एक वक़्त था जब मदरसों से शिक्षा पाकर निकले हुए लोग भारत के नामचीन हस्तियों में शामिल हुए लेकिन धीरे-धीरे ये सिलसिला ख़त्म हो गया.
मगर हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाक़ों में कई ऐसे मदरसे हैं जहां हिंदू समुदाय के बच्चे भी तालीम हासिल करने जा रहे हैं.
मदरसों के लिए काम करने वाले लोगों का कहना है कि ये इन संस्थानों के आधुनिकीकरण का नतीजा है.
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नन्ही अनु हिज्जे कर कर उर्दू का अपना सबक़ शौक़ से याद कर रही है.
"अलिफ़ ज़बर आ बे ज़बर बा……" वो अपनी क्लास में ज़ोर से पढ़ती है और उनके सहपाठी सबक़ को साथ-साथ साथ दोहराते हैं.
अनु के साथ इस क्लास में संजो भी है जो उसी के गाँव की ही रहने वाली है. दोनों तीसरी कक्षा की छात्र हैं.
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मेरठ के ललियाना गाँव के मदरसा हदीस-उल-क़ुरान में अनु और संजो की तरह कई हिंदू बच्चे भी तालीम हासिल कर रहे हैं.
अजित भी जब दिल्ली से गांव वापस आए तो उनका दाख़िला यहां करवाया गया है.
दिल्ली के पब्लिक स्कूल से गाँव के मदरसे पहुंच जाने के बावजूद अजित को यहाँ अच्छा लगने लगा है.
मदरसों का आधुनिकीकरण
अजित के पिता रवि दिल्ली में काम करते हैं. उन्होंने दिल्ली के स्कूल की बजाय अपने बेटे को अपने गाँव के मदरसे में पढ़ाना बेहतर समझा.
पिछले चार सालों से अजित मदरसे में ही तालीम हासिल कर रहा है.
उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष क़ाज़ी ज़ैनुस साजीदीन ने बीबीसी को बताया कि इस साल राज्य के मदरसों से ‘मुंशी, आलिम और फ़ाजिल‘ की परीक्षा देने वाले हिंदू छात्रों की संख्या 46 है. बड़ी संख्या में हिंदू बच्चे मदरसों में तालीम हासिल कर रहे हैं.
वो कहते हैं, "मदरसों के आधुनिकीकरण के बाद अब इनमें गणित, विज्ञान और कंप्यूटर जैसे विषयों को रखा गया है. बड़ी संख्या में हिंदू बच्चे भी मदरसों में दाख़िला ले रहे हैं और यहाँ पढ़ रहे हैं."
मदरसे की डिग्री
उनका कहना है कि कुछ मदरसों का संचालन हिंदू समीतियां भी कर रही हैं.
हालांकि इसका पहले विरोध भी हुआ था मगर मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष का कहना है कि उन्होंने इन समीतियों को मदरसा चलाने की इजाज़त दे दी है.
आरोप लगने लगे कि हिंदू छात्र सिर्फ़ कॉलेजों में एडमिशन लेने के लिए मदरसे की डिग्री का सहारा लेते हैं.
लेकिन इन आरोपों का खंडन करते हुए मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष ने बताया कि एक हिंदू छात्र ने उनसे आकर शिकायत की थी कि उसे ‘आलिम’ के इम्तेहान का प्रवेश पत्र नहीं मिला.
इस्लाम की पढ़ाई
क़ाज़ी ज़ैनुस साजीदीन कहते हैं, "मैंने सोचा कि कहीं यह ऐसा मामला तो नहीं है कि सिर्फ डिग्री के लिए छात्र ने फार्म भरा हो? मैंने उसे अरबी लिखने को कहा और उसने बोर्ड के सदस्यों के सामने सब कुछ सही सही लिख कर दिखा दिया. हमने उस छात्र को फ़ौरन प्रवेश पत्र जारी कर दिया."
जहाँ मुंशी और मौलवी की डिग्री दसवीं क्लास के बराबर हैं, वहीँ आलिम की डिग्री इंटर और फ़ाज़िल की डिग्री स्नातक के समकक्ष है.
उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड का कहना है कि मुंशी के इम्तेहान के अलावा कई हिंदू बच्चे ‘दीनियात’ यानी इस्लाम धर्म की पढ़ाई भी कर रहे हैं और अरबी भी सीख रहे हैं.
राजेंद्र प्रसाद और प्रेमचंद
मदरसे के शिक्षक बताते हैं कि पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाली राधिका दूसरे बच्चों से ज़्यादा अच्छी उर्दू लिख और पढ़ तो लेती ही है, वो दूसरे विषयों में भी अच्छा कर रही है.
कभी डाक्टर राजेंद्र प्रसाद और मुंशी प्रेमचंद जैसे बड़े लोगों ने मदरसे में तालीम हासिल की थी.
लेकिन बाद में हिंदू समाज के लोगों के बीच मदरसों में तालीम हासिल करने का चलन ख़त्म होता चला गया.
हालांकि मदरसों के आधुनिकीकरण के बाद एक बार फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिंदू समुदाय के बच्चों का मदरसे में पढ़ने का चलन बढ़ रहा है.
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