
पिछले 20 सालों में करोड़ों रुपये ख़र्च होने के बाद भी छत्तीसगढ़ के राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना के प्रजनन में कोई सफलता नहीं मिली है.
जगदलपुर के पहाड़ी मैना संवर्धन केंद्र में अब केवल एक मैना बची है और ज़ाहिर है अकेली मैना के सहारे प्रजनन होने से रहा.
स्थानीय लोगों की मानें तो बस्तर के कुछ ख़ास इलाके में रहने वाली पहाड़ी मैना भी अब कम ही नज़र आती है.
छत्तीसगढ़ के प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी रामप्रकाश कहते हैं, “अब हमारे पास पिंजरे में केवल एक मैना बची है. लेकिन हमने उसे प्रजनन के लिए नहीं रखा है. वह तो इसलिए है कि लोग जान सकें कि पहाड़ी मैना कैसी दिखती है."
सरकार की कोशिश
रामप्रकाश का दावा है कि पहाड़ी मैना इन दिनों प्रवास के लिए ओडिशा के मलकानगिरी इलाके़ में चली जाती है, इसलिए संभव है कि छत्तीसगढ़ के जिन इलाक़ों में पहले पहाड़ी मैना नज़र आती थी, वहां अब नज़र नहीं आ रही होगी.

बस्तर की पहाड़ी मैना को मनुष्य के आवाज़ की हुबहू नक़ल के लिए जाना जाता है. जिस अंदाज़ में आप बोलेंगे, यह पहाड़ी मैना उसी अंदाज़ में उस वाक्य को दुहरा देगी.
90 के दशक में इस मैना के संवर्धन के लिये सरकार ने कोशिश की और जगदलपुर में विशाल पिंजरा बना कर इसके प्रजनन की दिशा में प्रयास शुरु हुए. लेकिन आज तक राज्य सरकार ने इस राजकीय पक्षी पर एक भी वैज्ञानिक अध्ययन नहीं करवाया है.
‘गंभीर प्रयास नहीं’

हालत ये है कि हर साल अलग-अलग मद से करोड़ों रुपये ख़र्च करने के बाद भी सरकार यह भी नहीं जान पाई कि पिंजरे में क़ैद मैना में से कितने नर और कितने मादा थे. अधिकारियों और मंत्रियों ने मैना की कैप्टिव ब्रीडिंग के लिए इनके डीएनए जांच की घोषणा की लेकिन उस पर अमल नहीं हो सका.
वन जीव संरक्षण के लिए काम कर रही नेहा सेमुअल कोई गंभीर प्रयासों को गंभीर नहीं मानतीं.
वहीं कंज़र्वेशन कोर सोसायटी की वन्य जीव विशेषज्ञ मीतू गुप्ता कहती हैं, “पहाड़ी मैना का संरक्षण खुले जंगल में ही संभव है और सरकार को उनके रहवास के विकास की दिशा में काम करना चाहिए. उन्हें पिंजरे में रख कर विकास महज़ धन और समय की बर्बादी है.”
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