एक अमरीकी अध्ययन के मुताबिक़ वयस्क जीवन की शुरुआत में बहुत ज़्यादा लाल मांस या रेड मीट खाने से महिलाओं में स्तन कैंसर का ख़तरा थोड़ा बढ़ सकता है.
हार्वर्ड के शोधकर्ताओं का कहना है कि भोजन में लाल मांस की जगह बींस, मटर, दालें, कुक्कुट उत्पाद, मेवा और मछली शामिल करने से वयस्क महिलाओं में ये ख़तरा कम हो सकता है.
लेकिन ब्रिटेन में विशेषज्ञों का कहना है कि इस बारे में अन्य अध्ययनों में लाल मांस और स्तन कैंसर के बीच कोई साफ़ संबंध नहीं है.
अतीत में हुए शोध से पता चलता है कि बहुत ज़्यादा लाल और प्रोसेस्ड मांस खाने से शायद बाउल कैंसर यानी आंत के कैंसर का ख़तरा बढ़ जाता है.
लाल मांस और स्तन कैंसर के बारे में नए आंकड़े वाला अमरीकी अध्ययन, 24 से 43 साल तक की 89 हज़ार महिलाओं के स्वास्थ्य पर आधारित है.
अमरीकी अध्ययन
बॉस्टन स्थित हार्वर्ड स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ की एक टीम ने स्तन कैंसर से पीड़ित लगभग तीन हज़ार महिलाओं के भोजन का विश्लेषण किया.
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपे इस टीम के शोध के मुताबिक़, "वयस्क जीवन की शुरुआत में लाल मांस ज़्यादा खाना स्तन कैंसर का एक कारण हो सकता है."
हार्वर्ड टीम की प्रमुख डॉक्टर मरयम फरविद और उनके सहयोगियों के मुताबिक़ ख़तरा "कम" है.
वहीं ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में एपिडेमियोलॉजिस्ट प्रोफ़ेसर टिम केय का कहना है कि अमरीकी अध्ययन में लाल मांस खाने और स्तन कैंसर के बीच "सिर्फ़ एक कमज़ोर कड़ी” पाई गई है जो ”इन दोनों के बीच कोई स्पष्ट कड़ी नहीं होने वाले मौजूदा सबूत को बदलने के लिए काफ़ी नहीं है”.
खान-पान
प्रोफ़ेसर टिम केय ने आगे कहा, "सही वज़न, कम मदिरापान और शारीरिक रूप से ज़्य़ादा सक्रिय होकर महिलाएं स्तन कैंसर के ख़तरे को कम कर सकती हैं. लाल मांस और आंत के कैंसर में संबंध पाया गया है और कुछ हद तक लाल मांस की जगह सफ़ेद मांस, बींस या मछली का सेवन करना बुरा ख़्याल नहीं है."
ऑक्सफ़ोर्ड में कैंसर एपिडेमियोलॉजी इकाई में निदेशक प्रोफ़ेसर वैलरी बेराल कहती हैं कि स्तन कैंसर के ख़तरे और खान-पान के बीच संबंध के बारे में दर्जनों अध्ययन है.
वे कहती हैं, "मौजूदा सबूत इस ओर इशारा करते हैं कि लाल मांस के सेवन का स्तन कैंसर से बहुत कम या बिलकुल ही संबंध नहीं है. इसलिए सिर्फ़ एक अध्ययन के नतीजों को ही आधार नहीं बनाया जा सकता."
ब्रेकथ्रू ब्रेस्ट कैंसर नाम की सहायता संस्था की सैली ग्रीनब्रूक ने कहा है कि उनकी संस्था इस विषय पर और ज़्यादा शोध का स्वागत करेगी.
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