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हिंदुत्व के खिलाफ लड़ाई से अलग नहीं होगा सीपीएम
वृन्दा करात अगर कोई ऑस्कर वाइल्ड के इस प्रसिद्ध कथन से सहमत है कि ‘जिसके बारे में बात की जा रही है, से बदतर केवल वह चीज है, जिसके बारे में बात नहीं की जा रही’, तो सीपीआइ(एम) को हाल ही में विशाखापत्तनम में सफलतापूर्वक संपन्न हुए पार्टी के राष्ट्रीय महाधिवेशन पर मीडिया के ध्यानाकर्षण […]
वृन्दा करात
अगर कोई ऑस्कर वाइल्ड के इस प्रसिद्ध कथन से सहमत है कि ‘जिसके बारे में बात की जा रही है, से बदतर केवल वह चीज है, जिसके बारे में बात नहीं की जा रही’, तो सीपीआइ(एम) को हाल ही में विशाखापत्तनम में सफलतापूर्वक संपन्न हुए पार्टी के राष्ट्रीय महाधिवेशन पर मीडिया के ध्यानाकर्षण का स्वागत करना चाहिए.
हालांकि मीडिया का ज्यादा समय और स्थान कौन बनेगा महासचिव के लिए पॉलिट ब्यूरो में चल रहे कल्पित ‘शक्ति परीक्षण’ जिसके लिए ‘अंतिम समय तक अनिर्णय की स्थिति’ , ‘रोमांचक स्थिति ’ एवं ‘असमंजस जारी’ जैसे प्रयोग किये गये मुहावरों ने ले लिया. कॉमरेड सीताराम येचुरी के महासचिव के रूप में सर्वसम्मति से चुने जाने के बाद ‘नीतियों में परिवर्तन’ की संभावनाओं आदि पर मीडिया में अटकलें शुरू हो गयी हैं.
इस तरह की अटकलों से इस ऐतिहासिक सम्मेलन में की गयी गंभीर चर्चा, बहस और निर्णयों से ध्यान हटाया गया है. इसने देश के किसी भी राजनैतिक दल से ज्यादा लोकतांत्रिक तरीके से पार्टी के सभी स्तर की कमेटियों और उनके सचिवों के हुए चुनाव को कमतर आंकने का काम किया है.
इस प्रक्रिया में गांव में कार्यरत पार्टी यूनिट या शहरी बस्ती में पार्टी की इकाई के चुनाव से लेकर केंद्रीय कमेटी और पॉलिट ब्यूरो और अंतत: महासचिव के चुनाव तक दस लाख से ज्यादा पार्टी सदस्य शामिल हुए. इस बार बिना किसी अपवाद के पार्टी ने अपने संविधान में परिवर्तन किया.
इसके तहत सभी सचिव (लोकल कमेटी से लेकर केंद्रीय कमेटी तक) ज्यादा से ज्यादा तीन बार, मोटे तौर पर नौ वर्ष तक सचिव रह सकते हैं या जिन्होंने तीन बार का कार्यकाल पूरा कर लिया है, उन्हें स्वत: पद से हट जाना होगा. अत: इस बार सैकड़ों नये सचिव चुने गये. सीपीआइ (एम) में सत्ता का ऐसे सहज स्थानांतरण से अन्य दलों को सीख लेनी चाहिए और इस पर हमारे कॉडरों को गर्व करना चाहिए.
नरेंद्र मोदी के शासन के दरम्यान जो नीतियां लागू की गयी हैं, उसके बाद इसमें कोई शक नहीं रह जाता है कि भारत सामाजिक और आर्थिक नीतियों के दक्षिणपंथी परिवर्तन के दौर का साक्षी बन रहा है.
वैसे तो मोदी सरकार की नीतियां पिछली यूपीए सरकार की नीतियों से बहुत ज्यादा भिन्न नहीं हैं, लेकिन संसद में सत्ताधारी दल की संख्या ज्यादा होने के कारण यह सरकार कॉरपोरेट समर्थक नीतियों को बेङिाझक लागू कर रही है. इसके साथ ही अपने प्रचारक का उत्कर्ष देश के सर्वोच्च निर्वाचित पद पर हो जाने से आज आरएसएस की सीधी पहुंच सत्ता तक हो गयी है. इस कारण सिद्धांतों के संस्थानीकरण एवं राज्य के विभिन्न गांवों में हिंदुत्व के नित्य प्रयोग से देश के संविधान और संरचना के लिए वास्तविक खतरा पैदा हो गया है.
आनेवाले दिनों में पार्टी की मूल रणनीति इन दोनों पहलुओं के खिलाफ हस्तक्षेप बढ़ाने की होगी. इसके लिए जनता के बीच काम कर और सैद्धांतिक स्पष्टता के माध्यम से पार्टी के स्वतंत्र आधार को मजबूत करना होगा. दूसरे, इस उद्देश्य में स्वाभाविक सहयोगी के रूप में वामदलों के साथ एकता बढ़ाने पर जोर दिया जायेगा. इसके अलावे प्रस्ताव में बड़े पैमाने पर उन व्यक्तियों, समूहों और आंदोलनों तक पहुंच बनाने की कोशिश करना भी शामिल है, जो भारतीय जनमानस पर हो रहे इन दोनों तरह के हमलों से समान रूप से चिंतित हैं.
कामकाजी लोगों, मजदूर वर्ग, किसान, आदिवासी, दलितों, युवा, महिला और अल्पसंख्यक के साथ सामाजिक गंठजोड़ आनेवाले समय में काम के महत्वपूर्ण पहलू के रूप में चिह्न्ति किये गये हैं. नयी राजनैतिक लाइन के आधार पर वाम और जनवादी ताकतों का यह समूह स्वतंत्र वाम राजनीति पर दृढ़ रहेगा. इस दस्तावेज का सबसे विवेचनात्मक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि नव उदारवादी आर्थिक नीतियों और हिंदुत्ववादी ताकतों को अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह चिह्न्ति करना संभव नहीं कि दोनों में कौन ज्यादा जहरीली है.
हिंदुत्व राजनैतिक लाभ के लिए धर्म का एक औजार के रूप में दुरुपयोग कर जनता के उस वर्ग को विभाजित कर उसके संयुक्त संघर्ष की क्षमता को कमजोर करता है, जो मोदी सरकार द्वारा खुल्लमखुल्ला लागू की जा रही कॉरपोरेट-समर्थक नव-उदारवादी आर्थिक नीतियों से सबसे बुरी तरह प्रभावित है. आर्थिक नीतियों द्वारा जनता के जीवन और आजीविका पर सीधा हमला बोला गया है और हिंदुत्व के खिलाफ लड़ाई के नाम पर इसे नजरअंदाज कर देना जनता को निरस्त कर देना होगा और एक तरह से यह सामुदायिकता को मदद करने जैसा होगा.
अतीत की विस्तृत समीक्षा के बाद इस नतीजे पर पहुंचा गया है कि अतीत की शक्ति और कमजोरियों को समङो बिना हम भविष्य के निर्माण की आशा नहीं कर सकते. इसकी समीक्षा के लिए यहां जगह कम है, जिन्हें दिलचस्पी है उनके लिए जानकारी पार्टी की वेबसाइट पर उपलब्ध है.
अंतत: यह कहा जा सकता है कि यह एक गहरी समझवाला, आत्म-आलोचनात्मक और प्रखर दस्तावेज है और यही कारण है कि प्रतिनिधियों ने इसका बड़े पैमाने पर स्वागत किया. इसका एक महत्वपूर्ण भाग सीपीआइ (एम) का अन्य दलों, विशेष कर क्षेत्रीय दलों से संबंध के बारे में है. दस्तावेज यह चिह्न्ति करता है कि हाल के वर्षो में इन दलों ने आर्थिक नीतियों पर किसी संयुक्त मंच पर आने की इच्छा नहीं जतायी.
धनी ग्रामीण समूहों का प्रतिनिधित्व करनेवाले इन वाम दलों का गरीब किसानों और कृषि मजदूरों के बारे में भिन्न नजरिया है. ऐसी स्थिति में समान वैकल्पिक नीतियों के आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें साथ लाना अव्यावहारिक और भूल होगी. समीक्षा में यह नोट किया गया है कि अगर भविष्य में जनता के मुद्दों पर क्षेत्रीय दल साथ आने को तैयार होते हैं, तो हमें उस संयुक्त कार्रवाई का हस्सा बनने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए.
यह भी नोट किया गया है कि वाम और जनवादी ताकतों के एक मोरचे को सामने लाने में इन दलों के साथ गंठबंधन की तलाश ने राष्ट्रीय और राज्यों के स्तर पर बाधा पहुंचायी. जहां तक कांग्रेस पार्टी का सवाल है, इस दस्तावेज में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आर्थिक नीतियों के मामले में कांग्रेस और भाजपा में कोई फर्क नहीं है. इसलिए हिंदुत्व के खिलाफ लड़ाई के नाम पर कांग्रेस के साथ कोई गंठबंधन या मोरचा बनाने का सवाल ही पैदा नहीं होता.
वाम एवं सीपीआइ(एम) के शुभचिंतकों ने हमारी पार्टी की ताकत में कमी और इसके क्षय होते जनाधार के प्रति चिंता जाहिर की है. सम्मेलन ने इस चिंता को दूर करने की गंभीर कोशिश की है. विशाखापत्तनम के आकर्षक समुद्र तट पर हुई आम सभामें एक लाख से ज्यादा लोगों का जुटान देश भर के लाखों पार्टी समर्थकों की ऊर्जा और उनके समर्पण को प्रदर्शित करता है.
पार्टी के राष्ट्रीय महाधिवेशन में लिये गये फैसले और निर्वाचित नया नेतृत्व सामूहिक रूप से संघर्ष कर अतीत में हुए नुकसान की भरपाई करेंगे और हमारे सामाजिक एवं आर्थिक समानता के सिद्धांतों को आगे ले जायेंगे. लेखिका सीपीआइ (एम) की पॉलिट ब्यूरो सदस्य और पूर्व राज्यसभा सांसद हैं.
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