आर के लक्ष्मण बड़े गंभीर प्रवृत्ति के व्यक्ति थे. इस कारण लंबे अरसे तक एक ही कंपनी में काम करते हुए भी उनसे मेरा नजदीकी रिश्ता नहीं बन सका, लेकिन मिलना-जुलना होता रहता था. वे टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए कार्टून बनाते थे और मैं धर्मयुग के लिए काम करता था. उनके कार्टूनों के विषय-वस्तु और विचार बहुत ही उम्दा और प्रभावशाली होते थे.
यही कारण है कि जहां-जहां अखबार जाता था, उन चौपालों-चौराहों पर उनके कार्टूनों पर बातें की जाती थीं. लेकिन, जहां उनके विचार नये होते थे, वहीं उनकी शैली पुरानी थी. उनकी शैली पर उनके गुरु प्रतिष्ठित ब्रिटिश कार्टूनिस्ट डेविड लो का बड़ा प्रभाव था, जो अंत तक बना रहा. डेविड लो आजादी से पहले टाइम्स में ही कार्यरत थे और उन्हीं की सरपरस्ती में लक्ष्मण ने वहां काम करना प्रारंभ किया था. शैली के अनुकरण के बावजूद उन्होंने विचार के स्तर पर जो बदलाव और प्रयोग किये, वह भारत की कार्टून परंपरा में एक मिसाल है तथा कोई और कार्टूनिस्ट ऐसा नहीं कर सका.
यह बात भी उल्लेखनीय है कि कार्टून उनकी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था और हमेशा कार्टून के लिए प्रतिबद्ध रहे. लक्ष्मण एक राजनीतिक कार्टूनिस्ट थे. अन्य विधाओं की तरह अलग-अलग कार्टूनिस्ट अलग-अलग विषयों को लेकर रचनाएं करते हैं. उदाहरण के लिए, वाल्ट डिज्नी ने कभी राजनीतिक विषयों पर कार्टून नहीं बनाया. उसी तरह टॉम एंड जेरी के रचनाकारों विलियम हाना और जोसेफ बारबेरा ने भी कार्टूनों के जरिये राजनीति पर टिप्पणी नहीं की. ढब्बू जी सीरीज के मेरे कार्टूनों में भी राजनीति नहीं थी. ऐसे कार्टूनों में सामाजिक संदेशों की प्रमुखता थी.
लक्ष्मण का प्रतिनिधि चरित्र ‘कॉमन मैन’ (आम आदमी) था, जो साधारण नागरिक के नजरिये से देश की राजनीति और समस्याओं को देखा करता था. लक्ष्मण के इस चरित्र के बरक्स मेरा अनकॉमन चरित्र ढब्बू जी था. दोनों साथ और समानांतर चलते रहे. एक टाइम्स की शान था, तो दूसरा धर्मयुग का. यह सिलसिला तीस सालों तक जारी रहा था.
उनके कार्टून की लोकप्रियता इतनी थी कि उनकी बीमारी के दौरान उनके पुराने कार्टूनों को प्रकाशित किया जाता था. उनकी जगह खाली नहीं छोड़ी जा सकती थी या किसी और कार्टून से नहीं भरी जा सकती थी. लक्ष्मण की कला और कार्टून के प्रति प्रतिबद्धता से आज के कार्टूनिस्टों को बहुत कुछ सीखना चाहिए. उनके लिए कार्टून ही उनका जीवन था. वह हमेशा कार्टून में ही डूबे रहते थे. यह समर्पण कार्टूनिस्टों की आज की पीढ़ी में न के बराबर है. आज कमाई मुख्य लक्ष्य बन गया है. ऐसे कार्टूनिस्ट हैं, जिनमें राजनीतिक कार्टून बनाने की इच्छा और प्रतिभा दोनों है, लेकिन वे यह सोचने लग जाते हैं कि एनिमेशन में अधिक पैसा है या और कहीं अधिक कमाई हो सकती है. लक्ष्मण की लगन का ही नतीजा था कि वे इतने लंबे अरसे तक कार्टून बनाते रहे और लोगों द्वारा पसंद भी किये जाते रहे. इससे आज की पीढ़ी को सीखना चाहिए. उनके कार्टून हमारे लिए महत्वपूर्ण धरोहर हैं. (प्रकाश कुमार रे से बातचीत पर आधारित)
कार्टूनिस्ट लक्ष्मण पंचतत्व में विलीन
मुंबई. मशहूर कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ मंगलवार को किया गया. 94 वर्षीय लक्ष्मण का निधन सोमवार को हो गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित जानी-मानी हस्तियों ने कार्टूनिस्ट लक्ष्मण के निधन पर शोक जताया है. उन्हें मूत्र संबंधी संक्रमण के कारण 17 जनवरी को पुणो के एक अस्पताल में भरती करवाया गया था. उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था और उन्हें वेंटिलेटर (जीवन रक्षक प्रणाली) पर रखा गया था. दिवंगत उपन्यासकार आरके नारायण के भाई लक्ष्मण के परिवार में पत्नी कमला (लेखिका), पुत्र श्रीनिवास (पत्रकार) और पुत्रवधू उषा हैं.
आबिद सुरती सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट एवं लेखक