर काम पर लग गयी.
10 जुलाई को मैं घर लौटी और 13 को अपने रिहर्सल में भाग लिया. जब कीमोथेरेपी का समय आया तो मैंने डॉक्टर से यह जानना चाहा कि क्या मेरे सारे बाल झड़ जायेंगे. तब एक बार फिर जयंत ने मुझे संबल प्रदान किया. उन्होंने कहा कि कीमोथेरेपी एक अमृत की तरह है, जो मेरे अंदर के विकारों को नष्ट कर देगा. मुझे कीमोथेरेपी के आठ चरण पूरे करने थे, हर तीन हफ्ते में एक. शुरुआती हफ्तों में तो मेरे बाल ठीक -ठाक रहे, लेकिन बाद में उन पर कीमोथेरेपी का असर दिखने लगा. जल्द ही मेरे सारे बाल झड़ गये. तब मुझे विग लगानी पड़ी.
(आनंदा शंकर जयंत नृत्यांगना, नृत्य प्रशिक्षिका, लेखिका, दार्शनिक व सांस्कृतिक टिप्पणीकार हैं)