बिहार में खरीफ की खेती अब भी वर्षा पर निर्भर है. सरकार हर साल कई करोड़ रुपये जल संसाधन पर खर्च करती है, लेकिन अब भी 93.6 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से केवल 56.03 लाख हेक्टेयर जमीन में ही शुद्ध रूप से खेती होती है और केवल 33.57 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि ही सिंचित है.
मॉनसून अगर साथ दे, तो किसानों का सौभाग्य और अगर वह दगा दे, तो किसानों का दुर्भाग्य. यानी बिहार में खेती अब भी मौसम के साथ जुआ है. पंचायत चुनाव के बाद भी राज्य की खेती की वर्षा पर निर्भरता कम नहीं हुई है. सरकार परंपरागत जल संरक्षण के लिए किसानों को तैयार नहीं कर पायी है. पंचायतों के माध्यम से सिंचाई के लिए किसानों को डीजल के लिए सब्सिडी किसी ठोस नतीजे का विषय साबित नहीं हुई. इस साल भी किसान वर्षा पर निर्भर हैं. इस साल रोहण नक्षत्र में, मॉनसून पूर्व अच्छी वर्षा हुई है. मौसम पूर्वानुमान विभाग के मुताबिक इस साल वर्षा अच्छी होगी, लेकिन यह अनुमान है. हर साल खरीफ की खेती को लेकर यह चिंता रहती है. आखिर यह स्थिति और कितने दशकों तक चलेगी? क्यों है यह स्थिति? कैसे दूसरे राज्यों ने जल संकट से निबटने का रास्ता निकाला? क्या ये रास्ते हमारे लिए अनजाने हैं? क्या है सरकार के पास मॉनसून के दगा देने पर खेती को बचाने की तैयारी? क्या सोच रहे हैं किसान? कैसे किसान ढूंढ रहे हैं वैकल्पिक सिंचाई के साधन? इन्हीं विषयों पर हम इस अंक में बात कर रहे हैं.
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