लोग अकसर यह शिकायत करते मिल जाते हैं कि भाग-दौड़ से भरी रोजमर्रा की जिंदगी में फुरसत के क्षण नहीं मिल पाते हैं. लेकिन, एक सफल व संतुष्ट जीवन के लिए फुरसत उतना ही जरूरी है, जितना जरूरी आपका काम है.
कैथोलिक ईसाइयों के धर्मगुरु पोप फ्रांसिस ने एक साक्षात्कार में कहा है कि पढ़ने, कला और बच्चों के साथ खेलने जैसी चीजों के लिए समय निकालना बहुत आवश्यक है.
उन्होंने बताया कि पोप बनने से पूर्व जब वे अर्जेटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में चर्च-प्रमुख थे, तो वे अकसर युवा माताओं से पूछते थे कि वे अपने बच्चों के साथ खेलने के लिए कितना समय निकाल पाती हैं. यह एक अप्रत्याशित प्रश्न होता था. शहरों में माता और पिता दोनों ही कामकाजी होते हैं और उनके पास बच्चों के लिए बहुत ही कम समय होता है. वे थके होते हैं और घर पर भी काम के तनाव से ग्रस्त होते हैं. कई लोग तो घर पर भी दफ्तर का काम लेकर चले आते हैं. कई अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि माता-पिता का बच्चों के साथ खेलना और समय बिताना उनके अच्छे विकास में सहायक तो होता ही है, बड़ों की थकान को भी कम करता है तथा उन्हें तनावमुक्त रखता है.
यह ठीक है कि काम से समय निकालना मुश्किल होता है, लेकिन समझदार माता-पिता को यह कोशिश जरूर करनी चाहिए. ऐसे में पोप फ्रांसिस की सलाह बहुत मददगार हो सकती है. उन्होंने कहा है कि रविवार का दिन परिवार के लिए समर्पित होना चाहिए. जिन लोगों को रविवार के दिन अवकाश नहीं मिल पाता, वे सप्ताह का कोई और दिन नियत कर सकते हैं. इस दिन को वे बच्चों के साथ पढ़ने, खेलने और मनोरंजन करने में बिता सकते हैं. शहर में या आसपास की यात्र भी सुखद हो सकती है. पोप की बात को अगर मनोवैज्ञानिकों और बाल-विशेषज्ञों के अध्ययन के साथ देखें, तो बच्चों के साथ समय बिता कर माता-पिता उनके अंदर अवसाद, अकेलापन, चिड़चिड़ापन जैसी मानसिक संकटों को पैदा होने से रोक सकते हैं. तो, यह तय करें कि सप्ताह का एक पूरा दिन बच्चों के नाम करें!