दक्षा वैदकर
पिछले दिनों मैंने अमिताभ बच्चन और धनुष की फिल्म ‘शमिताभ’ देखी. इस फिल्म में गूंगे बने धनुष को किसी ऐसी दमदार आवाज की तलाश थी, जो उसकी आवाज बन सके. धनुष और अक्षरा कई लोगों का ऑडिशन लेते हैं, लेकिन उन्हें किसी की आवाज पसंद नहीं आती.
तभी कहीं से उनके कानों में एक आवाज आती है. एक ऐसी आवाज, जो बहुत प्रभावशाली होती है. भारी होती है और उसका एक स्टाइल होता है. वे दोनों पलटते हैं. सामने नजर आते हैं अमिताभ बच्चन. इस फिल्म में बिग बी की जगह किसी और हीरो को लिया ही नहीं जा सकता, क्योंकि उनके अलावा किसी अन्य हीरो की आवाज में वो बात नहीं है.
जब फिल्म में अमिताभ को पूछा जाता है कि क्या आप धनुष की आवाज बनेंगे? वह जोर से हंसते हैं और अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि आज तुम मेरी इस आवाज की तारीफ कर रहे हो, एक वक्त था जब इस आवाज को ही लोगों ने रिजेक्ट कर दिया था.
रेडियो के ऑडिशन में उन्हें यह कह कर मना कर दिया गया था कि आपकी आवाज बहुत भारी है. ठीक नहीं लगेगी. यह फिल्म में बताया कोई किस्सा नहीं, बल्कि सच्ची घटना है. महानायक अमिताभ बच्चन के साथ सच में ऐसा हुआ है. कितनी अजीब बात है. एक वक्त में जिसकी आवाज की बुराई की गयी थी, आज उसकी आवाज लोग अपनाना चाहते हैं. जब से लोगों को पता चला कि भारत-पाकिस्तान के मैच में अमिताभ बच्चन भी माइक संभालने वाले हैं, लोग उत्सुकता से टीवी से चिपक गये. इस बात का प्रोमोशन चैनल वालों ने भी कुछ इसी तरह किया कि मैच के दौरान आप सुनेंगे दुनिया की सबसे बड़ी आवाज. बिग बी की आवाज.
सोचनेवाली बात है कि यह सब क्यों हुआ? अमिताभ बच्चन भी वही हैं और आवाज भी वही है. फिर लोगों की मानसिकता क्यों बदल गयी! जवाब है, उन्होंने खुद पर विश्वास रखा. अपनी खूबियों यानी एक्टिंग पर फोकस किया. लोगों को उनकी एक्टिंग इतनी पसंद आयी कि उसके बाद उन्हें उनकी हर कमी भी खूबी लगने लगी. फिर वह लंबे पैर हों या भारी आवाज. सब स्टाइल बन गया.
बात पते की..
– लोग हमारे शरीर में विभिन्न तरह की कमियां निकालते हैं. उन कमियों को सुन दुखी होने से बेहतर है, हम अपनी अच्छी बात को निखारने में लगें.
– अपने अंदर छिपी अच्छी बातों को याद रखें. यह आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेंगी. लोगों की बातों पर न जायें, वे कल विचार बदल सकते हैं.