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इंटरनेशनल इयर केयर डे: बड़े काम का कान, रखें ध्यान

आज इंटरनेशनल इयर केयर डे है, यानी कान की देखभाल की याद दिलानेवाला दिवस. हमारे शरीर में मौजूद पांच इंद्रियों (सेंस ऑर्गन्स) में से एक कान भी है. इसका काम है दूसरों की बातें ग्रहण कर दिमाग तक सूचनाएं प्रेषित करना. आम तौर पर हमें यह सब बड़ा आसान लगता है, लेकिन कहते हैं न! […]

आज इंटरनेशनल इयर केयर डे है, यानी कान की देखभाल की याद दिलानेवाला दिवस. हमारे शरीर में मौजूद पांच इंद्रियों (सेंस ऑर्गन्स) में से एक कान भी है. इसका काम है दूसरों की बातें ग्रहण कर दिमाग तक सूचनाएं प्रेषित करना. आम तौर पर हमें यह सब बड़ा आसान लगता है, लेकिन कहते हैं न! कि जब आपके पास कोई चीज नहीं होती तब आपको उसकी कमी का एहसास होता है. तो आपको अपने कान की महत्ता और उसकी देखभाल की जरूरत का एहसास दिलाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तीन मार्च को इंटरनेशनल इयर केयर डे घोषित किया है.

सेंट्रल डेस्क

आमतौर पर यह समझा जाता था कि प्रकृति जन्म के समय मनुष्य को जो सुविधाएं, मसलन आंखें, कान, नाक, हाथ-पैर आदि, देती है, वह एक निश्चित समय के बाद वापस लेने लगती है. यानी ये चीजें और उनकी क्षमताएं कमजोर होने लगती हैं. लेकिन जैसा कि हम जानते हैं कि आधुनिक जीवनशैली ने लोगों को सुविधा और आराम तो दिया है पर उसके साथ कई दुष्परिणाम समय-असमय सामने आते रहते हैं. अफसोस तो तब होता है जब कई बार चीजों को सुधारना हमारे हाथ में होता है, लेकिन हमें एहसास तब होता है जब हालात बिगड़ जाते हैं. ऐसी ही आदत है, लाउड म्यूजिक का शौक. जो आपको समय से पहले बहरा बना सकता है. चाहे आप आइ-पॉड में गाने सुनना पसंद करते हों या मोबाइल फोन पर, ईयर फोन पर गाने सुनने के फैन हों या किसी डिस्कोथेक में लाउड डीजे बीट पर थिरकना, यहां तक कि ट्रैफिक का शोर भी आपके कानों को नुकसान पहुंचा कर आपकी सुनने की क्षमता को प्रभावित करता है.

इसी बाबत पिछले दिनों डब्ल्यूएचओ के गैर-संचारी रोगों, विकलांगता, हिंसा एवं चोट रोकथाम प्रबंधन विभाग के निदेशक एटीन क्रूग ने बताया है कि चूंकि दैनिक जीवन में युवा वही सब करते हैं, जिससे उन्हें आनंद मिलता है, इसलिए अधिकतर युवा खुद को बहरेपन की ओर ले जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि साधारण बचावकारी उपायों से लोग खुद बहरेपन के खतरे के बिना लुत्फ उठा सकते हैं. डब्ल्यूएचओ द्वारा मध्यम और उच्च आय वाले देशों पर किये गये एक नये अध्ययन के अनुसार, 12-35 साल आयु के बीच के किशोर और वयस्कों में से लगभग 50 फीसदी किशोर और युवा अपने व्यक्तिगत ऑडियो उपकरणों से असुरक्षित स्तर पर आवाज सुनने और लगभग 40 फीसदी ने मनोरंजन स्थलों पर हानिकारक स्तर पर आवाज सुनने की बात बतायी. इसलिए जरूरी है कि इन सब चीजों से बचें, यह मुमकिन नहीं हो तो कम से कम इस बात का ख्याल तो रख ही सकते हैं कि कौन-सी चीज आपके कान किस स्तर पर कितनी देर तक सह सकते हैं.

इएनटी विशेषज्ञों की मानें तो आइपॉड, एमपी3 प्लेयर को हेडफोन या इयरबड्स की मदद से जरूरत से ज्यादा आवाज पर और ज्यादा देर तक सुनना हमारी सुनने की क्षमता को बिगाड़ सकता है. साथ ही, म्यूजिक सुनते वक्त वॉल्यूम हमेशा मीडियम या लो लेवल पर रखना चाहिए क्योंकि तेज आवाज कान के पर्दे को फाड़ सकती है. इएनटी चिकित्सकों की मानें तो 120 डेसीमल से ऊपर की आवाज कान के लिए बेहद घातक है. जानकार बताते हैं कि कितनी आवाज कितनी देर तक सुननी ठीक है, इसके लिए 60/60 का नियम अपना सकते हैं. इसमें आइपॉड को 60 मिनट के लिए उसके मैक्सिमम वॉल्यूम के 60 फीसदी पर सुनें और फिर कम से कम 60 मिनट यानी एक घंटे का ब्रेक लें. यह जानना भी जरूरी है कि म्यूजिक या मोबाइल सुनने के लिए इयरबड और हेडफोन, दोनो आते हैं. इयर बड्स कान के छेद में घुसा कर लगाये जाते हैं, जबकि हेडफोन कान के बाहर लगते हैं. ऐसे में इयर बड्स की तुलना में हेडफोन बेहतर है.

वैसे कान के सुनने की क्षमता कमजोर होने के पीछे अन्य वजहें भी जाननी जरूरी है, मसलन उम्र का बढ़ना, कुछ दवाएं जैसे जेंटामाइसिन का इंजेक्शन जिसका इस्तेमाल बैक्टीरियल इनफेक्शन आदि में होता है. इसके अलावा, कुछ बीमारियां जैसे डायबिटीज और हॉर्मोस का असंतुलन. इसके अलावा मेनिंजाइटिस, खसरा, कंठमाला आदि बीमारियों से भी सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है. साथ ही, ज्यादा देर तक बहुत तेज आवाज के संपर्क में रहना भी कान के लिए खतरनाक है और जब तक हमें पता चलता है कि हमें वाकई सुनने में कोई दिक्कत हो रही है, तब तक हमारे 30 फीसदी सेल्स नष्ट हो चुके होते हैं और नष्ट हो चुके ये सेल्स हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं. यानी उन्हें दोबारा हासिल नहीं किया जा सकता.

होली आनेवाली है, ऐसे में यह जानना भी जरूरी हो जाता है कि इस मौके पर इस्तेमाल होनेवाले रासायनिक रंग अगर कान में चले जायें तो कान की नली बंद हो सकती है, जिससे सुनने की क्षमता खत्म हो जाती है. ईएनटी विशेषज्ञ बताते हैं कि नाक के जरिये जब कान में एलर्जी, पानी पहुंचता है तो कान की हड्डियां गलने लगती हैं. इससे कान का बहना शुरू हो जाता है. कान में पस पड़ने से दर्द होने लगता है. नाक के पिछले हिस्से में कान की तरफ खुलने वाली नली बंद होने से सांय-सांय की आवाजें आने लगती हैं. होली के मौके पर रासायनिक रंग कान में चले जाने से तो खतरा दो गुना हो जाता है.

बहरहाल, इएनटी विशेषज्ञ बताते हैं कि सुनने की क्षमता बरकरार रखने के लिए कुछ बातें ध्यान में रखनी जरूरी हैं. मसलन, पैदा होते ही बच्चे के कानों का टेस्ट कराना, 45 साल की उम्र के बाद कानों की नियमित जांच कराना. साथ ही, अगर आप शोरगुल वाली जगह, जैसे फैक्ट्री आदि में काम करते हैं तो कानों की सुरक्षा का इंतजाम कर लें, उदाहरण के लिए ऐसी जगह पर आप इयर प्लग लगा सकते हैं. यह ध्यान रखें कि 90 डेसिबल से कम आवाज आपके कानों के लिए ठीक है. 90 या इससे ज्यादा डेसिबल की आवाज कानों के लिए नुकसानदायक होती है. इससे बचना चाहिए.

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