बायोलॉजी स्वयं में एक बेहद विस्तृत विषय है, जिसका सदुपयोग करने के लिए इसको कई उप-क्षेत्रों में बांटा गया है. पिछले अंक में हमने कुछ बायोलॉजिकल क्षेत्र के बारे में जानने और उनमें प्रवेश प्रक्रिया के बारे में समझने की कोशिश की थी. इस अंक में भी हम बायोलॉजी के ही कुछ अन्य क्षेत्रों के बारे में चर्चा करेंगे.
कंप्यूटेशनल बायोलॉजी : कंप्यूटेशनल बायोलॉजी में बायोलॉजिकल डाटा को कलेक्ट करके उसका प्रयोग किया जाता है और यह बायोलॉजिकल साइंसेस में बेहद उपयोगी प्रक्रिया है. कंप्यूटेशनल बायोलॉजी का प्रयोग ह्यूमन जीनोम को क्रमबद्ध करने में, मानव मस्तिष्क के तरह अन्य संरचना तैयार करने में, जीव तंत्र की संरचना को और बेहतर बनाने में किया जाता है. इसमें अध्ययन के कई उप-क्षेत्र भी हैं, जैसे कंप्यूटेशनल बायो-मॉडलिंग, कंप्यूटेशनल एवोलयूसनरी बायोलॉजी, कंप्यूटेशनल जेनोमिक्स, कंप्यूटेशनल न्यूरोसाइंस, कम्प्यूटेशनल फार्माकोलॉजी, कैंसर कंप्यूटेशनल बायोलॉजी आदि.
इकोलॉजी : बायोलॉजी और अर्थ साइंसेस को मिला कर जिस विज्ञान को जन्म दिया गया वह इकोलॉजी. इकोलॉजी के अध्ययन और इसके आगे के कार्यात्मक उपयोग से मानव जीवन की अच्छाई के लिए कई क्षेत्रों में अनेक प्रायोगिक कार्य किये जा रहे हैं. जैसे- कंजर्वेशन बायोलॉजी, सिटी प्लानिंग, कम्युनिटी हेल्थ, बेसिक एंड अप्लाइड साइंसेस आदि.
इवॉल्यूशनरी बायोलॉजी : यह एक ऐसा अध्ययन है, जिसमें पृथ्वी पर जीवन की डायवर्सिटी कैसे हुई और उसके कैसे परिणाम हुए, इसके बारे में पढ़ा जाता है. यह बायोलॉजी का ही एक उप-क्षेत्र है. इसके अध्ययन के बाद व्यक्ति इवॉल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट बन सकता है. बायोलॉजी के इस अध्ययन क्षेत्र में जीवन के लगभग सभी उद्गम से संबंधित प्रश्न होते हैं. जैसे कब और कैसे.
सभी उपरोक्त बायोलॉजिकल साइंसेस के विशेष विषयों में पढ़ने के लिए सबसे पहले छात्रों को बायोलॉजी में बैचलर्स की डिग्री पूरी करनी पड़ती है. फिर मास्टर्स के लिए और मास्टर्स के बाद पीएचडी के लिए विश्वविद्यालयों का चुनाव करना होता है. हां, विश्वविद्यालयों और उनकी फैकल्टी का चुनाव करते समय भी छात्रों को उस विषय में उस विश्वविद्यालय की सहभागिता और विषयात्मक शोध का ध्यान रखना चहिए.
प्रवेश के लिए क्या है जरूरी