।। हुसैनकच्छी ।।
– सावन आ गया है, यह जानने के लिए पंचांग देखने की जरूरत नहीं होती. हवा-बादल से लेकर भक्ति, उमंग, राग-रंग तक इसकी खबर खुद-ब-खुद दे देते हैं. सावन खेती-बारी का प्राण है, मेढक-झींगुर की तान है. बच्चों का झूला है, नव-ब्याहताओं के नैहर की राह है. लेकिन, कंक्रीट के जंगलों में रहनेवालों के लिए सावन मुसीबत है. उफनाती नालियां और जल-जमाव है. घर से दफ्तर और दफ्तर से घर की रूटीन में बाधा है. सावन की बूंदे अब हमें मतवाला नहीं करतीं. हमारे गले से कजरी और सावन के बोल नहीं फूटते. हमारा दिल झूला झूलने को नहीं मचलता, शायद हमने ही सावन को रूठने पर मजबूर कर दिया है. –
घनघोर घटाएं, आसमान में उमड़ते काले बादल, दिन में भी थोड़ा- थोड़ा अंधेरा और सहमा-भीगा समां, उमस और फिर मूसलधार बारिश, गरजते बादल, कड़कती बिजलियां. यह मंजर जब सामने होता है, तो हर खास-व-आम, बड़ों और बच्चों को पता चल जाता है कि सावन आ पहुंचा है और फिर हर नर-नारी अपनी पसंद, रिवायत, मिजाज और हैसियत के मुताबिक सावन का इस्तकबाल करता है. बरसात के इस मौसम को हमारी तहजीब व रिवायत में हमेशा खास अहमियत हासिल रही है. सावन खुशहाल लोगों को आरामदेह घरों के लॉन में बैठ कर मनचाही चीजें खाने, झूला झूलने, आइसक्रीम का मजा लेने या फिर बरामदों-बालकनियों में बैठ कर कॉफी/चाय की चुसकियों के साथ नजारा करने का मौका देता है.
दूसरी तरफ गरीब बस्तियों और तंग गलियों के रहनेवाले भी मौसम के मुताबिक कुछ न कुछ बंदोबस्त करना चाहते हैं. और कुछ नहीं तो मुहल्ले की दुकान से बेसन, आलू लाकर पकौड़े से शौक पूरा करते हैं, बावजूद इसके कि महंगाई के मारे हुए ज्यादातर लोगों के लिए सावन मुसीबतों का रेला लेकर आता है. बारिश सिर्फ कवियों-शायरों के लिए ही एक रूमानी प्रेरणा साबित नहीं होती, बल्कि गरमी से तपी धरती भी हरी-भरी हो जाती है. वहीं, गरमी से राहत पाये लोग बारिश के पानी से धन्य हो जाते हैं, तो कागज की नाव चलानेवाले बच्चों की दीवानगी देखने लायक होती है.
सूफी शायर अमीर खुसरो ने बरसात पर क ई गीत लिखे, जिनके बारे में मौलाना मुहम्मद हुसैन आजाद ने लिखा कि 600 बरस गुजर गये, मगर आज भी बरसात में अमीर खुसरो के गीत वैसा ही लुत्फ दे जाते हैं. मौलाना अपनी किताब ‘आबे हयात’ में लिखते हैं कि लड़कियों के लिए भी सावन के गीत मौजूद हैं, जिसमें लड़की ससुराल में है, बरखा रुत आयी, वह मायके की याद में गाती है : अम्मा मेरे बाबा को भेजो जी के सावन आया..
मिर्जा गालिब ने मूसलधार बारिश के बाद घंटों अपने घर की छत टपकने का जिक्र अपनी शायरी में किया है. सावन के फिल्मी गीतों ने भी जादू जगाया है. ‘तेरी दो टकियों की नौकरी, मेरा लाखों का सावन जाये’ और ‘एक तो ये बैरी सावन दूजे मेरा चंचल मन’ एवं ‘बरसे रे सावन, भीगे मेरा मन, कहीं भीग न जाये बदन मेरा, अपनी छतरी में मुझको छिपा लेना’ वगैरह नौजवान तबके के दिल की आवाज बन गये. सावन मुहावरों में भी खास अहमियत रखता है, जहां ‘सावन के अंधे को सब हरा ही हरा नजर आता है’ शायद सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ.
आजकल सदियों पुराना सावन फीका पड़ रहा है, फिर भी शौकीन लोग इसका रंग चुरा ही लेते हैं. महंगाई और रोजमर्रा की मुश्किलों ने हालांकि बड़ी संख्या में लोगों को छोटी-छोटी खुशियां मनाने के काबिल भी नहीं छोड़ा, फिर भी वे सावन को अपने तरीके से मनाने का कोई न कोई जरिया ढूंढ़ ही लेते हैं. औरतें हरी चूड़ियों और साड़ी से दिल की हरियाली को बयान करती हैं, तो बच्चे कागज की किश्तियां बना कर पानी में छोड़ते हैं और फिर उनके डूबने पर तालियां बजाते हैं.
आज सुदर्शन फाकिर की लिखी नज्म ‘वो कागज किश्ती,वो बारिश का पानी’ का आनंद लीजिए जिसे जगजीत सिंह ने अपनी मखमली आवाज से गाकर अमर बना दिया है. और कुछ न समझ आये तो मौका निकाल कर शोमा घोष की आवाज में ‘पिया मेहंदी मंगवा द, मोतीझील से, जाके साइकिल से न..’ सुनिए. बिस्मिल्ला खां साहब की शहनाई की खनक इस गीत के साथ अलग से कजरी सुनाती है. और अगर शोमा वाला आसानी से न मिले तो शारदा सिन्हा की आवाज में तो सब जगह मिल जायेगा, उसे ही सुनिए ‘कइसे खेलै जइबू सावन में कजरिया बदरिया घेरी आयी ननदी..’
सावन इस बार खास तौर पर मुबारक मौका बन कर आया है. एक तरह फिजा में ‘जय बमभोले’ की गूंज है, तो दूसरी तरफ रोजेदारों की अकीदत. ईद की सिवइयां भी इस सावन को खास बनायेंगी. सावन जाते-जाते भाइयों की कलाइयों पर बहनों का प्यार सजा जायेगा.. तो फिर जिंदगी के मसलों को किनारे रखिए और एक महीने तक सावन की हरियाली में अपना तन-मन डुबो लीजिए.