द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 69 वर्ष पूर्व आज ही के दिन यानी 6 अगस्त, 1945 को जापान के हिरोशिमा शहर पर अमेरिका ने परमाणु बम गिराया था, जिससे लाखों जानें गयी थीं. क्या थी इस भयावह त्रसदी की पृष्ठभूमि, क्या हुआ नतीजा, कितना भयावह था परमाणु विस्फोट आदि पहलुओं के बारे में बता रहा आज का नॉलेज..
किसी रात को मेरी नींद
अचानक उचट जाती है,
आंख खुल जाती है,
मैं सोचने लगता हूं कि
जिन वैज्ञानिकों ने अणु अस्त्रों का
आविष्कार किया था,
वे हिरोशिमा-नागासाकी के भीषण
नरसंहार के समाचार सुनकर
रात को कैसे सोये होंगे?
क्या उन्हें एक क्षण के लिए सही
ये अनुभूति नहीं हुई कि
उनके हाथों जो कुछ हुआ
अच्छा नहीं हुआ!
यदि हुई, तो वक्त उन्हें कटघरे में
खड़ा नहीं करेगा
किंतु यदि नहीं हुई तो इतिहास उन्हें
कभी माफ नहीं करेगा!
कवि ह्दय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ये पंक्तियां जापान के हिरोशिमा शहर पर की गयी बमबारी, इस बम का इजाद करने वाले वैज्ञानिकों के मानवता से जुड़े पक्ष और मृतकों के मार्मिक पहलुओं को रेखांकित करती हैं.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर में आज ही के दिन यानी 6 अगस्त, 1945 को परमाणु बम गिराया था. इस बमबारी से पूरा हिरोशिमा शहर तबाह हो गया था. दरअसल, हिरोशिमा जापान का एक औद्योगिक नगर है. द्वितीय विश्व युद्ध के समय जापानी सेना की एक डिविजन का यहां मुख्यालय था. अमेरिकी सेना के एक एनोला गैप विमान ने 6 अगस्त को दक्षिण प्रशांत के वायुसैनिक अड्डे से दो अन्य बी-29 विमानों के साथ उड़ान भरी.
उड़ान भरने के बाद तीनों विमानों ने इवोजिमा होते हुए जापान की वायुसीमा में प्रवेश किया. उस वक्त ये विमान 8,000 फिट की ऊंचाई पर उड़ रहे थे. हिरोशिमा के पास पहुंच कर विमान की ऊंचाई 32,300 फिट हो गयी. उड़ान के दौरान एक विमान में ‘लिटिल बॉय’ नामक परमाणु बम को फिट किया गया और लक्ष्य पर पहुंचने के 30 मिनट पहले उस बम में लगे सुरक्षा उपकरणों को हटा कर उसे सक्रिय कर दिया गया.
बताया जाता है कि इस हमले से करीब एक घंटे पहले ही जापान के रडार ने दक्षिण जापान की ओर बढ़ रहे इन अमेरिकी विमानों को पहचान लिया था और संभावित हवाई हमले की चेतावनी भी दे दी थी. हिरोशिमा के रडार की मॉनिटरिंग कर रहे विशेषज्ञ ने समझा कि ये महज टोही विमान हैं. उसे किसी तरह के संभावित हमले की आशंका नहीं दिखी. ईंधन और हवाई जहाजों को बचाने के मकसद से जापानी वायुसेना ने उस समय अमेरिकी जहाजों पर जवाबी हवाई हमला करना मुनासिब नहीं समझा.
अगर जापान के रडार विशेषज्ञ यह जान जाते कि ये बमवर्षक विमान हैं, तो शायद वे इससे ज्यादा गंभीर कदम उठाते और इतिहास की एक बड़ी अनहोनी घटना टल सकती थी.
11 वर्ग किमी में आग की लपटें
द मैनहट्टन इंजीनियर डिस्ट्रिक्ट (इलेक्ट्रॉनिक क्लासिक सीरिज पब्लिकेशन) द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये जाने से संबंधित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि स्थानीय समय के अनुसार सुबह सवा आठ बजे बम गिराया गया. 60 किलोग्राम यूरेनियम-235 वाला ‘लिटिल बॉय’ नामक परमाणु बम हवाई जहाज से गिराने के करीब एक मिनट बाद फटा था. इससे 11 वर्ग किमी इलाका आग की लपटों में घिर कर जल गया.
जापानी अधिकारियों के मुताबिक हिरोशिमा नगर की 69 प्रतिशत इमारतें पूरी तरह नष्ट हो गयीं. हालांकि, इस रिपोर्ट में बताया गया है कि हिरोशिमा में उस समय 66 हजार लोग मारे गये और 69 हजार लोग घायल हुए, लेकिन जापान की ओर से जारी आंकड़ों में मारे जाने वाले लोगों की संख्या एक लाख चालीस हजार तक थी. मालूम हो कि उस समय हिरोशिमा की आबादी करीब ढाई से तीन लाख के बीच थी. मारे गये लोगों में ज्यादातर साधारण नागरिक, बच्चे, बूढ़े, औरतें थीं.
बम से निकले रेडिएशन का दुष्प्रभाव इस कदर था कि कई वर्षो तक इसका असर देखा गया. बताया जाता है कि बम गिराये जाने के बाद कई वर्षो तक इस इलाके में ज्यादातर बच्चे शारीरिक रूप से अक्षम पैदा हुए थे. हालांकि, इसे जापान की जनता कर्मठता ही कही जायेगी कि इस महाविनाश के बाद भी कुछ ही वर्षो में वे अपने पैरों पर खड़े हो गये और दुनिया में अपनी खास पहचान कायम की.
नागासाकी पर हमला
जानकारों का मानना है कि हिरोशिमा पर हमले के बाद 7 से 9 अगस्त के बीच जापान के सम्राट हिरोहितो व उनकी युद्ध सलाहकार समिति समर्पण के स्वरूप व शर्तो पर विचार कर रही थी. लेकिन अमेरिका को एक और बम का परीक्षण कर प्रभाव का सटीक आकलन करना था और इसे दुनिया को दिखाना भी था.
जापान के समर्पण की तैयारी को जानते हुए भी 9 अगस्त को दक्षिणी जापान के बंदरगाह नगर नागासाकी पर 6.4 किलो प्ल्यूटोनियम-239 वाला ‘फैट मैन’ नामक दूसरा बम गिराया गया. बम गिरने से तत्काल 40,000 से 75,000 लोगों की मौत हो गयी थी. इसके बाद जापान ने शीघ्र समर्पण की घोषणा की. हिरोहितो ने रेडियो पर घोषणा की, ‘शत्रु के पास नये और भयावह संहार क्षमता के अस्त्र हैं, जिससे वह न केवल बेगुनाहों की जान ले सकता है, बल्कि भयावह संहार भी कर सकता है. यदि हम लड़ाई जारी रखते हैं, तो जापान राष्ट्र के पूर्णतय ध्वंस होने के साथ मानवीय सभ्यता का भी अंत हो सकता है.’
ऐतिहासिक तथ्य
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1945 में पॉट्सडैम शांति सम्मेलन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने इस बात का ऐलान किया कि उसके पास एक नया सुपर हथियार है. वे शायद सोवियत नेता स्टालिन पर अपना प्रभाव जमाना चाहते थे. इसके कुछ ही दिनों बाद हिरोशिमा और नागासाकी की त्रसदी ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया.
इस परमाणु बमबारी का कोई सैन्य महत्व नहीं था. इन शहरों में हथियार बनाने वाले कारखाने नहीं थे. न ही कोई बड़ा सैन्य अड्डा था. दरअसल, अमेरिका अपने सहयोगी देश के नेता स्टालिन को यह दिखाना चाहता था कि युद्ध के बाद दुनिया के भाग्य का फैसला कौन करेगा और इसके लिए उसने लाखों जापानी नागरिकों का जीवन बलिदान कर दिया. कई वर्ष बीतने के बाद सोवियत संघ और अमेरिकी नेताओं को इसका एहसास हुआ.
समस्त मानवजाति के लिए उत्पन्न इस भयंकर खतरे को भांपते हुए सोवियत संघ और अमेरिका के नेताओं ने 20वीं सदी के सातवें दशक में परमाणु हथियारों को कम करने के तरीके खोजने की प्रक्रिया शुरू कर दी, जो अब भी जारी है.
परमाणु विस्फोट की भयावता
सामान्य टीएनटी (ट्राइनाइट्रोटाल्यूइन) बम और परमाणु बम में सबसे बड़ा अंतर होता है-गुरुत्वीय तीव्रता का. हिरोशिमा पर गिराये गये एक परमाणु बम की विस्फोटक ऊर्जा 20,000 टन टीएनटी के बराबर थी. इसके अलावा, परमाणु बम को और ज्यादा मारक बनाने में विशेष प्रकार की संरचना होती है. सामान्य विस्फोटक रासायनिक क्रिया पर आधारित होते हैं, जिसमें विस्फोटक पदार्थ के परमाणुओं के पुनर्विन्यास के फलस्वरूप ऊर्जा मुक्त होती है.
जबकि परमाणु बम में परमाणुओं के पुनर्विन्यास की प्रक्रिया नहीं होती है, अर्थात उनकी प्रकृति नहीं बदलती है. इसमें यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम जैसे विस्फोटकों का द्रव्यमान सीधे तौर पर ऊर्जा में तब्दील होता है.
(प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन के समीकरण ए=2 के अनुसार)
विस्फोट के बाद रेडिएशन व तबाही..
अत्यधिक मात्र में होने वाला रेडिएशन ही परमाणु बम को सामान्य टीएनटी बम की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली बनाता है. ज्यादातर रेडिएशन प्रकाश के रूप में होता है, जिसे ऊर्जा विकिरण (हीट रेडिएशन) भी कहते हैं, इसकी तरंगदैध्र्य अपेक्षाकृत बड़ी होती है. दूसरा गामा किरणों के रूप में रेडिएशन होता है, जिसकी तरंगदैध्र्य मेडिकल टेस्ट में इस्तेमाल होने वाली एक्स किरणों (एक्स-रे) से भी कम होती है. ये सभी रेडिएशन प्रकाश की गति (186,000 मील प्रति सेकेंड) के बराबर होते हैं. ये रेडिएशन विस्फोट केंद्र से दूर रहने वाले लोगों को भयानक शारीरिक क्षति (यहां तक कि मौत का कारण) पहुंचाने में सक्षम होते हैं. अल्ट्रा-वायलेट किरणों (दृश्य प्रकाश की तुलना में तरंगदैध्र्य थोड़ी सी ज्यादा) से फ्लैश बर्न (त्वचा का जलना और शरीर से अलग होना) जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है. दूसरी तरफ गामा किरणों (न्यूट्रॉन के साथ), जो परमाणुओं के नाभिक से निकलती हैं, परमाणु विस्फोट के कुछ माइक्रो सेकेंड (एक सेकेंड का हजारवां हिस्सा) के अंदर ही तबाही मचा देती हैं. विस्फोट के कुछ ही सेकेंड में आग का गोला कई हजार गुना बढ़ जाता है. विशेषज्ञों के मुताबिक आग का यह गोला 30 गज प्रति सेकेंड के हिसाब से बढ़ता है. कुछ मिनटों के बाद धुआं ही धुआं नजर आने लगता है.
बम विस्फोट के प्रमुख कारण
त्न अमेरिका अपनी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए जापान को जल्द से जल्द समर्पण कराना चाहता था और इसी गतिरोध के कारण अमेरिकी प्रशासन ने यह कठोर निर्णय लिया.
त्न इससे पहले कि सोवियत संघ जापान के खिलाफ द्वितीय विश्व युद्ध में उतरता, अमेरिका ने अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए पहले ही कार्रवाई कर दी.
त्न अमेरिका दुनिया के पहले परमाणु बम का इस्तेमाल करना और विनाशकारी प्रभाव को आजमाना चाहता था. इसी जल्दबाजी के बीच अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम गिराया.
चित्रकथा में हिरोशिमा त्रसदी
आमतौर पर चित्रकथाओं में मनोरंजक कथाएं, महापुरुषों की जीवनियां आदि मिलते हैं. लेकिन ‘नीरव संध्या का शहर/ साकुरा का देश’ जापानी लेखक कोनो फुमियो की लिखी एक चित्रकथा है, जिसका विषय है हिरोशिमा त्रसदी. इसका हिंदी अनुवाद किया है टोमोको किकुचि ने.
जापान में हिरोशिमा जैसे समुद्र तटीय शहरों में रोज सुबह और शाम को नियमित समय में हवा एकदम बंद हो जाती है और थोड़ी देर के लिए नीरवता छा जाती है, जिस नीरव संध्या को जापानी भाषा में यूनागि कहा जाता है. पुस्तक में बताया गया है कि हिरोशिमा की एक औरत मिनामि 1945 में परमाणु बम की दुर्घटना में बच गयी, लेकिन इस संत्रस के साथ जीते हुए कि परिवार, रिश्तेदार, मित्र सभी मर गये, वही क्यों बच गयी? इस तरह जीवित बचना भी तो एक त्रसदी ही है, जिसकी छाया में आज भी हिरोशिमा के लाखों लोग जी रहे हैं. जो बच गये, आगे आने वाली पीढियां.. दु:ख की एक याद है जो वहां के लोग आने वाली संततियों को सौंपते हैं.
सुटोमु यामागुकी
जापान के सुटोमु यामागुकी का 93 वर्ष की आयु में पेट के कैंसर से हाल ही में निधन हुआ है. वे अकेले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने दो परमाणु हमलों को झेला और जिवित रहे. अगस्त 6, 1945 को हिरोशिमा शहर जहां पर बम गिरा था, यामागुकी वहां से महज दो किलोमीटर की दूरी पर थे.
दरअसल, यामागुकी नागासाकी शहर के रहने वाले एक इंजीनियर थे. ‘द गाजिर्यन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यामागुकी अपनी कंपनी के काम से 6 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा शहर में थे. इस हमले से उनका हाथ जल गया. वह तुरंत अपने शहर नागासाकी चले गये. यामागुकी नागासाकी पहुंचे. 9 अगस्त, 1945 को एक और धमाका हुआ और यामागुकी ने फिर से परमाणु विकिरणों के घातक प्रहार को झेला.
इस बार वे धमाके वाले स्थल से तीन किलोमीटर दूर थे. यामागुकी उन चुनिंदा लोगों में से थे, जो इन हमलों से बच गये. आधिकारिक तौर पर यामागुकी को ऐसे लोगों में शामिल किया गया, जिन्होंने अपनी जिंदगी में दो परमाणु हमलों का सामना किया है. मालूम हो कि दुनिया में अब तक दो परमाणु हमले (हिरोशिमा और नागासाकी) हुए हैं. दोनों शहरों की ओर से उन्हें आधिकारिक रूप से हमले में बचे व्यक्ति के तौर पर पहचान करते हुए वर्ष 2009 में प्रमाणित किया गया.
तब का हिरोशिमा शहर
हिरोशिमा शहर ओटा नदी के फ्लैट डेल्टा पर विस्तृत रूप से बसा हुआ है, जिसमें सात चैनल हैं और ये शहर को छह द्विपों में बांटती है. यह शहर समुद्र तल से महज कुछ ही ऊंचाई पर बसा है. शहर के पश्चिमोत्तर और पूर्वोत्तर इलाके में कुछ पहाड़ियां भी हैं, जिनकी ऊंचाई 700 फीट तक है.
शहर के पूर्वी इलाके में एकमात्र पहाड़ी है, जो करीब आधा मील लंबा और 221 फीट ऊंचा है. 1945 के बम धमाके में इस पहाड़ी ने एक तरह से अवरोध का कार्य किया, जिसके कारण शहर के कुछ इलाके बम धमाके की चपेट में आने से बच गये. उस समय इस शहर का कुल क्षेत्रफल 26 वर्ग मील था, जिसमें से सात वर्ग मील इलाका सघन तरीके से बसा हुआ था. शहर की तकरीबन 75 फीसदी आबादी शहर के मध्य भाग में सघन रूप से बसी हुई थी.
शहर में उस समय दक्षिणी जापान के रक्षा मामलों को नियंत्रित करनेवाली द्वितीय आर्मी मुख्यालय भी था. शहर के केंद्र में कई बड़ी और छोटी इमारतें थीं. शहर के बाहरी इलाकों में कुछ औद्योगिक इकाइयां भी थीं. ज्यादातर घर लकड़ियों से बने हुए थे. औद्योगिक भवन भी लकड़ियों के ढांचे से ही बनाये गये थे.
बम विस्फोट के ज्यादा घातक परिणाम होने की एक वजह इसे भी माना जाता है. 1945 में हिरोशिमा की आबादी 2,55,000 के आसपास बतायी जाती है. बम गिराये जाने के बाद जापान सरकार के आदेश के कारण यहां की आबादी धीरे-धीरे कम होती गयी.