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जहां अपराधी बच्चों को दी जाती है उम्रक़ैद

दिव्या आर्य बीबीसी संवाददाता, दिल्ली 18 साल से कम उम्र में किया गया अपराध जघन्य हो, तो क्या कड़ी सज़ा देना जायज़ है? या बालिग़ होने से पहले अपराध बोध कम होने की वजह से सज़ा भी नाबालिग़ों वाली ही होनी चाहिए? बच्चों और युवाओं की सज़ा तय करनेवाले क़ानून, ‘जुवेनाइल जस्टिस एक्ट’ में प्रस्तावित […]

18 साल से कम उम्र में किया गया अपराध जघन्य हो, तो क्या कड़ी सज़ा देना जायज़ है? या बालिग़ होने से पहले अपराध बोध कम होने की वजह से सज़ा भी नाबालिग़ों वाली ही होनी चाहिए?

बच्चों और युवाओं की सज़ा तय करनेवाले क़ानून, ‘जुवेनाइल जस्टिस एक्ट’ में प्रस्तावित बदलाव ने ये सवाल खड़े कर दिए हैं.

नए विधेयक में 18 की जगह 16 वर्ष से अधिक उम्र के किशोर अपराधियों को वयस्क मानने का प्रावधान होगा.

वैसे तो भारत समेत दुनियाभर के क़रीब 190 देशों ने ‘यूएन कन्वेंशन ऑन चाइल्ड राइट्स’ पर हस्ताक्षर किए हैं. इसमें उम्र सीमा को 18 साल रखने की सलाह दी गई है.

पर हर देश अलग प्रावधान रखने को आज़ाद है. पेश हैं कुछ उदाहरण.

ब्रिटेन

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जहां अपराधी बच्चों को दी जाती है उम्रक़ैद 2
  • दस साल से कम उम्र में किसी भी ज़ुर्म के लिए गिरफ़्तारी नहीं है, पर कुछ पाबंदियां लगाई जा सकती हैं.
  • 10-17 साल की उम्र के बच्चों पर मुक़दमा जुवेनाइल कोर्ट में, और दोषी पाए जाने पर विशेष सेंटर्स में भेजा जा सकता है.
  • 18 साल की उम्र के किशोर को 25 साल की उम्र तक जेल के बजाय विशेष सेंटर में भेजा जा सकता है.
  • 10 साल की उम्र के बाद दी गई अधिकतम सज़ा उम्रक़ैद हो सकती है.

अमरीका

जिस उम्र के बाद बच्चे पर मुक़दमा चलाया जा सकता है वो हर राज्य ने अपने हिसाब से तय की है. न्यूनतम छह साल से लेकर 12 साल तक.

इसी तरह अधिकतम उम्र 16 से लेकर 19 साल तक है. इस उम्र तक मुक़दमा जुवेनाइल जस्टिस कोर्ट में चलाकर सज़ा सुधार गृह भेजने जैसी हो सकती है.

जघन्य अपराधों में नाबालिग़ का केस जुवेनाइल कोर्ट से वयस्कों की अदालत में भेजने का प्रावधान है, जहां उसे बालिग़ समझते हुए मुक़दमा चलाया जा सकता है.

कुछ राज्यों में 10 साल के बच्चे को भी अधिकतम उम्रक़ैद की सज़ा हो सकती है.

पाकिस्तान

  • सात साल से कम उम्र के बच्चों के ख़िलाफ़ कोई मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता.
  • पर 1996 के एक अध्यादेश के ज़रिए बलात्कार, अवैध संबंध बनाने, शराब पीने, ड्रग्स का सेवन करने, चोरी और किसी को बदनाम करने जैसे अपराध में अब हर उम्र के व्यक्ति को अपराधी माना जा सकता है.
  • यहां किसी जुवेनाइल कोर्ट की स्थापना नहीं की गई है. हालांकि कुछ मौजूदा अदालतों को यह दर्जा दे दिया गया है.
  • यानी किशोरों की जेलें हैं, पर अक्सर किशोरों को वयस्कों की जेल में ही रखा जाता है.

भारत

  • सात साल से कम उम्र के बच्चों के ख़िलाफ़ कोई मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता.
  • 7-17 साल की उम्र के बच्चों पर आम अदालत में मुक़दमा चलाया जाता है पर सज़ा जुवेनाइल जस्टिस कोर्ट में सुनाई जाती है.
  • बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य मामलों में भी अधिकतम तीन साल की सज़ा दी जा सकती है.
  • 18 साल से ज़्यादा की उम्र के व्यक्ति को वयस्क माना जाता है.

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