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‘यदि ये राहुल गांधी ने कहा होता तो..’

शालू यादव बीबीसी संवाददाता, नई दिल्ली से हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक निजी अस्पताल का उद्घाटन करते हुए कहा कि प्राचीन भारत में जेनेटिक साइंस यानि आनुवांशिक विज्ञान का इस्तेमाल किया जाता था. उनके इस बयान पर वैज्ञानिक समुदाय में तो कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं हुई लेकिन जाने-माने पत्रकार करण थापर ने […]

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हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक निजी अस्पताल का उद्घाटन करते हुए कहा कि प्राचीन भारत में जेनेटिक साइंस यानि आनुवांशिक विज्ञान का इस्तेमाल किया जाता था.

उनके इस बयान पर वैज्ञानिक समुदाय में तो कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं हुई लेकिन जाने-माने पत्रकार करण थापर ने जब ‘द हिंदू’ अख़बार के एक लेख में इस पर सवाल उठाए, तो एक बहस छिड़ गई.

क्या वाक़ई प्रधानमंत्री के दावों में दम है? बीबीसी की ख़ास पड़ताल.

शालू यादव की रिपोर्ट

कभी न कभी आपने भी अपने आसपास के लोगों से ये बात सुनी होगी कि आधुनिक विज्ञान की जड़ें प्राचीन भारत में हैं. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से ये बयान आया तो एक नई बहस छिड़ गई.

पिछले हफ़्ते एक अस्पताल का उद्घाटन करते हुए मोदी ने कहा था, "महाभारत का कहना है कि कर्ण मां की गोद से पैदा नहीं हुआ था. इसका मतलब ये हुआ कि उस समय जेनेटिक साइंस मौजूद था. तभी तो मां की गोद के बिना उसका जन्म हुआ होगा. हम गणेश जी की पूजा करते हैं. कोई तो प्लास्टिक सर्जन होगा उस ज़माने में, जिसने मनुष्य के शरीर पर हाथी का सर रख के प्लास्टिक सर्जरी का प्रारंभ किया हो."

बयान से निराशा

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जहां कुछ वैज्ञानिकों ने उनके समर्थन में भारतीय प्राचीन विज्ञानविद्या के पक्ष में नए तर्क देने शुरू कर दिए हैं, वहीं कुछ ने प्रधानमंत्री के बयान पर निराशा व्यक्त की है.

जाने-माने वैज्ञानिक प्रॉफ़ेसर यशपाल ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "गणित, ऑलजेब्रा और खगोल विद्या इस क्षेत्र से शुरू हुए तो वो हमें पढ़ाए भी गए. यहां तक दावा करना ठीक है. लेकिन इस तरह के दावों का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि श्रीगणेश के शरीर पर हाथी का सर प्लास्टिक सर्जरी के माध्यम से लगाया गया होगा."

शायद नरेंद्र मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने बिना किसी वैज्ञानिक आधार के ये बात कही है.

गुजरात में उन्होंने उस स्कूली किताब का भी प्राक्कथन लिखा था जिसमें ये कहा गया था कि भगवान राम ने पहला हवाई जहाज़ उड़ाया था और स्टेम सेल तकनीक भी प्राचीन भारत में मौजूद थी.

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ऐसा नहीं है कि सभी लोग प्रधानमंत्री मोदी के बयान पर सवाल उठा रहे हों.

आत्मविश्वास का सवाल

कृषि विज्ञानी और जीन संबंधित तकनीक के जानकार देवेंद्र शर्मा ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि भारतीय विज्ञान को सदियों से भारतीय शिक्षा प्रणाली में नज़रअंदाज़ किया गया. प्रधानमंत्री के बयान से भारतीय वैज्ञानिकों को निराश होने की बजाय उनका आत्मविश्वास बढ़ना चाहिए.

कृषि विज्ञानी देवेंद्र शर्मा का कहना है, "जो कौरव थे, वो सौ भाई थे और हम जानते हैं कि कोई मां सौ बच्चे नहीं पैदा सकती है. ये लिखा गया है कि गांधारी ने कुछ मिट्टी के घड़ों में किसी पदार्थ का छिड़काव किया था, जिससे कौरव पैदा हुए. तो इसका मतलब ये हुआ कि कौरव क्लोन थे. तो ये आनुवांशिक विज्ञान का ही उदाहरण है."

दूसरी ओर ऑल इंडिया फ़ोरम फ़ॉर राइट टू एजुकेशन की सह-संस्थापक प्रोफ़ेसर मधु प्रसाद ने प्रधानमंत्री के बयान को संविधान के अनुच्छेद 51ए का उल्लंघन बताया जिसमें कहा गया है कि वैज्ञानिक विचारधारा रखना हर भारतीय नागरिक का मूलभूत कर्तव्य है.

शिक्षा को लेकर चिंता

प्रोफ़ेसर मधु प्रसाद का कहना है, "एक तरफ़ तो प्रधानमंत्री नई तकनीक की बात करते हैं और कहते हैं कि भारत को बुलेट ट्रेन जैसी नई तकनीकों की ज़रूरत है और दूसरी ओर वे मानते हैं कि वेदों में विज्ञान बसा है. तो अगर ऐसा है तो फिर वे क्यों पश्चिमी देशों से नई तकनीक की दर्ख़ास्त करते हैं? अगर यही बात राहुल गांधी या मुलायम सिंह ने कही होती तो मीडिया और वैज्ञानिकों ने बवाल कर दिया होता, लेकिन मोदी के ख़िलाफ़ लोग आवाज़ उठाने से डरते हैं."

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प्रॉफ़ेसर मधु प्रसाद ने ये भी कहा कि ऐसी धारणाओं को अगर स्कूल की किताबों में शामिल करवाया गया तो ये भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए एक ख़तरनाक चीज़ साबित हो सकती है.

भारत में प्राचीन दौर में विज्ञान का कितना महत्व था, ये साबित तो नहीं हो पाया है, लेकिन प्रधानमंत्री के इस बयान ने एक आधुनिक बहस ज़रूर छेड़ दी है.

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