
पलायन और गरीबी का दर्द झेल रहे बिहार के छोटे से शहर सिवान के अति साधारण परिवार से आने वाली अमृता कुमारी ने युवा खिलाड़ियों के लिए एक मिसाल पेश की है.
लगभग 15 साल की अमृता कुमारी को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में सोमवार से शुरू अंडर- 16 एशियन फ़ुटबॉल कॉन्फ़ेडरेशन चैंपियनशिप के क्वालिफाइंग राउंड में भारतीय महिला फ़ुटबॉल टीम की कप्तानी करने का मौका मिला है.
वे किसी भी भारतीय फ़ुटबॉल टीम की कप्तान बनने वाली बिहार की पहली लड़की हैं.
संघर्ष भरा है मैदान और जीवन का खेल
नौवीं कक्षा की छात्रा अमृता को यूं तो मैरवां, सिवान के हरिराम हाई स्कूल के ग्राउंड में अक्सर गेंद के साथ जूझते देखा जा सकता है.
लेकिन, इनका पारिवारिक जीवन भी संघर्षों से भरा है.
छह भाई-बहनों में सबसे बड़ी अमृता के पिता शम्भू प्रसाद गुप्ता गुड़गांव, हरियाणा में रेहड़ी लगाते हैं.

अति सीमित संसाधनों के बावजूद अपनी खिलाड़ी बिटिया के शौक़ का ख़्याल भी रखते हैं.
शम्भू कहते हैं कि अमृता के भारतीय टीम के कप्तान बनने की ख़बर शनिवार को मिली. बहुत ख़ुशी हुई.
खेल और पढ़ाई दोनों में अच्छी है. मेरा विश्वास है कि कुछ अच्छा करेगी इसलिए तो खर्च भी करते हैं.
अमृता की मां बबीता देवी कहती हैं कि वहां जाने के पहले उनसे बात हुई थी और उन्होंने बच्ची को आशीर्वाद दिया है.
माता-पिता दोनों को अपनी बेटी की योग्यता पर पूरा भरोसा है.
नहीं है प्रतिभा की कमी

अमृता ने जो मुकाम हासिल किया है उससे राज्य के दूसरे खिलाड़ी भी प्रेरित होंगे. (फ़ाइल फ़ोटो)
पिछले करीब चार साल से अमृता के कोच रहे सिवान के संजय पाठक का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय फ़ुटबॉल टीम में इलाके की दो और खिलाड़ियों अर्चना और तारा ख़ातून ने भी हिस्सा लिया है.
लेकिन, टीम की कप्तान बनने वालों में अमृता पहली हैं.
संजय कहते हैं कि प्रैक्टिस के लिए यहां कोई अलग ग्राउंड नहीं है.
सारे खिलाड़ी स्कूल ग्राउंड में ही प्रैक्टिस करते हैं.
बिना किसी सरकारी मदद के अमृता ने जो मुकाम हासिल किया है उससे राज्य के दूसरे खिलाड़ी भी प्रेरित होंगे.
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