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आपला मानूस बाकी सब मनहूस

आर्थिक प्रगति में सबसे बड़ा हिस्सा ‘माटी के लाल’ का होना चाहिए, लेकिन जब भूमिपुत्र ‘मिट्टी के माधो’ हों तो क्या किया जाये? सारी दुनिया में स्थानीय लोगों को विदेशी लोगों से परेशानी है.सऊदी अरब में विदेशी मजदूरों को हटाने के लिए ‘निताकत’ कानून के तहत मुहिम चलायी गयी.तीन लाख मजदूरों को सऊदी छोड़ना पड़ा, […]

आर्थिक प्रगति में सबसे बड़ा हिस्सा ‘माटी के लाल’ का होना चाहिए, लेकिन जब भूमिपुत्र ‘मिट्टी के माधो’ हों तो क्या किया जाये? सारी दुनिया में स्थानीय लोगों को विदेशी लोगों से परेशानी है.सऊदी अरब में विदेशी मजदूरों को हटाने के लिए ‘निताकत’ कानून के तहत मुहिम चलायी गयी.तीन लाख मजदूरों को सऊदी छोड़ना पड़ा, ऐसे में नौकरानियों की कमी हो गयी.अब सात लाख नौकरानियों को वीसा दिया जायेगा.

।।रवि दत्त बाजपेयी।।
खाड़ी देशों में तेल के अकूत भंडार की खोज और सारे विश्व में इस तेल की असीमित मांग के बाद से अरब देशों के आर्थिक स्वरूप में विस्मयकारी परिवर्तन हुआ. साथ ही इन देशों में काम इतना बढ़ा कि सारी दुनिया से लोगों को यहां रोजगार मिलने लगा. खाड़ी के सबसे बड़े देश सऊदी अरब में भी शुरुआती दिनों में तेल खनन व शोधन के लिए विदेशी विशेषज्ञों और अमीरी बढ़ने के साथ ही विदेशी मजदूरों की मांग बहुत बढ़ गयी. जाहिर है कि विदेशी विशेषज्ञ अमेरिकी व यूरोपीय लोग थे, जबकि सारे मजदूर, पड़ोसी गरीब अरब देशों, अफ्रीका और एशिया महाद्वीप से थे. 2012 में सऊदी अरब में विदेशी कामगारों की अनुमानित संख्या 90 लाख के करीब मानी जाती है, जो पूरे देश में कुल रोजगार के आधे से भी अधिक है.

2011 में अरब देशों में आम जनता ने अपने स्वेच्छाचारी शासकों के विरु द्ध आंदोलन की शुरु आत की, जिसे समीक्षकों ने ‘अरब स्प्रिंग’, अरब वसंत या बहार-ए-अरब का नाम दिया. अरब देशों में आम लोगों को स्वतंत्रता और स्वाभिमान से जीने के इस प्रयास को इस शुष्क प्राकृतिक-राजनीतिक जलवायु में वसंत का आगमन माना गया. आजकल जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी के तापमान में बढ़ोतरी बेहद ज्वलंत मुद्दे हैं, लेकिन सऊदी अरब के विशालकाय राज परिवार को पड़ोसी मुल्कों में आये इस राजनीतिक जलवायु परिवर्तन ने बहुत विचलित कर दिया. ट्यूनीशिया, मिस्र, लीबिया, सीरिया और अन्य देशों में जन-आंदोलन के उभार से सऊदी अरब के शासक चिंतित अवश्य थे, लेकिन बहरीन में हुए उग्र जन-प्रदर्शन ने तो सऊदी राजघराने में खलबली मचा दी. अपने साम्राज्य में किसी भी आंदोलन को दबाने के लिए सऊदी राज परिवार ने सारे विकल्प तलाशने शुरू कर दिये.

सऊदी अरब के शासकों के पास अपनी बेचैन जनता को नियंत्रण में रखने के लिए तीन विकल्प हैं- मुखर विरोधियों का सेना व पुलिस द्वारा दमन, कुछ असंतुष्टों को इमदाद बांट देना, और आम लोगों को धार्मिक कट्टरपंथ के प्रति आकर्षित करना. इस बार ये सारे उपाय कुछ हद तक कारगर हुए हैं, लेकिन आर्थिक संकट से ध्यान बंटाने के लिए राष्ट्रीयता की भावना भड़काना सबसे कारगर उपाय है. जब सऊदी अरब में बेरोजगारी की दर 12 फीसदी और युवा लोगों में बेरोजगारी की दर 35 फीसदी हो, तो हर जगह दिखनेवाले अधिसंख्य विदेशी मजदूरों को बड़ी आसानी से मुल्क की बदहाली के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. ठीक वैसे ही जैसे भारत में औद्योगिक रूप से कुछ अधिक विकिसत राज्यों में ‘आपला मानूस’ या स्थानीय लोगों के आर्थिक पराभव के लिए उत्तर प्रदेश, ओड़िशा, बिहार, झारखंड के मजदूरों को जिम्मेदार बताया जाता है.

सऊदी अरब ने अपने देश की श्रम शक्ति का सऊदीकरण करने का फैसला लिया और ‘निताकत’ व्यवस्था लागू की, इस नीति के अंतर्गत हर क्षेत्र में कम से कम 10 फीसदी सऊदी लोगों को काम पर रखना अनिवार्य होगा और जिन व्यावसायिक क्षेत्रों में विदेशी मजदूरों की संख्या अधिक है, उन पर स्थानीय लोगों को रोजगार देने का दबाव बनाया गया. तेल व अन्य सरकारी सेवाओं के अलावा निजी क्षेत्रों में 80-90 फीसदी तक मजदूरी करनेवाले लोग विदेशी ही हैं और इन उद्योगों में निताकत कानून के लागू होने से ऐसे लाखों विदेशी मजदूरों को सऊदी अरब से बाहर निकाल दिया जायेगा. सऊदी अरब के कानून में इन मजदूरों को कोई अधिकार नहीं दिये गये हैं, जिसके कारण इन्हें न सिर्फ न्यूनतम वेतन पर अनथक परिश्रम करना होता है, बल्कि इनके पास अपने मालिकों के भीषण उत्पीड़न से बचने का भी कोई रास्ता नहीं है.

निताकत कानून के लागू होने से पहले ऐसे विदेशी मजदूरों को सऊदी अरब छोड़ने को कहा गया जिनके रोजगार की अनुमति (वर्क परमिट) समाप्त हो चुकी थी और जो गैरकानूनी रूप से वहां रह रहे थे, इन्हें आवश्यक कागजी कार्यवाही करके तत्काल वापस जाने को कहा गया. भारत से लगभग 20 लाख मजदूर सऊदी अरब में सबसे निचले स्तर के और सबसे न्यूनतम वेतन वाले रोजगार में लगे हुए है, इनमें से कई लोग बिना उचित वीसा के वहां रह रहे है. अप्रैल 2013 में निताकत कानून के कड़ाई से लागू होने के बाद 75,000 के लगभग भारतीय कामगारों को निर्वासित करने के समाचार आये थे. निताकत कानून के भय से स्वदेश लौटने के लिए आवश्यक कागजी कार्यवाही करने अपने दूतावास गये इंडोनेशिया के हजारों मजदूरों ने, दूतावास के अधिकारियों के असहयोगी रवैये से क्षुब्ध होकर भारी हंगामा किया और इंडोनेशिया के जेद्दा स्थित दूतावास के कुछ हिस्से को आग लगा दी.

निताकत कानून से सऊदी अर्थव्यवस्था को भी बहुत परेशानी है, स्थानीय अरब लोग एशियाई मजदूरों के काम करने को तैयार नहीं हैं और जिन कार्यो को वे अपने योग्य मानते है, उसमें उन्हें एशियाई लोगों से तीन से पांच गुना अधिक वेतन चाहिए. स्थानीय सऊदी लोगों के साथ विदेशी मजदूरों की तरह गुलाम-सा व्यवहार करना भी संभव नहीं है. निताकत के आंशिक रूप से लागू होने के साथ ही सऊदी अरब में घरेलू नौकरानियों की भारी कमी हो गयी और सऊदी सरकार ने सात लाख विदेशी महिलाओं को घरेलू नौकरानियों के रूप में वीसा देने की घोषणा की.

जब शारीरिक श्रम करने को ‘आपला मानूस’ नहीं मिले, तो दोबारा ‘मनहूस’ ढूंढ़े जा रहे हैं. निताकत कानून के बाद भारत के मजदूरों के वापस लौटने पर उनके लिए यहां तत्काल रोजगार ढूंढ़ना आसान नहीं है, जब केरल के अधिकतर लोग खाड़ी देशों में काम करने गये थे, तो स्थानीय निर्माण उद्योग और अन्य शारीरिक श्रम के लिए बिहार-ओड़िशा-झारखंड के लोग मजदूरी करने केरल जा रहे थे. सऊदी अरब से भारी संख्या में भारतीय मजदूरों की वापसी का एक पक्ष विदेशी मुद्रा का नुकसान है, तो दूसरा पक्ष भारत में बेरोजगारी का बढ़ना भी है.

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