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लोगों को समझाते वक्त अपने गुस्से पर रखें काबू

।। दक्षा वैदकर ।। सुबह मीटिंग के बाद मेरा मन कुछ ठीक नहीं था. घर पहुंची, तो उदास चेहरा देख पड़ोस के दादा जी ने वजह पूछ ली. मैंने कहा, ‘‘कुछ लोगों को समझ में ही नहीं आता. रोज एक ही गलती करते हैं. रोज उन पर चिल्लाती हूं, उन्हें समझाती हूं कि ये ऐसे […]

।। दक्षा वैदकर ।।

सुबह मीटिंग के बाद मेरा मन कुछ ठीक नहीं था. घर पहुंची, तो उदास चेहरा देख पड़ोस के दादा जी ने वजह पूछ ली. मैंने कहा, ‘‘कुछ लोगों को समझ में ही नहीं आता. रोज एक ही गलती करते हैं. रोज उन पर चिल्लाती हूं, उन्हें समझाती हूं कि ये ऐसे नहीं, ऐसे करना था. लेकिन वो हैं कि दूसरे दिन फिर वही गलती करते हैं. ऊपर से मुझसे नाराज हो जाते हैं. मुझे क्या चिल्लाने में मजा आता है? मैं तो उनकी भलाई के लिए उन पर चिल्लाती हूं.’’

दादा जी बोले, ‘‘दरअसल जब कोई व्यक्ति गलती करता है या ठीक से काम नहीं करता है, तो हमें भीतर से चिड़चिड़ाहट होती है. फिर हम भले ही उसे नेक इरादे से कोई बात क्यों न कहें, उसमें हमारी चिड़चिड़हाट झलक जाती है. ध्यान देने की बात यह है कि जब आप किसी पर गुस्सा करते हैं, तो सामनेवाले को चोट पहुंचती है. आप उसे चिल्लाते हुए समझाते हैं कि यह गलती हुई है, इसे इस तरह सुधारा जाना चाहिए, तब सामनेवाले का ध्यान आपकी बातों के बजाय अपनी चोट पर चला जाता है.

वह सुनता तो आपकी बात है, लेकिन उसका दिमाग कहीं और व्यस्त हो जाता है. उसके दिमाग में विचार चल रहे होते हैं कि ये मुझ पर कितनी जोर से चिल्लाये, वह भी इतने सारे लोगों के सामने, यह कोई बात करने का तरीका है क्या, यह चीज प्यार से भी तो समझा सकते थे.

तुम खुद ही सोचो, अगर कोई रास्ते में गिर गया है. उसे चोट लग गयी है और आप पास खड़े होकर ज्ञान देने लगेंगे, तो क्या सामनेवाला सुनेगा? नहीं. उसका ध्यान अपनी चोट व दर्द पर है. आपको जरूरत है कि पहले उसकी चोट पर मरहम लगायें. जब वह शांत हो जाये, तो उसे बिना चिल्लाये शांत तरीके से समझायें.

कई बार लोग एक ही गलती बार-बार करते हैं और बॉस चिल्लाते हैं कि इस गलती पर मैं तुम्हें पहले भी डांट चुका हूं, समझा चुका हूं कि कैसे करना है, फिर भी तुमने यह गलती दोबारा क्यों की? दरअसल आप जितनी भी बार समझाते हैं, हर बार चिल्लाते हुए ही समझाते हैं. हर बार सामनेवाला आपकी ऊंची आवाज, हाव-भाव से चोटिल हो जाता है और उसका ध्यान अपने घावों की तरफ चला जाता है. बेहतर है कि लोगों को कोई भी चीज बिना चिल्लाये ही समझायें.’’

– बात पते की

* अपने नेक इरादों को जाहिर करनेवाले शब्दों में चिड़चिड़ाहट व गुस्से को शामिल न होने दें. ये आपकी सारी मेहनत पर पानी फेर देंगे.

* हर बात को दो तरह से समझाया जा सकता है, एक चिल्ला कर और दूसरा शांत भाव से. चिल्लायेंगे, तो सामनेवाला आपकी बात कभी नहीं समझेगा.

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