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चित्रकार चित्त प्रसाद के ”अनाथ बच्चे”

अशोक भौमिक, चित्रकार इस चित्र को जिस आत्मीयता से चित्त प्रसाद ने रचा है, उससे लगता है कि इस उजाड़ कमरे में रात के ऐसे वक्त चौथे व्यक्ति के रूप में चित्त प्रसाद स्वयं उपस्थित हैं.पि छली सदी, भारतीय चित्रकला के क्षेत्र में कई व्यापक परिवर्तनों की सदी रही है. इनमें सबसे महत्वपूर्ण शायद चित्रकला […]

अशोक भौमिक, चित्रकार

इस चित्र को जिस आत्मीयता से चित्त प्रसाद ने रचा है, उससे लगता है कि इस उजाड़ कमरे में रात के ऐसे वक्त चौथे व्यक्ति के रूप में चित्त प्रसाद स्वयं उपस्थित हैं.पि छली सदी, भारतीय चित्रकला के क्षेत्र में कई व्यापक परिवर्तनों की सदी रही है. इनमें सबसे महत्वपूर्ण शायद चित्रकला के परिसर में आम आदमी का आगमन ही था.
हजारों सालों के भारतीय चित्रकला इतिहास में चित्र में देवी-देवताओं और राजा-रानियों की कथाओं का ही चित्रण होता आया है, पर अमृता शेरगिल और रबींद्रनाथ ठाकुर ने अपने चित्रों के माध्यम से नये संभावनाओं को जन्म दिया, जिसके कारण आगे चलकर चित्त प्रसाद (1915-1978) सरीखे चित्रकारों ने भारतीय चित्रकला को एक नयी दिशा दी.
चित्त प्रसाद को महानगरों से लेकर छोटे से छोटे कस्बों और गांवों के जन-जीवन का गहरा अध्यन था, इसलिए शहर और गांव में शोषित और संघर्ष करते वर्ग की उन्हें न केवल पहचान थी, बल्कि उन्होंने अपनी चित्रकला को इसी वर्ग के लिए समर्पित किया था. शिक्षा की सुविधाओं से कटे, बाल श्रमिकों के जीवन के कटु यथार्थ को चित्त प्रसाद ने बहुत करीब से जांचा-परखा था, इसीलिए उनके चित्रों में ऐसे अनूठे डिटेल्स हैं, जो भारतीय चित्र कला में विरल है.
बच्चों के बुरे वक्त और उनके असहाय मुहूर्तों पर चित्र रचते समय, चित्त प्रसाद उन अभागे बच्चों के साथ खड़े होने की चाहत लिये चित्र बनाये है. चित्र ‘अनाथ बच्चे’ उनकी ऐसी ही एक महान कृति है. हम इस चित्र को बेहतर अनुभव करने के लिए इसे तीन हिस्सों मे बांट सकते है.
चित्र में, नींद से जूझती हुई एक अनाथ बच्ची, गहरी नींद में सो रहे अपने दोनों छोटे-छोटे भाइयों को मानो समस्त विपदाओं से बचाने के संकल्प के साथ रात जाग रही है. चित्र के दूसरे हिस्से में हम एक जलते हुए दिये को पाते है, यहां चित्त प्रसाद लीनोकट के कितने बड़े कलाकार थे, उसका भी प्रमाण हमें मिलता है.
दरअसल, लीनोकट छपाई चित्र की एक ऐसी पद्धति है, जहां लीनो (रबर जैसी सामग्री से बनी मोटी चादर, जिसे मूलतः फर्श पर बिछाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है) पर धारदार औजार से चित्र को पहले उकेरा जाता है. चित्र रचना का यह माध्यम इसलिए और भी कठिन है, क्योंकि मूल चित्र लीनो पर दर्पण में प्रतिबिंब की तरह उल्टा बनना पड़ता है, ताकि छपने पर सीधा चित्र बन सके.
इसके साथ-साथ इस माध्यम का दूसरा जटिल पक्ष यह भी है कि वे हिस्से जो काट कर (या तराश कर) निकाल दिया जाता है, वही छापा चित्र में सफेद अंश के रूप में उभरते हैं. और जिन अंशों को नहीं तराशा जाता, वही चित्रों के काले हिस्से बनते हैं.
यहां इस माध्यम का उल्लेख इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि ‘अनाथ बच्चे’ चित्र में प्रकाश के एक मात्र उत्स एक दीपक है, जिसकी रोशनी तीनों बच्चों को इस ढंग से प्रकाशित कर रही है, जिससे उनके शरीरों के रोशन और अंधेरे हिस्से चित्र को न केवल एक गहराई प्रदान कर रही है, बल्कि किसी मिडिल टोन की अनुपस्थिति ने चित्र को और भी प्रभावशाली बना दिया है.
इस चित्र के इन सब पक्षों से शायद सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है- चित्र में एक खिलौने की उपस्थिति. मानो यह खिलौना इन बच्चों द्वारा खेले जाने के इंतजार में बच्ची के साथ रात भर जाग रहा है.
इस चित्र को जिस आत्मीयता से चित्त प्रसाद ने रचा है, उससे लगता है कि इस उजाड़ कमरे में रात के ऐसे वक्त चौथे व्यक्ति के रूप में चित्त प्रसाद स्वयं उपस्थित हैं.

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