आज हर बड़ी कंपनी गांव की ओर रुख करने को बेताब है. कारण कि उन्हें गांव में दोहरा लाभ दिखता है. गांव के कारीगरों से औने-पौने दामों पर सामान खरीदा, रंग-रोगन और ब्रांडिंग की, फिर उन्हीं से मनमाना दाम पर बेच भी दिया.
यह है बिजनेस ट्रिक. आप ही की टोपी आप ही के सिर. दूसरी तरफ गांव के कारीगर अभी व्यावसायिक रूप से दक्ष नहीं हैं. कैसे अपने उत्पाद को आकर्षक बनाया जाये. इसके लिए न तो गांव में संसाधन ही है और न वैसी हुनर. बड़ी-बड़ी कंपनियों की दखल से अपने गांव के बाजार को बचाने के लिए खुद अपने अंदर वह कमाल पैदा करना होगा. ग्रामीण बाजार पर स्थानीय उद्यमियों और छोटे व्यवसायियों की पकड़ मजबूत बने, इसके लिए नये बाजार के अनुरूप तैयारी करनी होगी. तभी बात बन सकती है. इसी कड़ी में इस अंक में हम समस्तीपुर के दूर देहात की महिलाओं के काम की चर्चा करते हैं. वे घर के पुराने हो चुके कपड़ों व ड्रेस मटेरियल का कैसे बेहतर इस्तेमाल कर रही हैं. कैसे उनके बनाये उत्पाद की बाजार में भी धमक है. यह अपने आप में नजीर है.
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