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नायक पर भारी ‘साइको विलेन’

सुप्रिया सोगले मुंबई से बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए प्यार में पागल हीरो खूब चलता है और कई बार उससे ज़्यादा चलता है पागल विक्षिप्त साइको विलेन. हाल ही में आई फिल्म ‘एक विलेन’ में ध्यान हीरो हीरोइन से ज़्यादा साइको विलेन ने खींचा. रितेश देशमुख ने ये रोल किया है. ये अपनी तरह […]

प्यार में पागल हीरो खूब चलता है और कई बार उससे ज़्यादा चलता है पागल विक्षिप्त साइको विलेन.

हाल ही में आई फिल्म ‘एक विलेन’ में ध्यान हीरो हीरोइन से ज़्यादा साइको विलेन ने खींचा. रितेश देशमुख ने ये रोल किया है.

ये अपनी तरह की पहली फिल्म नहीं है.

पुराने ज़माने में विलेन बड़ी-बड़ी मूंछों के साथ ज़्यादातर गंजे हुआ करते थे. फिर दौर आया एंटी हीरो का, जो व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ता था. अब ज़माना साइको-किलर्स का है.

फ़िल्म ‘डर’ में शाहरुख़ खान का साइको-लवर का किरदार, परिंदा में नाना पाटेकर या दुश्मन में गोकुल पंडित बने आशुतोष राणा, ये सभी किरदार साइको थे और ये खूब चले.

‘एक विलेन’ में साइको विलेन की भूमिका निभाने वाले रितेश देशमुख कहते हैं "इस फिल्म में साइको विलेन में एक मानवीय पहलू था, जो असल ज़िन्दगी में हम बर्दाश्त नहीं कर सकते पर परदे पर पसंद आ जाता है.’’

साधारण क्षमता

‘दुश्मन’ और ‘संघर्ष’ में साइको विलेन बने आशुतोष राणा कहते हैं ‘‘अगर ऐसे किरदारों को खूबसूरती से लिखा गया हो तो कोई साधारण अभिनेता इस रोल को अच्छा निभा सकता है, लेकिन जब ऐसा रोल किसी अच्छे अभिनेता को मिलता है तो वो किरदार अमर हो जाता है."

फ़िल्म विशेषज्ञ मयंक शेखर का कहना है कि "अगर किरदार साइको विलेन का है तो उसे निभाना मुश्किल नहीं. उसका चरित्र चित्रण काफ़ी आसान होता है पर अगर उसी किरदार की ज़िन्दगी की कहानी पर जाएंगे तब कुछ पेचीदा हो सकता है."

मयंक शेखर कहते हैं कि पहले अगर कोई हीरो विलेन का किरदार निभाता था तो उसका करियर लगभग ख़त्म माना जाता था.

शेखर के हिसाब से शाहरुख़ खान ने ‘डर’ में एक बहुत बड़ा रिस्क लिया था, लेकिन अब इन किरदारों में कोई रिस्क नहीं है.

शेखर कहते हैं, ”अब अगर कोई अभिनेता अपनी इमेज से अलग ऐसा किरदार निभाता है तो दर्शक उसे ज़्यादा पसंद करते हैं."

लोगों पर असर

इन किरदारों का आम लोगों पर नकारात्मक असर पड़ता है या नहीं, ये बहस का मुद्दा है.

मुंबई के मनोचिकित्सक हरीश शेट्टी की राय है कि ‘‘हर आदमी में एक साइको होता है पर ये काफ़ी दबा होता है.”

शेट्टी आगे कहते हैं ”जब आप ऐसे किरदार बड़े पर्दे पर देखते हैं तो आपके दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं, आप डर जाते हैं और सोचते हैं कि ये किरदार क्या करेगा? ऐसे किरदारों में हम एंटरटेनमेंट पाते है. हमने स्वीकारा है मनुष्य के व्यक्तित्व के कई रंग होते हैं.”

शेट्टी ने ऐसे कई मामले देखे हैं जहाँ लोगों ने फ़िल्में या ख़बरें देख कर जुर्म करते हैं.

लेकिन कोई भी दावे से ऐसा नहीं कह सकता कि निगेटिव किरदार लोगों पर गलत ही प्रभाव डालते हैं.

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