रांची: झारखंड के दो विधानसभा चुनावों में करीब 77-78 लाख लोगों ने वोट ही नहीं दिया था. वर्ष 2005 में 76.34 लाख तथा वर्ष 2009 में 77.66 लाख लोगों ने एक तरह से चुनाव का बहिष्कार किया या इसके प्रति उदासीन रहे.
यह संख्या कुल वोटरों की करीब 43 फीसदी है. यानी 50 फीसदी से थोड़े ही कम लोगों की सरकार बनाने में कोई भागीदारी नहीं रही. इसकी तुलना राज्य की करीब तीन करोड़ की आबादी से करें, तो करीब एक चौथाई लोगों की ही सरकार बनाने में भूमिका रही थी.
वर्ष 2005 में कुल वोटर करीब 1.78 करोड़ थे. वर्ष 2009 में 1.80 करोड़. अब 2014 के विधानसभा चुनाव में वोटरों की कुल संख्या बढ़ कर 2.06 करोड़ हो गयी है. दरअसल राज्य में हुए पहले विधानसभा चुनाव की तुलना में अभी वोटरों की संख्या में 28.34 लाख इजाफा हुआ है. लोकतंत्र में संख्या का महत्व बताने की जरूरत नहीं है. यह भी नहीं कि हर वोटर को मतदान क्यों करना चाहिए. इसी राज्य में कमलेश सिंह जैसे विधायक (मंत्री भी) हुए, जिन्होंने वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को सिर्फ 35 वोटों से हराया था. इस मामूली संख्या के बल पर उन्होंने अपनी खास शैली में सत्ता का बेहिसाब स्वाद चखा. उस वर्ष कुल छह प्रत्याशी ऐसे थे, जिनकी जीत का अंतर एक हजार वोटों से भी कम था.
बाद के विधानसभा (2009) चुनाव में हटिया के कांग्रेसी प्रत्याशी गोपाल शरण नाथ शाहदेव (अब स्वर्गीय) ने कमलेश का रिकार्ड तोड़ दिया था. उन्होंने सिर्फ 25 वोटों से जीत हासिल की थी. वहीं, कुल सात प्रत्याशियों की जीत का अंतर एक हजार से कम वोट था. बढ़ती आबादी के साथ मतदाता तो बढ़ रहे हैं, लेकिन मतदान का रुझान नहीं बढ़ रहा. इसी उदासीनता के कारण दोनों बार 1200 से अधिक प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई. अब तो वोटरों के पास नोटा (उपरोक्त में से कोई नहीं) का विकल्प भी है. देखना है वोटरों को इस बार का चुनावी महापर्व रास आता है या नहीं.
चुनाव 2005
कुल वोटर 17766202
मतदान किया 10131767
वोट नहीं देनेवाले 7634435
कुल प्रत्याशी 1390
जमानत जब्त 1206
चुनाव 2009
कुल वोटर 18045638
मतदान किया 10278740
वोट नहीं देनेवाले 7766898
कुल प्रत्याशी 1491
जमानत जब्त 1299
चुनाव 2014
कुल वोटर 20600804 (20 अक्तूबर तक)