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सस्ते व कारगर हैं हर्बल बुलेट प्रूफ जैकेट

स्कूल में कई बार फेल हो चुके मारकंडे काले ने गेहूं जैसे कई अनाजों की मदद से हर्बल बुलेट प्रूफ जैकेट और हेलमेट का निर्माण किया है. इन जैकेट्स की कीमत 18 से 35 हजार रुपये है, जबकि सेना द्वारा उपयोग में लाये जानेवाले बुलेट प्रूफ जैकेट्स की कीमत 35 से 52 हजार रुपये होती […]

स्कूल में कई बार फेल हो चुके मारकंडे काले ने गेहूं जैसे कई अनाजों की मदद से हर्बल बुलेट प्रूफ जैकेट और हेलमेट का निर्माण किया है. इन जैकेट्स की कीमत 18 से 35 हजार रुपये है, जबकि सेना द्वारा उपयोग में लाये जानेवाले बुलेट प्रूफ जैकेट्स की कीमत 35 से 52 हजार रुपये होती है. इन्होंने अपने इस अनूठे अविष्कार से सेना में हर्बल उपकरणों के इस्तेमाल का रास्ता दिखाया है.

नया कर गुजरने का इरादा पक्का हो तो चीजें अपने आप शक्ल लेने लगती हैं. इसे साबित किया है मारकंडे काले ने. मुंबई से 400 किलोमीटर दूर स्थित है महाराष्ट्र का गांव सिंगली. वहां के रहनेवाले मारकंडे ने जिस एक चीज का अविष्कार किया है, उसका महत्व हम भले ही न समझ पायें, पर सेना में जवान से लेकर अधिकारी तक सब इसके कायल रहते हैं. वह चीज है बुलेट प्रूफ जैकेट.

कौन है मारकंडे काले
मारकंडे काले प्रोफेशनली खेलकूद के शिक्षक है, पर वे अब खुद की मारकंडे आयुर्वेद आर्मर फर्म चला रहे हैं. यह फर्म मुख्य रूप से हर्बल प्रोडक्ट्स पर काम कर रही है, पर इसे असली पहचान मिली खेतों की चीजों से बुलेट प्रूफ जैकेट बनाने से. काले कहते हैं कि मुङो गर्व है कि मैं शुरू से ही एक बुरा विद्यार्थी रहा और लगातार फेल होता रहा. लेकिन मैं हमेशा जानकारी हासिल करता रहा कि अलग-अलग एग्रीकल्चरल उत्पादकों का कैसे उपयोग करना है. यह ज्ञान उन्हें अपने अनुभव और जिज्ञासा से हासिल हुए.

कहां से आयी प्रेरणा
मारकंडे काले कहते हैं कि क्या आपने कभी एक चम्मच गेहूं को काफी देर तक चबाया है? मैंने बचपन में कई बार ऐसा किया. जब गेहूं को थोड़ी देर तक लगातार चबाते हैं, तो वह थोड़ा-थोड़ा च्विइंगम की तरह हो जाता है. एक बार मैं इस च्विइंगम को दीवार पर लगा कर भूल गया. एक हफ्ते बाद मुङो याद आया. मैं वापस गया और उसे दीवार से निकालने की कोशिश की, लेकिन मैं उसे निकाल नहीं पाया. वह एक पत्थर से भी ज्यादा कठोर हो गया था. आखिर में उसे दीवार से हटाने के लिए मुङो हथौड़ा और पेंचकस का इस्तेमाल करना पड़ा.

अविष्कार का सफर
90 के दशक में काले ने अनाज पर शोध करना शुरू किया. सबसे पहले उसे उबाला, फिर उसे भारी चीजों से दबाया. देखा कि आखिर ऐसा करने पर क्या चीज निकलती है. इसके लिए उन्होंने 280 तरह के विभिन्न अनाजों का परीक्षण किया. इन विभिन्न अनाजों से उन्होंने कई तरह के मिश्रण तैयार किये, जिनका कई तरह से उपयोग हो सकता है, खासतौर से रक्षा उपकरणों में. 280 अनाजों में 11 अनाजों से निकले मिश्रण से बुलेट प्रूफ मैटेरियल बनाया गया. सभी के बारे में विस्तार से न बताते हुए मारकंडे कहते हैं कि बुलेट प्रूफ मैटेरियल बनाने में गेहूं ने सबसे ज्यादा मदद की. इससे तैयार हुआ मिश्रण जैल की तरह का होता है. इसे काले कपड़े के ऊपर लगाते हैं, साथ में फाइबर ग्लास भी होता है. ये प्लेट लेयरिंग द्वारा तैयार की जाती है. इसमें कपड़ों की दो लेयर के बीच में जैल होता है. जो समय के साथ कठोर होते हैं. ये लेयर कठोर होकर धातु की प्लेटनुमा हो जाती है. लेकिन ये काफी हल्के होते हैं. पहले इसका स्थानीय स्तर पर परीक्षण किया गया था. 2001 में उन्हें एक ऐसा व्यक्ति मिला, जिसके पास बंदूक थी और जिसने इस प्लेट पर बंदूक चलायी, पर बुलेट इसकी प्लेट में छेद कर अंदर नहीं घुस पाया और प्लेट को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हुआ. इसके बाद धीरे-धीरे वे नये लोगों से मिले और 2008 में डीआरडीओ से अपने प्रोडक्ट का परीक्षण कराया.

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