।। दक्षा वैदकर ।।
जब हम दुनिया से विदा होंगे, तो लोग हमें किस रूप में याद रखेंगे? क्या हमारे गुजर जाने की कमी उन्हें महसूस होगी? क्या हमारे बिना कोई काम अटकेगा? हमारे बिना कौन–कौन व्यक्ति किस–किस परेशानी से गुजरेगा? ये चंद ऐसे सवाल हैं, जो हम शायद ही कभी सोचते हों? लेकिन, हम सभी को सोचना चाहिए. इन सवालों के जवाब इस एक छोटी से कहानी में तलाशे जा सकते हैं.
बहुत समय पहले की बात है. एक आदमी अखबार पढ़ रहा था. शोक समाचार में उसने उसी की मृत्यु की सूचना देखी. वह घबरा गया कि ऐसा कैसे हो गया? गलती अखवारवालों की थी, जिसने गलतफहमी के चलते उसका नाम प्रकाशित कर दिया था.
कुछ पल बाद जब आदमी सामान्य हुआ, तो उसने सोचा कि अगर वाकई में मैं मर गया होता, तो लोग मुझे कैसे याद करते? यह सोच कर उसने शोक समाचार को पूरा पढ़ा. वह यह पढ़ कर हैरान हो गया कि उसके लिए मौत का व्यापारी और डाइनामाइट किंग जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया था. यह आदमी डायनामाइट का अविष्कार करने वाला अल्फ्रेड नोबेल था. यह सब पढ़ने के बाद अल्फ्रेड ने सोचा कि क्या मेरे मरने के बाद लोग मुझे ऐसे ही याद करेंगे?
इस खबर ने उन्हें भीतर तक हिला कर रख दिया था. अल्फ्रेड ने तय किया कि वह इस पहचान के साथ नहीं मरना चाहते कि लोग उन्हें मौत का व्यापारी कह कर याद करें. इसके बाद से अल्फ्रेड दुनियाभर में शांति प्रयासों में लग गये. यहीं नहीं उन्होंने अपने नाम से नोबेल पुरस्कार की स्थापना की.
आज दुनिया उन्हें महान नोबेल पुरस्कार के जनक के तौर पर याद करती है. अल्फ्रेड की तरह हमें भी दिल की आवाज सुननी होगी कि हम जो कर रहे हैं, वह अच्छा है या बुरा? हम जो कर रहे हैं, वह कितना महत्वपूर्ण काम है? हम सभी को कोशिश करनी चाहिए कि घर, ऑफिस, समाज में ऐसा कोई काम करें, ऐसे संबंध बनायें कि लोग हमारे मरने के बाद हमें किसी अच्छी वजह से याद करें.
यदि शोक समाचार में खबर छपे तो उसमें मिलनसार, खुशमिजाज, मेहनती, कर्मठ, समाजसेवी, शहर को कोई बड़ी चीज देने वाले, कोई बड़ा काम करने वाले आदि रूपों में हमारा जिक्र हो.
– बात पते की
* कॉपी–पेन उठा लें और अपने लिए शोक संदेश लिखने का प्रयास करें. सोचें कि आपका शोक संदेश अखबार में छपेगा, तो उसमें क्या–क्या खूबियां होंगी.
* हर रात को खुद से यह सवाल पूछें कि दिनभर में मैंने क्या अच्छा काम किया. रोज सुबह एक लिस्ट बनायें कि आज मुझे फलां–फलां काम करने हैं.