चार भारतीय नर्सें इराक़ के नासारिया क्षेत्र को लौट गई हैं. उन्होंने भारत सरकार को इस बात का हलफ़नामा दिया है कि वे हिंसाग्रस्त देश में अपनी ज़िम्मेदारी पर लौट रही हैं.
इन नर्सों से कहा गया था कि उन्हें अप्रवासन अधिकारियों के सामने एक आवेदन जमा करना होगा. बातचीत के बाद अधिकारियों ने इनके दस्तावेज़ जारी कर दिए. नर्सों की 26 जून को रवानगी थी.
क़र्ज़े ने फंसाया भारतीय नर्सों को इराक़ में
शुक्रवार को नसारिया अस्पताल में ड्यूटी ज़्वाइन करने वाली सिंधू ने बीबीसी हिंदी को फ़ोन पर बताया, ”हमने लिखा कि हम इराक़ की स्थितियों से अवगत हैं और इराक़ जाने के अपने निर्णय की पूरी ज़िम्मेदारी लेते हैं.”
आईएसआईएस चरमपंथियों द्वारा तिकरित और मोसूल समेत इराक़ के एक बड़े हिस्से पर क़ब्ज़ा किए जाने के बाद भारत सरकार ने इराक़ की यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया था.
तीन सप्ताह पहले भारत आईं सिंधू और अन्य तीन नर्सों ने वापस जाने का फ़ैसला तब लिया जब उनकी सहकर्मियों ने उन्हें बताया कि यह इलाक़ा तिकरित या मोसूल की तरह अशांत नहीं है.
‘क़र्ज़ कर रहा मज़बूर’
सिंधु ने बताया, ”पढ़ाई और नौकरी की ख़ातिर लिए गए ऋण का भार हमें इस ख़तरे को उठाने के लिए मज़बूर कर रहा है.” इराक़ के हालात को लेकर उनके परिजनों काफ़ी चिंतित हैं.
लेकिन सभी नर्सें ये ख़तरा उठाने के लिए तैयार नहीं हैं. नोबी थॉमस और एक अन्य नर्स ने सुरक्षा को प्राथमिकता दी है. थॉमस ने बैंक से साढ़े चार लाख का शिक्षा ऋण लेकर नर्सिंग का कोर्स पूरा किया.
फंसी भारतीय नर्सों को केवल आश्वासन, सलाह
उन्होंने एक रिक्रूटमेंट एजेंसी को देने के लिए भी डेढ़ लाख रुपये का ऋण लिया. नसारिया में नौकरी मिलने के बाद अगस्त से ही उन्होंने ऋण चुकाना शुरू किया था.
केरल के कोट्टायम ज़िले की थॉमस ने कहा कि यदि वो भारत में काम करेंगी तो कभी ऋण नहीं चुका पाएंगी. उन्होंने कहा, ”अब मैं सउदी अरब या क़तर जैसे शांत देशों में नौकरी पाने की कोशिश करूंगी.”
तिकरित में मौजूद 46 नर्सों में से कम से कम 14 भारत वापस आना चाहती हैं, लेकिन बाक़ी नर्सें इराक़ के अपेक्षाकृत शांत इलाक़ों में जाना चाहती हैं.
ऋण ही वो मज़बूरी है जिसके कारण चार और नर्सें जुलाई के प्रथम सप्ताह में वापस इराक़ जाना चाहती हैं.
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