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जब घर ही न रहा, तो मोह-माया कैसा!

किसी के आंसू में बड़ी ताकत होती है. मोहतरमा आज कल अपने इन्हीं आंसुओं को आजमा रही हैं. कई जगह अश्क बहा रही हैं. कहीं न कहीं, कभी न कभी तो कोई पिघलेगा. पहले सब एक साथ मिल जुल कर रहते थे. अब चाहे-अनचाहे बंटवारा हो गया है. नये साहब जब बेघर हुए, तो उनके […]

किसी के आंसू में बड़ी ताकत होती है. मोहतरमा आज कल अपने इन्हीं आंसुओं को आजमा रही हैं. कई जगह अश्क बहा रही हैं. कहीं न कहीं, कभी न कभी तो कोई पिघलेगा. पहले सब एक साथ मिल जुल कर रहते थे. अब चाहे-अनचाहे बंटवारा हो गया है. नये साहब जब बेघर हुए, तो उनके लिए रोने लगीं.
हार-जेवर बेच कर उनके लिए घर बनाने की बात करने लगीं. उनका रोना जब सरेआम हुआ, तो किसी ने नुकसान का एहसास कराया. पुराने घर के मुखिया की याद दिलायी. इसके पहले की संभल पातीं, मुखिया ने घर से ही निकाल दिया. अब जब घर ही न रहा, तो मोह-माया कैसा! अब एक बड़े बंगले का सपना देख रही हैं. गुपचुप तरीके से उसके आसपास घूम रही हैं, निहार रही हैं. हैसियत चाहे जो हो. अरमान पालने में क्या हर्ज है.

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