पाकिस्तान के उर्दू मीडिया में तहरीके इंसाफ़ पार्टी के नेता इमरान ख़ान की तरफ़ से नवाज़ शरीफ़ सरकार को दिए तीस नवंबर के अल्टीमेटम को नए संकट की आहट समझा जा रहा है.
शरीफ़ पर चुनावी धांधली और भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाले इमरान नए सिरे से सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं.
दैनिक दुनिया के मुताबिक़, इमरान ख़ान ने कहा है कि 30 नवंबर तक इंसाफ़ न हुआ तो सरकार का चलना नामुमकिन हो जाएगा.
अख़बार के संपादकीय में इमरान के सहयोगी और अवामी मुस्लिम लीग के प्रमुख शेख़ रशीद का ये बयान भी है कि जनता भ्रष्ट और बेईमान सरकार से झुटकारा पाने के लिए मारे, मरे और घेराव करें.
इमरान को नसीहत
वहीं नवाए वक़्त ने लिखा है कि बेशक इमरान ख़ान के 30 नवंबर के बाद देश में अफ़रातफ़री पैदा करने वाले आह्वान को सही नहीं ठहराया जा सकता है लेकिन सरकार में बैठे लोगों के लक्षण भी तो ठीक नहीं हैं.
अख़बार कहता है कि जनता ने पिछली सरकार से मायूस होकर इस उम्मीद में नवाज़ शरीफ़ को जनादेश दिया था कि वो रोज़ी-रोटी की समस्या और बिजली संकट से उसे निजात दिलाएंगे, क्या सरकार इस जनादेश के तक़ाज़ों को पूरा कर पाई है.
वहीं जंग ने चुनावी धांधलियों की जांच करने वाले आयोग में सेना या उससे जुड़ी एजेंसियों को शामिल न करने के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के फ़ैसले को सही ठहराया है.
इस आयोग में सेना के अधिकारियों को शामिल करने की मांग करने वाले इमरान ख़ान को अख़बार की नसीहत है कि सेना को सियासत, धर्म और सांप्रदायिक वर्गों को अलग रख कर देखा जाना चाहिए.
बढ़ती आबादी
पाकिस्तान में 1.95 प्रतिशत से बढ़ रही आबादी पर रोज़नामा एक्सप्रेस लिखता है कि पाकिस्तान दुनिया का छठा सबसे घनी आबादी वाला देश बन गया है और अगर यही रफ़्तार जारी रही तो 2050 तक इसकी आबादी 34 करोड़ को भी पार कर जाएगी.
अख़बार कहता है कि बढ़ती आबादी भोजन, आवास, रोज़गार, स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी समस्याएं बढ़ रही है.
अख़बार का सुझाव है कि जनसंख्या रोकने के लिए परिवार नियोजन पर अमल के अलावा पाकिस्तानी सीमाओं पर भी सख़्ती करनी होगी ताकि बड़ी संख्या में शरणार्थी न आएं.
‘इंसाफ़ की जीत’
रुख़ भारत का करें तो जम्मू कश्मीर में मछिल फ़र्ज़ी मुठभेड़ के मामले में सेना के दो अफ़सरों समेत सात जवानों को हुई उम्रक़ैद की सज़ा को राष्ट्रीय सहारा ने इंसाफ़ की जीत बताया है.
अख़बार कहता है कि ज़रूरत इस बात की भी है कि राज्य में सेना को मिले असीमित अधिकारों पर सरकार और सेना के शीर्ष अफ़सर फिर से विचार करें.
पिछले दिनों जवाहर लाल नेहरू की 125वीं जयंती के मौक़े पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच हुए वाक् युद्ध को हमारा समाज ने अपने संपादकीय का विषय बनाया है.
अख़बार लिखता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार द्वारा इंदिरा गांधी को नज़र अंदाज़ किए जाने पर कांग्रेस को बुरा लगा और इसीलिए कांग्रेस ने मोदी को अपने कार्यक्रम में नहीं बुलाया.
अख़बार की राय है कि चूंकि नेहरू देश और राष्ट्र की तरक़्क़ी के लिए एक जैसी सोच रखते थे, इसीलिए सभी पार्टियों को बिना किसी भेदभाव के उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देनी चाहिए.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप में फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)