चीन का मानवरहित अंतरिक्ष यान चंद्रमा तक जाकर सफलतापूर्वक धरती पर लौट आया है. चीन से पहले केवल सोवियत संघ और अमेरिका ही यह कामयाबी हासिल कर पाये थे.दुनिया में कैसे हुई चंद्र मिशन की शुरुआत, अमेरिका और सोवियत संघ के अभियानों को कितनी मिली सफलता, भारत की इस क्षेत्र में क्या है स्थिति, कैसी हैं चंद्रमा से लायी गयी चट्टानें और चंद्रमा पर अनुसंधान के क्या-क्या हैं फायदे, बता रहा है आज का नॉलेज..
नयी दिल्ली: चीन ने चंद्रमा तक जाकर वापस आने का अपना पहला मिशन सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है. चंद्रमा तक गया चीन का मानवरहित अंतरिक्ष यान धरती पर वापस लौट आया है. इसके साथ ही चीन पूर्व सोवियत संघ और अमेरिका के बाद इस प्रकार के मिशन को अंजाम देनेवाला दुनिया का तीसरा देश बन गया है. हालांकि, पूर्व सोवियत संघ और अमेरिका चंद्रमा से अपने यान की वापसी के मिशन को करीब चार दशक पहले ही अंजाम दे चुके हैं. इससे पहले इस तरह के आखिरी मिशन को 1970 के दशक में पूर्व सोवियत संघ ने अंजाम दिया था.
इस अभियान के पूरा होने के साथ चीन अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक कदम और आगे बढ़ा चुका है. विगत माह चंद्रमा की कक्षा में भेजा गया यह चीनी परीक्षण यान चीन के भीतरी मंगोलिया स्वायत्त क्षेत्र में सफलतापूर्वक लौट आया. चीन की समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार, बीजिंग से करीब 500 किलोमीटर दूर निर्धारित स्थल पर यान को सफलतापूर्वक उतारा गया. अपने आठ दिन के मिशन में इस यान ने करीब आठ लाख 40 हजार किमी का सफर तय किया. इस यान ने उड़ान के दौरान पृथ्वी और चंद्रमा की बेहतरीन तस्वीरें ली हैं. पृथ्वी पर यह यान करीब 11.2 किमी प्रति सेकेंड के वेग उतरा.
उल्लेखनीय है कि चीन ने चंद्रमा पर जाने के लिए अपने भावी मिशन ‘चांग-5’ में इस्तेमाल की जानेवाली टेक्नोलॉजी के परीक्षण के लिए 24 अक्तूबर को इस मानवरहित अंतरिक्ष यान ल्यूनर ऑर्बिटर को लॉन्च किया था. यह यान चीन के दक्षिण-पश्चिमी सिचुआन प्रांत स्थित शीचांग सैटेलाइट प्रक्षेपण केंद्र से प्रक्षेपित किया गया था. इस यान में इस्तेमाल की गयी टेक्नोलॉजी का उपयोग ‘चांग-5’ मिशन में किया जायेगा. ‘चांग-5’ को चंद्रमा पर भेजा जायेगा, जो वहां से कुछ जरूरी आंकड़े तथा नमूने एकत्र कर वर्ष 2017 में वापस लौटेगा.
चंद्रमा की पड़ताल की शुरुआत
शीलवंत सिंह की पुस्तक ‘विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास’ में बताया गया है कि चंद्रमा की पड़ताल का काम वर्ष 1959 में शुरू किया गया, जब सोवियत संघ ने अपना पहला अंतरिक्ष यान लूना-2 भेजा. सोवियत संघ के इस प्रयास से प्रेरित होकर अमेरिकी वैज्ञानिकों ने 1960 में अपोलो-8 भेजा. इस तरह चंद्रमा के अन्वेषण की दिशा में पहला कदम सोवियत संघ ने ही उठाया था, लेकिन 1969 में अपोलो-2 यान से चंद्रमा पर दो अंतरिक्षयात्रियों को उतारने में अमेरिका ने कामयाबी हासिल की. अपोलो-11 के यात्रियों द्वारा चंद्रमा से लाये गये मिट्टी के नमूनों को ‘रिगलोलिथ’ के नाम से जाना जाता है. सोवियत संघ की लूना-17 द्वारा लायी गयी मिट्टी के अध्ययन तथा अन्य सूचनाओं के आधार पर यह तथ्य सामने आया कि चंद्रमा भी पृथ्वी की भांति 460 करोड़ वर्ष पुराना है. अमेरिका के अपोलो और सोवियत संघ के ल्यूना अभियानों के बाद दोनों ने क्रमश: 1972 और 1976 में चंद्र अनुसंधान को अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों से अलग कर दिया.
सोवियत संघ का चंद्र मिशन
सोवियत संघ ने वर्ष 1959 में चंद्र मिशन का आरंभ किया था. 2 जनवरी, 1959 को ल्यूना-1 नामक पहला यान लॉन्च किया गया था. हालांकि, यह स्पेसक्राफ्ट चंद्रमा से महज पांच हजार किमी दूर भटक गया और सूर्य की कक्षा में पहुंच गया. हालांकि, इसके नौ माह बाद ही ल्यूना-2 अपने मकसद में कामयाब रहा. 12 सितंबर, 1959 को 390 किलोग्राम वजनी इस यान ने चंद्रमा की सतह पर उतरने में कामयाबी हासिल की थी.
यह घटना उस तथ्य का गवाह है, जिसके तहत पहली बार कोई मानव-निर्मित वस्तु या मशीन किसी अन्य ग्रह पर पहुंचने में कामयाब हुई. 15 सितंबर को क्रैश होने से पहले इस यान ने वहां से कई महत्वपूर्ण फोटोग्राफ भी भेजे थे.
‘एस्ट्रो डॉट आइएफ डॉट यूएफआरजीएस डॉट बीआर’ नामक वेबसाइट पर डगलस एम मेसियन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 1969 में पूर्व सोवियत संघ ने ल्यूना श्रृंखला के तहत छह यान चंद्रमा पर भेजे थे. मैकेनिकल खराबी की वजह से ये सभी यान असफल रहे. अमेरिकी अपोलो-11 के चंद्रमा पर पहुंचने के कुछ ही समय बाद जुलाई, 1969 में सोवियत रूस का ल्यूना 15 दुर्घटनाग्रस्त हो गया था.
12 सितंबर, 1970 को लॉन्च किया गया ल्यूना- 16 इस मामले में पहला सफल मिशन रहा, जो वहां से नमूने लाने में कामयाब रहा था. यह यान चंद्रमा से करीब सौ ग्राम वजन का नमूना लेकर उसी वर्ष 24 सितंबर को सोवियत संघ की धरती पर लौटा था.
अमेरिका का अंतरिक्ष यान
चंद्रमा पर भेजा जाने वाला अपोलो कार्यक्रम अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा की मानव उड़ानों की एक श्रृंखला थी. इस अभियान का नाम सूर्य के ग्रीक देवता अपोलो को समर्पित था. इस अभियान के तहत अंतरिक्षयान को एक इकाई के रूप में चंद्रमा तक सीधी उड़ान भरने और वहां से वह वापस आने की योजना थी. इसे छोड़ने के लिए नोवा रॉकेट का इस्तेमाल किया जाना था.
हालांकि, चंद्रमा पर अंतरिक्षयान भेजने के दो और विकल्पों के बारे में सोचा गया था, लेकिन नासा के अधिकतर वैज्ञानिक सीधी उड़ान के पक्ष में थे. वैज्ञानिकों को इस बात की आशंका थी कि अन्य विकल्पों का किसी तरह का परीक्षण नहीं किया गया है, इसलिए वह मुश्किल हो सकता है. इनमें दो विकल्प और थे. पृथ्वी परिक्रमा केंद्रित उड़ान और चंद्र सतह केंद्रित उड़ान.
पृथ्वी परिक्रमा केंद्रित उड़ान : इस विकल्प के तहत दो सैटर्न फाइव रॉकेट छोड़ने की योजना बनायी गयी थी. इसमें पहला रॉकेट अंतरिक्षयान को पृथ्वी की कक्षा के बाहर छोड़ने के बाद अलग हो जाता, जबकि दूसरा रॉकेट उसे चंद्रमा तक ले जाता.
चंद्र सतह केंद्रित उड़ान : इस तकनीक के माध्यम से एक के बाद एक दो अंतरिक्षयान छोड़ने की योजना बनायी गयी. पहला स्वचालित अंतरिक्षयान ईंधन लेकर चंद्रमा की सतह पर उतरता, जबकि दूसरा मानव अंतरिक्षयान उसके बाद चंद्रमा पर पहुंचता. इसके बाद स्वचालित अंतरिक्ष यान से ईंधन मानव अंतरिक्षयान में भरा जाता और इस तरह यह मानव अंतरिक्षयान पृथ्वी पर वापस आने में कामयाब होता.
इनमें से सभी विकल्पों पर विचार करने के बाद पृथ्वी परिक्रमा केंद्रित उड़ान और चंद्र सतह केंद्रित उड़ान यानी दोनों की मिश्रित योजना को आगे बढ़ाने पर काम किया गया. अपोलो अंतरिक्षयान के तीन मुख्य हिस्से और दो अलग से छोटे हिस्से थे. नियंत्रण कक्ष वह हिस्सा था, जिसमें अंतरिक्षयात्री अपना अधिकतर समय (प्रक्षेपण और अवतरण के समय भी) बिताने वाले थे. पृथ्वी पर सिर्फ यही हिस्सा लौटकर आने वाला था. सेवा कक्ष में अंतरिक्षयात्रियों के उपकरण, ऑक्सीजन टैंक और चंद्रमा तक ले जाने और वहां से इसे वापस लाने वाला इंजन था. नियंत्रण और सेवा कक्ष को मिलाकर नियंत्रण यान बनता था. चंद्रयान चंद्रमा पर उतरने वाला यान था. इसमें अवरोह और आरोह चरण के इंजन लगे हुए थे, जो चंद्रमा की सतह पर उतरने और वापस मुख्य नियंत्रण यान से जुड़ने के लिए काम में आने वाले थे. ये दोनों इंजन भी नियंत्रण यान से जुड़ने के बाद मुख्य यान से अलग हो जाने वाले थे.
भारत का ‘चंद्रयान’
चंद्रयान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के एक अभियान और यान का नाम है. ‘चंद्रयान’ चंद्रमा की तरफ कूच करनेवाला भारत का पहला अंतरिक्ष यान है. इस अभियान के तहत एक मानवरहित यान को 22 अक्तूबर, 2008 को चंद्रमा पर भेजा गया था, जो 30 अगस्त, 2009 तक सक्रिय रहा. यह यान पोलर सेटेलाइट लॉन्च वेहिकल के एक परिवर्तित संस्करण वाले रॉकेट की सहायता से सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया था. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के चार चरणों वाले 316 टन वजनी और 44.4 मीटर लंबे अंतरिक्ष यान चंद्रयान प्रथम के साथ ही 11 और उपकरण एपीएसएलवी-सी11 से प्रक्षेपित किये गये थे. इस उपग्रह ने अपने रिमोट सेंसिंग (दूरसंवेदी) उपकरणों के जरिये चंद्रमा की ऊपरी सतह के अनेक चित्र भेजे.
‘चंद्रयान-2’ मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) तथा रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रोसकोसमोस (आरकेए) का एक प्रस्तावित चंद्र अन्वेषण अभियान है. जीएसएलवी प्रक्षेपण यान द्वारा प्रस्तावित इस अभियान में भारत में निर्मित एक लूनर ऑर्बिटर (चंद्रयान) तथा एक रोवर एवं रूस द्वारा निर्मित एक लैंडर शामिल होंगे. इसरो के अनुसार, यह अभियान विभिन्न नयी प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल तथा परीक्षण के साथ-साथ नये प्रयोगों को भी अंजाम देगा. इस रोवर में पहिये लगे होंगे, जिसकी सहायता से यह चंद्रमा की सतह पर चलेगा तथा ऑन-साइट विश्लेषण के लिए मिट्टी या चट्टान के नमूनों को एकत्र करेगा. आंकड़ों को चंद्रयान-2 ऑर्बिटर के माध्यम से पृथ्वी पर भेजा जायेगा.
मायलास्वामी अन्नादुराई के नेतृत्व में चंद्रयान-1 अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम देनेवाली टीम ही चंद्रयान-2 पर भी काम कर रही है. इस अभियान को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लॉन्च वेहिकल एमके के द्वारा भेजे जाने की योजना है. उड़ान के समय इसका वजन लगभग 2,650 किलो होगा.
हालांकि, पूर्व की तैयारियों के मुताबिक, इस यान को वर्ष 2013 में ही छोड़ा जाना था, लेकिन रूस की ओर से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने की वजह से इसमें देरी हो रही है. अब इसे वर्ष 2016- 17 तक प्रक्षेपित किये जाने की संभावना है. रेडियो रूस की एक रिपोर्ट में भी बताया गया है कि चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण के कार्य में देरी रूसी पक्ष की वजह से हो रही है.
ऑर्बिटर को इसरो द्वारा डिजाइन किया जायेगा और यह 200 किलोमीटर की ऊंचाई पर चंद्रमा की परिक्रमा करेगा. इस अभियान में ऑर्बिटर को पांच पेलोड के साथ भेजे जाने का निर्णय लिया गया है. तीन पेलोड नये हैं, जबकि दो अन्य चंद्रयान-1 ऑर्बिटर पर भेजे जाने वाले पेलोड के उन्नत संस्करण हैं. चंद्रमा की सतह से टकरानेवाले चंद्रयान-1 के लूनर प्रोब के विपरीत, लैंडर धीरे-धीरे नीचे उतरेगा. लैंडर तथा रोवर का वजन लगभग 1250 किग्रा होगा. रोवर सौर ऊर्जा द्वारा संचालित होगा. रोवर चंद्रमा की सतह पर पहियों के सहारे चलेगा, मिट्टी व चट्टानों के नमूने एकत्र करेगा, उनका रासायनिक विश्लेषण करेगा और डाटा को ऊपर ऑर्बिटर के पास भेज देगा, जहां से इसे पृथ्वी के स्टेशन पर भेज दिया जायेगा.