अर्चना शर्मा
आपकी नयी किताब, ‘योग माइथोलॉजी, 64 आसनाज एंड देयर स्टोरीज’ योग आसनों के महत्व से जुड़ी है या कुछ और है?
आम लोगों की जानकारी योगासान, ध्यान, योग दर्शन, पतंजलि सूत्र या कुछ योग गुरुओं तक है. इनके पीछे क्या कहानियां छिपी हैं, यह किसी को पता नहीं है. वीरभद्र आसन हो, रुचिका आसन हो, मत्स्य आसन या और कोई अन्य आसन हो, इनके पीछे एक विशेष संदर्भ और कहानी है, जिससे इन्हें समझना आसान और रुचिकर होता है. इस किताब में योगासनों के आख्यानों की कहानियां वर्णित हैं.
किताब के शीर्षक में 64 आसन का जिक्र है, इसके क्या मायने हैं?
चौंसठ से मन में चौंसठ कलाओं, चौंसठ योगिनियों, उनके मंदिर का खयाल आता है. प्राचीन भारतीय मंदिरों में बाहर में सबसे पहले योगिनी मंडल होता था, फिर अंदर देवता का वास होता था. जब तक योगिनियों की उपस्थिति नहीं होगी, अंदर मंदिर में देवता का वास नहीं होगा. योगिनियों की अनुपस्थिति में मांगल्य नहीं हो सकता. आजकल के मंदिरों में इस योगिनी मंडल का अभाव है. भुवनेश्वर से दस किमी की दूरी पर चौंसठ योगिनियाें का प्राचीन खूबसूरत मंदिर है.
क्या इस किताब के माध्यम से जीवन में योग के अंजाने पहलुओं से सामना होगा?
जरूर होगा. योग कई प्रकार के होते हैं. हठ योग, कर्म योग, भक्ति योग. हर योग के पीछे एक भाव, एक आख्यान है, वह सिर्फ फिटनेस या फिजिकल नहीं है. योग में जो निहित भाव, एक दर्शन जुड़ा हुआ है, वह इस किताब के जरिये समझ आ जायेगा.
हजारों साल से योग के महत्व को जानते हुए भी हम इसे जीवन में कम उतार पाये हैं. इसके पीछे क्या वजह हो सकती है?
एक कक्षा में कई तरह के विद्यार्थी होंगे, कुछ होशियार, कुछ मूर्ख, कुछ साधारण. मूर्खों की संख्या ज्यादा होती है और अनुसरण करनेवाले कम होते हैं. भले अनुसरण करनेवाले कम हों, पर कुछ तो हैं.
क्या पाश्चात्य और भारतीय संदर्भ में योग अलग-अलग है?
योग का पाश्चात्य संदर्भ, सगुण या शारीरिक पहलू पर बल देता है, जबकि भारतीय परंपरा में निर्गुण या देही महत्वपूर्ण है. देही को एक व्यापक संदर्भ में हम मन, चित्त, आत्मा या किसी भी शब्द से पहचान सकते हैं. शरीर के साथ-साथ मन का संतुलन योग का भारतीय संदर्भ है.
योगिनियों के विषय में आपने जो विशेष उल्लेख किया है, वह क्या है?
मैंने इस किताब में योगियों के साथ योगिनियों पर विशेष चर्चा की है. योगिनियों को हमारे यहां अलग रखा गया है. प्राचीन भारतीय दर्शन में योग और योगिनी दोनों ही सामान रूप से महत्वपूर्ण रहे हैं. योगिनी बाहरी देह है और योगी, आत्मज्ञान है. इन दोनों के साथ होने में ही जीवन का अर्थ है.
आपकी हर किताब में बड़ी ही रोचक कथा शैली होती है. इसके पीछे क्या कोई खास वजह है?
नाट्य शास्त्र में कहा गया है, कहानी का पात्र रस और भाव होता है. प्लॉट और चरित्र पर मैं जोर नहीं देता. मैं पाठक के अंदर बसे क्षीर सागर का मंथन करता हूं. उन्हें क्या पसंद है, मैं वही लिखता हूं.
प्रसंगों को मिथ्या करार देने के बारे में आपकी क्या सोच है?
मिथ्या और झूठ दो अलग-अलग शब्द हैं. मिथ्या का अर्थ झूठ नहीं, बल्कि खंडित सत्य होता है. हम सभी के पास एक खंडित सत्य है. भारतीय परिप्रेक्ष्य में सत्य और झूठ का कोई भेद नहीं होता, यह विभाजन पाश्चात्य सभ्यता की देन है. मैं पुराने अर्थों को पुनः जीवित कर रहा हूं.
सनातन आख्यानों और आधुनिक मान्यताओं में क्या कोई साम्य है?
सनातन का अर्थ बहुत बृहत है. इसके राजनीतिक पक्ष को एक तरफ रखें, तो आप पायेंगे कि भाव समान रहता है, यंत्र, तंत्र भले बदल जाये. बदलाव सिर्फ तकनीक का है.
हिंदुत्व के स्वरूप को वेंडी डॉनिगर और कुछ अमेरिकी इंडोलॉजिस्ट किस हद तक समझ पाये हैं?
लगता है एक महिला होने की वजह से वेंडी डॉनिगर अक्सर विवादों के घेरे में रहती हैं. वहीं डेविड फ्रॉले लोगों के लिए आदर्श हैं. उन्हें शास्त्री की उपाधि मिली है. बात वही योगी और योगिनी के बीच के फर्क पर आकर रुक जाती है. वेंडी के विचारों से भले हमारी असहमति हो, पर हम उन्हें नकार नहीं सकते. हिंदुत्व को एक व्यापार बना लिया गया है. क्या हम हिंदुत्व के असली स्वरूप को समझ पाये हैं? आज भी हम स्त्री-पुरुष असमानता के भाव को लेकर जी रहे हैं.