छत्तीसगढ़ की जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) की चर्चा आज पूरे देश में है. राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने पूरी व्यवस्था में बदलाव करके इसे सर्व सुलभ बना दिया. रमन सिंह को आज उनके राज्य के लोग ‘चाऊर बाबा’ के नाम से पुकारते हैं. और भी हैं राहें की चौथी कड़ी में आज पढ़ें छत्तीसगढ़ की जन वितरण प्रणाली पर खास रिपोर्ट..
अंजनी कुमार सिंह
देश में उदारीकरण के बाद से उपभोक्तावादी प्रवृत्ति बढ़ी, जिसका एक यह भी नतीजा हुआ कि लोगों की जरूरतें बढ़ती गयीं. कमाई का ज्यादातर हिस्सा खर्च होने लगा और हालात इससे भी आगे बढ़ते गये. लोगों को कर्ज लेकर अपनी जरूरतें पूरी करनी पड़ती हैं. छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं रहा. इस राज्य में भी गरीबों को दो वक्त का खाना नसीब नहीं होता था. इस समस्या से निबटने के लिए सरकार ने कई स्कीम बनायी. पीडीएस में छत्तीसगढ़ भ्रष्टाचार का शिकार था और 50 फीसदी से ज्यादा अनाज कभी लाभार्थी तक पहुंचता ही नहीं था.
कुछ राज्यों को छोड़ दें तो पीडीएस की अक्षमता और उसमें खामियां लगभग हर राज्य की कहानी है. तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश आदि को छोड़ कर सभी राज्यों मे पीडीएस में अनेक खामियां हैं. लेकिन 2007 के रिफार्म के बाद छत्तीसगढ़ ने भी लीकेज कम करने में बहुत हद तक कामयाबी पायी. वैसे तो कई राज्य 2004-05 से पीडीएस को रिफार्म करना चालू कर चुके थे और ओवरऑल लीकेज 50 फीसदी से घट कर लगभग 30 से 35 प्रतिशत तक रह गया था. और जो लाभार्थी थे, उनमें भी वृद्धि हुई और यह प्रतिशत 23 से बढ़ कर 45 फीसदी तक पहुंच गया.
आखिर रमन सिंह की सरकार ने ऐसा क्या किया, जो सभी छत्तीसगढ़ की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के उदाहरण देने लगे और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने केंद्र सरकार से एक कमेंट भी मांग दिया.
उठाये गये प्रमुख कदम
सबसे पहला कदम रमन सिंह ने उठाया कि निजी दुकानदार से पीडीएस दुकान लेकर उन्होंने स्थानीय सामुदायिक निकाय जैसे वन सुरक्षा समिति, गांव समिति, ग्राम पंचायत, महिला स्व-सहायता समूह के लोगों को सौंप दी. इससे लोगों में जवाबदेही आयी, क्योंकि वह खुद के फायदे की स्कीम में किसी तरह का घपला (चिट) नहीं कर सकते थे.
दूसरा महत्वपूर्ण कदम जो सरकार ने उठाया, वह था पीडीएस दुकान के मालिक को कमीशन आठ रु पये से बढ़ा कर 44 रु पये प्रति क्विंटल कर दिया. दरअसल, रमन सिंह जानते थे कि वितरक मुनाफा कम मिलने की वजह से घोटाला करते हैं.
तीसरा कदम, सरकार ने 75,000 का ब्याज मुक्त कर्ज हर पीडीएस दुकान को देने का निर्णय लिया, ताकि दुकानों का विकास किया जा सके एवं कैश फ्लो की समस्या से उबरा जा सके. हालांकि, असली सुधार 2007 के शुरू में हुआ, जब कोटा में पीडीएस की अक्षमता के मुद्दे पर सत्ताधारी भाजपा चुनाव हार गयी. सरकार ने उस समय ब्यूरोक्र ेट्स की एक क्रैक टीम बनायी, जिसका नेतृत्व राज्य के चीफ इलेक्टॉरल ऑफिसर आलोक को फूड डिपार्टमेंट का अतिरिक्त प्रभार देते हुए सौंपा गया. उनकी टीम ने सभी साङोदारों से मिल कर चर्चा की और एक रिफार्म प्लान बनाया, जिसमें सब्सिडी को कई गुणा बढ़ाना भी शामिल था.
राजनीतिक इच्छाशक्ति जरूरी
सरकार के दृढ़ संकल्प ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, क्योंकि जब तक राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं होगी, तब तक कुछ नहीं किया जा सकता. दुकानों का निजीकरण, घर पर डिलिविरी के साथ कई अन्य नयी तकनीकों का उपयोग किया गया. कई बार एसएमएस के जरिये लाभार्थी को सूचित किया जाता था. अनाज किस अवस्था में है, कहां है, इसकी समुचित मॉनिटरिंग की व्यवस्था की गयी. यह सब कंप्यूटराइज किया गया.
ग्रिवांस रिड्रेशल का काफी फायदा हुआ. इसमें विजिलेंस के साथ मिल कर छापा मारा जाता था. घपला करनेवालों पर एफआइआर दर्ज किया जाता था. कई लोगों को जेल भी जाना पड़ा, लाखों टन अनाज पकड़ा गया. साथ ही, इस व्यवस्था में पारदर्शिता आयी और बोगस राशन कार्ड खत्म हुए. कहा जाता है कि यह प्रोग्राम राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ ही पॉलिटिकल मूव था, जिसका लाभ लोगों को मिला. पीडीएस में चल रहे घोटाले को दूर करने के लिए सरकार का यह साहसिक फैसला कहा जायेगा. छत्तीसगढ़ अपने रिफार्म की वजह से उन राज्यों में शामिल हो रहा है, जहां पर पीडीएस सिस्टम काफी मजबूत है और इसमें लीकेज की समस्या न के बराबर है. अन्य राज्य भी इसे अपना सकते हैं.
छत्तीसगढ़ का पीडीएस छह साल के बाद और बेहतर होता जा रहा है. इसका कारण है स्मार्ट कार्ड का इस्तेमाल. स्मार्ट कार्ड के जरिये इसमें आइटी टूल्स उपयोग किया जाता है. एक सर्वर पर सभी डाटा की मॉनिटरिंग की जाती है. स्मार्ट कार्ड लगाते ही यह पता चल जाता है कि उक्त व्यक्ति ने कितना अनाज लिया है. कहां से लिया है तथा इन्हें और कितना मिलना चाहिए.
गुणवत्ता से समझौता नहीं
इसकी शुरु आत सबसे पहले सेल्फ हेल्प ग्रुप द्वारा चलायी गयी रजत तलब से हुई, जिसके कारण काफी बदलाव आया. इस कोर पीडीएस सिस्टम में स्मार्ट कार्ड उपयोग किया जाता है. 70 हजार कार्ड होल्डर इसका लाभ उठा रहे हैं. इसकी खासियत यह है कि जो कार्ड होल्डर हैं, उनकी मांग पर राशन उपलब्ध कराया जाता है. इसमें एक नहीं कई पीडीएस से अपना समान ले सकता है. कार्ड लगाते ही यह पता चल जाता है कि उन्होंने कौन-कौन से सामान पीडीएस से लिये हैं. इसीलिए उन्हें गुणवत्ता से समझौता करने की जरूरत नहीं है. एक जगह यदि गुणवत्ता अच्छी नहीं मिल रही है, तो वह दूसरी दुकान से सामान ले सकता है.
इस स्कीम की सफलता से सरकार ने मोबाइल राशन शॉप का भी शुरू कर दिया है. तय समय के हिसाब से मोबाइल वाहन जाती है और स्मार्ट कार्ड होल्डर इससे सामान खरीद सकते हैं. पीडीएस सिस्टम छत्तीसगढ़ खासकर रायपुर में अब कोई शिकायत नहीं है. राज्य के प्रभावी पीडीएस सिस्टम की वजह से कई फायदे और बदलाव हुए. इनमें से एक ऐसी उपलिब्ध है कि इसने देश की कुपोषण जैसी बड़ी समस्या को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभायी. कैग ने भी इसकी तारीफ की. जहां तक कुपोषण का सवाल है, तो दिल्ली में 50 फीसदी, बिहार में 82 फीसदी है, जबकि छत्तीसगढ़ में यह 38 फीसदी पर आ गया है जबकि 2006-07 में राज्य में 54 फीसदी बच्चे कुपोषित थे. स्पष्ट है कि पीडीएस सिस्टम मजबूत होने के कई फायदे होते हैं. उसका एक कारण यह है कि राज्य की कुपोषण की दर कम हुई है. इस व्यवस्था को दूसरे राज्यों को भी अपनाना चाहिए.
छत्तीसगढ़ पीडीएस में किये गये रिफार्म
पहुंच बढ़ाना : पीडीएस दुकानें स्थानीय सामुदायिक निकाय को दी गयीं. बीपीएल को चावल एक रु पये प्रति किलो दिया गया. दुकानें पूरे महीना खुलने लगीं. दुकानों की संख्या बढ़ायी गयी.
लाभार्थी भी बढ़े : बोगस कार्ड खत्म करने के लिए सभी कार्ड कैंसिल कर नये बीपीएल कार्ड होलोग्राम के साथ प्रिंट करा कर बांटे गये. नया डाटाबेस बना.
बेहतर विजिलेंस : अच्छी निगरानी के कारण 33 फीसदी दुकानों को बारी-बारी से फूड इंसपेक्टर चेक करते थे. रियल टाइम मॉनिटरिंग की व्यवस्था विकसित की गयी, ताकि अनाज डिलिवरी में गड़बड़ी नहीं हो. इससे कई लोग पकड़े गये. अनेक लाइसेंस रद्द किये गये.
जागरूकता बढ़ायी : महीने की सात तारीख को चावल उत्सव मनाया जाता है. 150 से ज्यादा दाल-भात केंद्र बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर शुरू किये गये. पांच रु पये में थाली मुहैया करायी गयी. दुकानदारों का कमीशन आठ रु पये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 44 रु पये प्रति क्विंटल कर दिया गया.