नयी दिल्ली:मातृत्व संबंधी स्वास्थ्य कार्यक्रमों की हाल ही में की गयी समीक्षा में पाया गया है कि छह राज्यों में आपात स्थिति में प्रसव के लिए प्रशिक्षित चिकित्सा अधिकारी जटिल मामलों में पंप (वेन्टॉज) और चिमटियों (फोरसेप्स) का उपयोग नहीं कर पाते. मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तरप्रदेश के चिकित्सा अधिकारी और स्त्रीरोग विशेषज्ञ या तो सामान्य प्रसव को या फिर सीजेरियन को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि ये लोग पंप और चिमटियों का उपयोग नहीं कर पाते. चिकित्सा अधिकारियों ने बताया कि केवल ओड़िशा में पंप का उपयोग कर प्रसव को प्राथमिकता दी जाती है. प्रसव के दौरान सही प्रगति न होने पर नवजात को निकालने में मदद के लिए चिमटियों या पंप का उपयोग किया जाता है.
दवाओं का अभाव
समीक्षा में पाया गया है कि ‘मेडिकल टर्मिनेशन प्रेग्नेन्सी एक्ट(एमटीपी कानून) का राज्यों में समुचित कार्यान्वयन नहीं किया जा रहा है तथा सामाजिक कलंकसे बचने के लिए लोगों की पहली पसंद निजी क्लीनिक होते हैं. जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत राज्यों में एंबुलेंस सेवाएं नहीं हैं. अधिकारियों ने पाया कि शिकायत निवारण प्रकोष्ठों की संख्या भी बहुत ही कम है. राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी) के बारे में भी अधिकारियों को ज्यादा जानकारी नहीं है. जबकि उत्तर प्रदेश और झारखंड में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत दी जाने वाली दवाओं का अभाव है. इन राज्यों में प्रशिक्षण का भी घोर अभाव है.