-अनुज कुमार सिन्हा-
केंद्र सरकार झारखंड में एम्स खोलना चाहती है. यह राज्य के लिए खुशखबरी है. इसके लिए केंद्र ने झारखंड सरकार को पत्र भी लिखा है. अगर झारखंड में एम्स खुल जाता है, तो इस राज्य के लोगों को इलाज के लिए बाहर नहीं भटकना पड़ेगा. पर सारा कुछ निर्भर करता है जमीन मिलने पर. अगर जमीन मिली, तो एम्स खुलेगा. नहीं मिली, तो नहीं खुलेगा? बिना जमीन के एम्स तो खुल सकता नहीं. सरकार के एक मंत्री कहते हैं कि बोकारो (शायद चंदनकियारी प्रखंड) में एम्स खुलेगा, दूसरे मंत्री कहते हैं दुमका में खुलेगा.
बोकारो के सीनियर अधिकारियों को कुछ पता नहीं. तो क्या हवा में एम्स खुलने जा रहा है? कहीं ऐसा न हो कि श्रेय लेने के मंत्रियों के दावे-प्रतिदावे में एम्स एक सपना बन जाये. 200 एकड़ जमीन चाहिए, कोई 20-30 कट्ठा नहीं. इसलिए सरकार इसकी गंभीरता को समझें. पर्याप्त सरकारी जमीन अगर बोकारो, दुमका या किसी अन्य जिले में है, तो अधिकारी बतायें, काम आगे बढ़ायें. पूरे झारखंड में सरकार जहां भी एम्स बनाना चाहे, बनाये. राज्य का हित ही होगा. लेकिन बनाये जरूर. सरकार के पास लैंड बैंक है नहीं, शायद उसे यह भी पता नहीं कि झारखंड के किस इलाके में कितनी जमीन उपलब्ध है. समय कम है. सरकार जल्द जमीन खोजे. युद्ध स्तर पर. सच तो यह है कि अगर एम्स चाहिए, तो अब लोगों को खुद सामने आना होगा.
पहल करनी होगी. जिनके पास जमीन है, वे एम्स के लिए जमीन देने आते हैं, तो यह काम आसान हो जायेगा. राज्य में लाखों एकड़ जमीन ऐसी है, जो रैयतों की है तो, लेकिन वे परती हैं. उनका उपयोग सालों-साल से नहीं हो रहा. अगर रांची से दूर उन क्षेत्रों में एम्स के लिए जगह मिले, जो आज काफी अविकसित हैं, तो राज्य के लिए बेहतर होगा. वहां ट्रेन और रोड की सुविधा होनी चाहिए. जिस जिले में एम्स बनेगा, उस क्षेत्र/जिले का महत्व राज्य में बढ़ेगा. आसपास का इलाका तेजी से विकसित होगा. विकास होगा. रोजगार के नये-नये अवसर पैदा होंगे. एम्स कहीं पर मुनाफा कमाने के लिए नहीं खुलता है. यह लूटनेवाली कोई निजी संस्था नहीं है. सरकारी संस्था है.
दिल्ली में आज चार-चार माह तक लोगों को एम्स में सिटी स्कैन के लिए लाइन लगानी पड़ती है. फिर भी लोग वहां जाते हैं, क्योंकि कम से कम पैसे में बेहतर इलाज होता है. लोगों को एम्स और अन्य संस्थाओं में फर्क महसूस करना होगा. आज झारखंड के लाखों लोगों को हर साल इलाज के लिए दिल्ली, मुंबई और दक्षिण के राज्यों में जाना पड़ता है. कितने पैसे खर्च होते हैं, हिसाब नहीं है. कितनी परेशानियां होती हैं, यह वे ही लोग जानते हैं, जिन्हें जाना पड़ता है. जब राज्य में अपना एम्स होगा, तो इसका लाभ झारखंड के लोगों को ही मिलेगा. झारखंड के साथ ही उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ राज्य बने. दोनों जगह एम्स कैंपस बन चुका है, लेकिन झारखंड में अब अवसर आया है. इस अवसर को हाथ से मत जाने दीजिए. इसी झारखंड में जमशेदपुर में आनंद लोक अस्पताल (जिसे ट्रस्ट चलाता है और मामूली कीमत पर गरीबों का इलाज होता है) नहीं बन पाया, क्योंकि यहां की सरकार उसे जमीन नहीं दे सकी. अस्पताल के प्रमुख डीके सर्राफ जमीन खोजते-खोजते थक गये. कोई कहता- बहरागोड़ा में खोलिए, कोई सरायकेला, तो कोई जमशेदपुर. अंतत: कहीं नहीं खुला. वही अस्पताल बाद में बंगाल में ही बना.
किसी भी राज्य का विकास तभी हो सकता है, जब वहां बेहतर शैक्षणिक संस्थाएं हों, बेहतर इंजीनियरिंग-मेडिकल कॉलेज हों, बेहतर प्रबंधन के संस्थान हों, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा हो. झारखंड इन सभी में पीछे है. जून-जुलाई में झारखंड से दक्षिण के राज्यों, पुणो-मुंबई और दिल्ली जानेवाली ट्रेनें यहां के छात्र-छात्रओं से भरी होती हैं. जगह नहीं होती है. अपना कैरियर बनाने ये बाहर जाते हैं. अगर झारखंड में अच्छे संस्थान होते, तो इन्हें बाहर नहीं जाना पड़ता. जितने पैसे बच्चों के एडमिशन में लगते हैं, लगभग उतने ही पैसे उन्हें वहां रहने-खाने में लगते हैं.
ऐसा नहीं है कि झारखंड को पहले कभी अवसर नहीं मिला. अनेक संस्थाओं ने यहां आने का आवेदन दिया. यहां जमीन नहीं मिली, तो वे चले गये. अब हम रोना रोते हैं कि अच्छी संस्थाएं आती नहीं. लौटने के बाद पछताते हैं. सरकार उन्हें जमीन दे नहीं पाती. सरकार करे भी तो क्या करे. जब भी जमीन का मामला आता है, लाठी-डंडा लेकर लोग खड़ा हो जाते हैं. बाहर की बात को छोड़ दीजिए, यह सरकार झारखंड विधानसभा का अपना भवन नहीं बना पा रही है. विवाद जमीन का है. ऐसे हालात में अगर लोग खुद सामने नहीं आये, तो एम्स का मामला भी लटक सकता है. एम्स खुलने के लाभ को समझना होगा. दिल्ली के एम्स को छोड़ दीजिए. सिर्फ रायपुर के एम्स में चार हजार से ज्यादा लोगों को सरकारी नौकरी मिल चुकी है. वह भी तब, जब वह नया है और अभी सिर्फ 160 बेड का है. इसे 1000 बेड का करने की योजना है. झारखंड में भी इससे कम बेड का तो नहीं ही खुलेगा.
अब अंदाजा लगा लीजिए कि जिस क्षेत्र में यह खुलेगा, वह क्षेत्र कितना विकसित होगा. रायपुर में इसलिए एम्स जल्द खुल गया, क्योंकि वहां की सरकार ने न सिर्फ जमीन दी, बल्कि समय पर पानी और बिजली भी उपलब्ध कराया. अस्पताल हो और बिजली न मिले, तो और बुरा हाल होता है. झारखंड सरकार को देखना चाहिए कि हर हाल में जमीन निर्धारित समय के भीतर मिल जाये. जितनी जमीन चाहिए, उतनी न मिलने पर काम नहीं चलेगा. उसका हाल भी आइआइएम जैसा हो जायेगा. झारखंड में रिजर्व बैंक का क्षेत्रीय कार्यालय नहीं खुल पाया, क्योंकि जमीन नहीं मिली. और भी उदाहरण मिल जायेंगे. विरोध वहां होना चाहिए, जहां ऐसी कंपनी आती है, जिसका जनहित से कोई संबंध नहीं होता. जो सिर्फ लूटने आते हैं. लेकिन जब बेहतर स्कूल-कॉलेज या अस्पताल खुलते हैं, तो इसका लाभ यहां के लोगों को ही मिलता है. आज आंध्रप्रदेश इसलिए आगे बढ़ा, क्योंकि चंद्रबाबू नायडू की सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर की शैक्षणिक संस्थाओं को मुफ्त में जमीन दी थी. एनआर नारायणमूर्ति की अध्यक्षतावाली प्लान पैनल कमेटी ने तो दो साल पहले ही भारत सरकार से सिफारिश की थी कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काम करनेवाली बेहतर संस्थानों को मुफ्त में जमीन देकर उन्हें आकर्षित कर सकती है.
अब झारखंड के लोगों को तय करना है कि उन्हें एम्स चाहिए या नहीं. अगर चाहिए तो खुद पहल करें. सिर्फ बोलने से नहीं होगा, जमीन देनी होगी, नेक काम के लिए. होना तो यह चाहिए कि जमीन देने की होड़ लग जाये. सरकार को तय करना मुश्किल हो जाये कि 20 जगह से ऑफर है, कहां लगायें. जब तक यह स्थिति नहीं होगी, लोग स्वार्थ से उठ कर राज्यहित, जनहित में नहीं सोचेंगे, राज्य का भला नहीं हो सकता.