जिनिवा : विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक अधिकारी का कहना है कि दो महीनों के भीतर प्रति सप्ताह इबोला के 10,000 नए मामले सामने आ सकते हैं. डब्ल्यूएचओ के सहायक निदेशक डॉक्टर ब्रूस एलवर्ड ने कहा कि अगर इबोला के संकट को रोकने के लिए 60 दिनों के भीतर त्वरित कदम नहीं उठाए जाते तो बहुत सारे लोगों की मौत हो सकती है.
उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ के अनुमान के अनुसार दो महीनों में प्रति सप्ताह 10,000 मामले सामने आ सकते हैं. एलवर्ड ने कहा कि पिछले चार हफ्तों में प्रति सप्ताह इबोला के करीब 1,000 नए मामले सामने आए हैं. इबोला से अफ्रीकी महाद्वीप के देश सियरा लियोन, गिनी तथा लाइबेरिया बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. इससे अभी तक कई लोगों की मौत भी हो चुकी है.
इबोला से लडने के लिए हमें चतुर होने की जरुरत : सिद्धार्थ मुखर्जी
पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त भारतीय-अमेरिकी लेखक और कैंसर विशेषज्ञ सिद्धार्थ मुखर्जी ने इबोला को एक चतुर विषाणु बताते हुए कहा कि हमें भी चतुर बनना होगा. इस बीमारी की पहचान इसके लक्षणों के उभरने से पूर्व ही करनी होगी. न्यू यॉर्क टाइम्स में रविवार को एक संपादकीय लेख में मुखर्जी ने कहा कि डलास निवासी एक व्यक्ति थॉमस डंकन के मामले की पृष्ठभूमि में अमेरिका में विषाणु के प्रवेश और प्रसार को रोकने के लिए तीन रणनीतियों का प्रस्ताव किया गया है.
डंकन की इबोला विषाणु के प्रभाव में आने से मौत हो गई थी. इबोला के प्रसार को रोकने के लिए पहला सुझाव है कि इबोला प्रभावित देशों से यात्रा करने वाले लोगों पर कडे प्रतिबंध लगाए जाएं, दूसरा इबोला प्रभावित क्षेत्रों से आने वाले लोगों का परीक्षण किया जाए और तीसरा प्रस्ताव है कि सभी प्रभावित और संदिग्ध मरीजों की निगरानी की जाए और उनके संपर्क में आने वाले लोगों में से सभी को अलग-थलग रखा जाए.
अपने संपादकीय में उन्होंने यह भी लिखा कि इबोला एक चतुर विषाणु है और उससे लडने के लिए हमें भी चतुर होने की जरुरत है.मुखर्जी ने कहा, इन तरीकों में से एक पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) है. यह एक रासायनिक प्रक्रिया है जो रक्त में तैर रहे विषाणु के जीन के टुकडों को कई गुना बढा देता है जिससे इस बीमारी की पहचान इसके लक्षणों के उभरने से पूर्व ही की जा सकती है.
उन्होंने कहा कि एक कैंसर विशेषज्ञ के तौर पर रक्त के कैंसर पर काम करते हुए उन्होंने लगभग एक दशक तक मरीजों में लक्षणहीन संक्रमणों की पहचान करने के लिए इस तकनीक के कई प्रकारों का प्रयोग किया. उन्होंने स्वास्थ्य जर्नल लैंसेट में 2000 में प्रकाशित एक अध्ययन का हवाला दिया जिसके अनुसार, इबोला की चपेट में आने की आशंका वाले 24 लोगों की जांच पीसीआर के जरिए की गयी थी.