
झारखंड की सरकार ने अपने एक साल पूरे होने पर उपलब्धियों के तौर पर मदरसों को अनुदान देने का फ़ैसला लिया है.
लेकिन यह मदरसों के अध्यापकों को दैनिक मज़दूरी देने के लिए भी पर्याप्त नहीं है. इसीलिए सरकार के इस फ़ैसले का विरोध होना शुरू हो गया है.
वित्त रहित मदरसा शिक्षक संघ के अध्यक्ष नुरूल इस्लाम कहते हैं, "मदरसों को आर्थिक सहायता के लिए सालों से हम दरख़्वास्त कर रहे हैं. लेकिन जो अनुदान दिया गया है वह भीख जैसा है."
उनके अनुसार राज्य में 592 मदरसे हैं, जो बिना किसी सरकारी सहायता के संचालित हो रहे हैं.
उन्होंने कहा, "चुनावों का वक़्त आया है, तो रिझाने का प्रयास किया गया है."
दिहाड़ी मज़दूर से भी कम
नुरूल इस्लाम बिहार सरकार को इस मामले में बेहतर बताते हैं.
राज्य की मानव संसाधन विकास मंत्री गीताश्री उरांव भी मानती हैं कि अनुदान की राशि कम तय हो गई लगती है और इसमें सुधार की गुंजाइश है.

मदरसा अंजुमन इस्लामिया के सचिव शफ़ीक़ अंसारी बताते हैं कि अलग राज्य के गठन के बाद से ही ये मांग उठती रही है.
ताज़ा फ़ैसले के तहत महज़ 24 मदरसों एवं 18 संस्कृत विद्यालयों को अनुदान देने की स्वीकृति मिली है.
इसके अनुसार प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्तर के ऐसे संस्थान जिनमें छात्रों की संख्या 150 से 450 हो, उन्हें महीने में 11, 250 रुपए की अनुदान राशि मिलेगी.
तय मानदेय की मांग

राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हाजी हुसैन अंसारी का दावा है कि राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में उन्होंने फ़ैसले का विरोध भी किया था.
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने फ़ैसले को अमानवीय क़रार देते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र तक लिखा है.
उन्होंने कहा, "मदरसा शिक्षकों को जो पैसे मिलेंगे वे 63 से 133 रुपये होंगे. ज़ाहिर है यह दैनिक मज़दूरी 199 रुपये से भी कम होगी."
उन्होंने अनुदान की राशि चार गुना तक बढ़ाने की वकालत की.
मदरसों के हितों पर आंदोलन करते रहे झारखंड छात्र संघ के अध्यक्ष एस अली भी अनुदान की राशि को छलावा बताते हैं.
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