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इस बालिका वधू ने तोड़ दी शादी

आभा शर्मा जयपुर से, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए एक साल की उम्र में हुई शादी को नकारने की हिम्मत करने वाली राजस्थान की बालिका वधू लक्ष्मी की कहानी अब सीबीएसई पाठ्यक्रम का हिस्सा है. जोधपुर के लूणी की लक्ष्मी सरगरा देश की पहली बालिका वधू है जिसके बाल विवाह को क़ानूनी रूप से निरस्त […]

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एक साल की उम्र में हुई शादी को नकारने की हिम्मत करने वाली राजस्थान की बालिका वधू लक्ष्मी की कहानी अब सीबीएसई पाठ्यक्रम का हिस्सा है.

जोधपुर के लूणी की लक्ष्मी सरगरा देश की पहली बालिका वधू है जिसके बाल विवाह को क़ानूनी रूप से निरस्त किया गया.

आभा शर्मा की रिपोर्ट

भारत में बाल विवाह निरोधक क़ानून जिसे शारदा एक्ट भी कहा जाता है जिसके तहत बाल विवाह वैध नहीं है.

पुलिस, प्रशासन और सामाजिक संगठनों के प्रयासों से कई बाल विवाह रोके जाने के समाचार भी मिलते हैं पर पश्चिमी राजस्थान के पारंपरिक समाज में बाल विवाह निरस्त होने की यह पहली घटना थी.

बाल विवाह निरस्त

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इसलिए सीबीएसई की 11वीं कक्षा के मानव अधिकार और जेंडर स्टडीज में लक्ष्मी की केस स्टडी को शामिल किया गया है.

लक्ष्मी की नानी के मौसर (मृत्यु भोज) के अवसर पर उनका विवाह एक साल की उम्र में सतलाना गांव के तीन साल के राकेश के साथ हो गया था.

उन्हें अपनी शादी के बारे में तब पता चला जब ससुराल वालों ने उसका गौना करने को कहा.

उन्होंने इस शादी से आज़ादी के लिए जोधपुर की संस्था सारथी ट्रस्ट से मदद मांगी.

सारथी की मनोवैज्ञानिक सलाहकार कृति भारती ने बीबीसी को बताया, "वे लक्ष्मी की मदद करना चाहती थीं पर इसमें कई बाधाएं थीं. पहले जाति पंचायत की तो दूसरी लक्ष्मी के ससुराल वालों के अंह की. लक्ष्मी निरक्षर थी और उम्र का कोई स्कूली सर्टिफिकेट भी नहीं था."

काफ़ी प्रयासों और काउंसलिंग के बाद दोनों परिवार और समुदाय राजी हुए और अप्रैल 2012 में लक्ष्मी और राकेश दोनों ने नोटरी पब्लिक के सामने हस्ताक्षर कर अपने बाल विवाह को निरस्त किया.

रिकार्ड् में दर्ज

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अब बालिग़ होने के बाद लक्ष्मी का दूसरा विवाह ख़ुद की सहमति से हो चुका है और वो पाली ज़िले में अपने ससुराल में खुश है.

राज्य के शिक्षाविद डॉ. ललित किशोर विभिन्न पाठ्यक्रमों की स्वतंत्र समीक्षा करते आए हैं.

उनके मुताबिक़, “लोकप्रिय मीडिया में छपी या सुर्ख़ियों में रहीं रिपोर्टों के ऐसे सन्दर्भों को मिसाल के तौर पर अमूमन पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाता है जो विद्यार्थियों की तार्किक बुद्धि एवं निर्णय क्षमता विकसित करने में सहायक सिद्ध हो सकें.”

पर उनकी राय में पाठ्यक्रम निर्धारण में “शहरी और ग्रामीण प्रासंगिकता” का भी ध्यान रखा जाना ज़रुरी है. यदि ऐसे केस स्टडीज ग्रामीण स्कूलों के बच्चों को पढ़ाई जाएं तो अधिक प्रासंगिक होंगे.

सारथी ट्रस्ट के प्रयासों को हाल ही में लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में भी दर्ज किया गया है.

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