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पुआल से बनेंगे घर और फर्नीचर

16 साल की बिस्मन दिउ ने धान के अवशेष से बनाया वुड बोर्ड राजीव चौबे मकान पक्के बनते जा रहे हैं. गांवों में पशुओं की संख्या भी घट रही है. ऐसे में पुआल का इस्तेमाल कम होता जा रहा है. अब बहुत से किसान धान अलग करने के बाद खेत में ही पुआल जला देते […]

16 साल की बिस्मन दिउ ने धान के अवशेष से बनाया वुड बोर्ड
राजीव चौबे
मकान पक्के बनते जा रहे हैं. गांवों में पशुओं की संख्या भी घट रही है. ऐसे में पुआल का इस्तेमाल कम होता जा रहा है. अब बहुत से किसान धान अलग करने के बाद खेत में ही पुआल जला देते हैं. लेकिन दिल्ली की एक स्कूली छात्र ने इससे वुड बोर्ड तैयार किया है, जो लकड़ी की तरह मजबूत है.
16 साल की छात्र बिस्मन दिउ ने धान के पुआल और भूसी के निबटान का एक फायदेमंद उपाय निकाला है. उन्होंने इसका इस्तेमाल वुड बोर्ड बनाने में किया है, जिसका लकड़ी की तरह इस्तेमाल हो सकता है. दक्षिण भारत की मूलवासी और खेतिहर पृष्ठभूमि से आनेवाली बिस्मन दिल्ली में अपने मां-बाप के साथ रह कर पढ़ाई कर रही हैं. वह बताती हैं, ‘‘हर साल जब सर्दी की छुट्टियों में मैं गांव जाती हूं, तो मुझे चारों ओर खेत में पुआल ही नजर आता है.
कुछ लोग उसे पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं, तो कई उसे अपने खेत में ही इकट्ठा कर जला देते हैं. इससे प्रदूषण बढ़ता है. यहां तक कि लोगों को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है. तब मैंने सोचा कि क्या इसका कोई बेहतर इस्तेमाल नहीं हो सकता?’’
यह एक तथ्य है कि दुनियाभर में आधे से ज्यादा लोग मुख्य भोजन के तौर पर चावल खाते हैं. हर पांच टन चावल तैयार करने में एक टन भूसी निकलती है. यह भूसी और पुआल किसानों के लिए जलाने के अलावा किसी और काम नहीं आते.
भूसी व पुआल से वुड बोर्ड, जिसे उन्होंने ‘ग्रीन वुड’ नाम दिया है, तैयार करनेवाली बिस्मन बताती हैं, ‘‘गांवों में रहनेवाले किसान मिट्टी के घरों में रहते हैं, जो मौसम की मार नहीं झे ल पाते. मैं इस ग्रीन वुड के जरिये लोगों को घर बनाने के लिए किफायती निर्माण सामग्री मुहैया कराना चाहती हूं.
यही नहीं, इससे किसानों को बेकार भूसी से पैसे कमाने का भी मौका मिलेगा.’’ आगे चल कर अर्थशास्त्र की पढ़ाई करने की इच्छा रखने वाली बिस्मन बताती हैं, ‘‘सोशल इनोवेशन रिले इनीशिएटिव की मदद से मैंने इसका एक प्रोटोटाइप तैयार किया. इसके लिए अपने घर की रसोई में इस भूसी को प्राकृतिक गोंद के साथ मिला कर एक बोर्ड का आकार दिया. इसे प्रेस करने के बाद सूख कर यह एक ठोस और मजबूत बोर्ड बन गया, जिसे मैंने ग्रीन वुड का नाम दिया है.’’ यहां यह जानना जरूरी है कि सोशल इनोवेशन रिले इनीशिएटिव एक ऐसा मंच है, जो बिस्मन जैसी नयी प्रतिभाओं की सोच को आकार देने में मदद करता है. बिस्मन कहती हैं, ‘‘इस बोर्ड पर पानी का कोई असर नहीं पड़ता, जिससे यह घर बनाने के लिए इस्तेमाल की जानेवाली चीजों का एक बेहतर विकल्प पेश करता है.’’
यही नहीं, वह इस ग्रीन वुड का इस्तेमाल स्कूलों के लिए सस्ते फर्नीचर बनाने में भी करना चाहती हैं.बिस्मन अपने ग्रीन वुड के प्रोटोटाइप को और बेहतर, टिकाऊ और मजबूत बनाने की तैयारी में लगी हैं. उनके इस प्रोटोटाइप में कई कंपनियां रुचि ले रही हैं. इस बारे में बिस्मन का कहना है, ‘‘मैंने कुछ डिजाइन तैयार किये हैं और उसे बेहतर बनाने की कोशिश कर रही हूं.
लेकिन इसके साथ ही मैं अपनी पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दे रही हूं. मुझे आशा है कि जल्द ही यह ग्रीन वुड ज्यादा से ज्यादा लोगों की पहुंच में होगा.’’
उनका यह अनोखा प्रयोग यूनिसेफ की ‘स्टेट ऑफ द वल्र्डस चिल्ड्रेन रिपोर्ट 2015’ में शामिल किया जा चुका है. इसमें नयी तकनीक और नवोन्मेष पेश करनेवाले दुनिया भर के कई देशों के बच्चे शामिल हैं.
अपनी कोशिश से एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान बना चुकीं बिस्मन, युवा नवोन्मेषियों से मिल कर प्रेरित महसूस करती हैं. वह कहती हैं, अपनी तरह के लोगों से मिलने का यह अनुभव बड़ा अच्छा रहा. मुझे यह जान कर खुशी हुई कि इस दुनिया में मेरी तरह कई बच्चे हैं जो अपनी कोशिशों से दुनिया को एक नयी राह दिखा रहे हैं. साथ ही, वहां मुझे यह जानने का भी मौका मिला कि हम युवाओं की सोच किसी दायरे से बंधी नहीं है.

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