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मौजूदा वक्त की सबसे बड़ी चिंताः पर्यावरण प्रदूषण

।। पर्यावरण दिवस।। -सतीश सिंह- आज विश्व पर्यावरण दिवस है. एक ऐसा दिवस, जिसका उद्देश्य दुनियावालों को यह याद दिलाना है कि इस धरती के पर्यावरण को आनेवाली पीढ़ियों के लिए भी बचा कर रखना है. पर्यावरण के मुख्य तत्व हैं जल, वायु एवं भूमि. और तरक्की के पथ पर आगे बढ़ने की होड़ में […]

।। पर्यावरण दिवस।।
-सतीश सिंह-
आज विश्व पर्यावरण दिवस है. एक ऐसा दिवस, जिसका उद्देश्य दुनियावालों को यह याद दिलाना है कि इस धरती के पर्यावरण को आनेवाली पीढ़ियों के लिए भी बचा कर रखना है. पर्यावरण के मुख्य तत्व हैं जल, वायु एवं भूमि. और तरक्की के पथ पर आगे बढ़ने की होड़ में हम इन तीनों के प्रदूषण को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. नतीजा यह है कि पर्यावरण प्रदूषण मौजूदा वक्त की गंभीरतम समस्या बन गयी है. देश में जल, वायु एवं भूमि प्रदूषण की स्थिति पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज.
विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) संयुक्त राष्ट्र द्वारा सकारात्मक पर्यावरण कार्य हेतु दुनियाभर में मनाया जानेवाला सबसे बड़ा उत्सव है. पर्यावरण और जीवन का अन्योन्याश्रित संबंध है. ऐसे में पर्यावरण के बढ़ते प्रदूषण से उपजी चिंता का समाधान तलाशने के लिए 1972 में संयुक्त राष्ट्र ने स्टॉकहोम (स्वीडन) में विश्वभर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया. इसमें 119 देशों ने भाग लिया. इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनइपी) का जन्म हुआ तथा प्रति वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस आयोजित करने का निश्चय किया गया. इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता लाते हुए राजनीतिक चेतना जागृत करना और आम जनता को प्रेरित करना था. तब से हर साल इस दिन दुनियाभर में जागरूकता के कार्यक्रम आयोजित होते हैं, लेकिन ज्यादातर देशों में प्रदूषण का स्तर साल-दर-साल बढ़ता ही जा रहा है.
भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम : भारत में पर्यावरण की सुरक्षा के मद्देनजर 19 नवंबर, 1986 से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू हुआ. इसमें पर्यावरण की परिभाषा में जल, वायु, भूमि और मानव जाति व अन्य जीवित जीव-जन्तु, वनस्पति, सूक्ष्म जीव एवं संपत्ति के बीच मौजूद परस्पर संबंधों को शामिल किया गया है. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं. जैसे – पर्यावरण की गुणवत्ता के संरक्षण हेतु सभी आवश्यक कदम उठाना. पर्यावरण प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण और उपशमन हेतु राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम की योजना बनाना और उसे क्रियान्वित करना. पर्यावरण की गुणवत्ता के मानक निर्धारित करना. पर्यावरण सुरक्षा से संबंधित अधिनियमों के अंतर्गत राज्य-सरकारों, अधिकारियों और संबंधितों के काम में समन्वय स्थापित करना. ऐसे क्षेत्रों का परिसीमन करना, जहां किसी भी उद्योग की स्थापना या औद्योगिक गतिविधियां संचालित न की जा सकें आदि.
वायुमंडल जटिल प्राकृतिक गैसों की एक संतुलित प्रणाली है, जो पृथ्वी पर जीवन को संभव बनाती है. एक लंबे अरसे से यह सुचारु रूप से कार्य कर रही थी, लेकिन हमारी करतूतों और लालच की वजह से आज यह प्रदूषित हो गयी है. वायु प्रदूषण से आशय है जटिल गैसों की संरचना में बिखराव आना.
वायु प्रदूषण का कारण कार्बन ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, वोलाटाइल आर्गेनिक कंपाउंड, पार्टिकुलेट्स, परसिस्टेंट फ्री रेडिकल्स, टॉक्सिक मेटल्स, ध्वनि की अधिकता आदि को माना जाता है. इस संबंध में सबसे बड़ा खतरा क्लोरो-फ्लोरो कार्बन गैस के उत्सर्जन से है, जो मानव निर्मित उपकरणों, जैसे एयर कंडीशन, फ्रिज, एयरोसेल स्प्रे आदि, से होता है. ‘ओजोन लेयर’ के छीजने का कारण क्लोरो-फ्लोरो कार्बन गैस ही है. ओजोन लेयर अल्ट्रा वायलेट किरणों को धरती पर आने से रोकता है. अल्ट्रा वायलेट किरणों से त्वचा के कैंसर, आंख से संबंधित बीमारियां आदि हो सकती हैं. साथ ही, इसका विपरीत प्रभाव वनस्पतियों पर भी पड़ सकता है.
वैसे तो पूरा विश्व वायु प्रदूषण के विपरीत प्रभावों से परेशान है, लेकिन भारत में इसका स्तर अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा है. विश्व स्वास्थ संगठन (डब्लूएचओ) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में दिल्ली को विश्व का सबसे प्रदूषित शहर बताया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के शीर्ष 20 प्रदूषित बड़े शहरों में से 13 शहर भारत में हैं. द न्यूयॉर्क टाइम्स इंटरनेशनल वीकली ने 2 फरवरी, 2014 के अंक में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया है कि बीजिंग में बहनेवाली हवा दिल्ली की हवा से काफी बेहतर है. एक रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2010 में भारत में 6,20,000 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.
वायु प्रदूषण के स्नेत
1. मानवजनित स्नेत :- वायु प्रदूषण को बढ़ाने में सबसे बड़ा योगदान इंसानों का है. पावर प्लांट, कल-कारखाने, पारंपरिक बायोमास, फरनेस, हीटिंग डिवाइस, लकड़ी, फसल, मल आदि के अवशेषों से जनित प्रदूषण को वायु प्रदूषण का स्थायी कारण माना गया है, जबकि मोटरगाड़ी, वेसल और एयरक्राफ्ट से उत्पन्न ध्वनि एवं जानलेवा गैसों के उत्सर्जन को चलंत कारण. इसके अलावा पेंट, हेयर स्प्रे, वार्निश, न्यूक्लियर हथियार आदि से भी वायु प्रदूषित होती है.
2. प्राकृतिक स्नेत :- धूलकण वायु को प्रदूषित करनेवाला सबसे बड़ा प्राकृतिक कारण है. आम तौर पर फसल रहित जमीन में धूलकण जमा रहते हैं, जो हवा चलने पर वायुमंडल में फैल जाते हैं. मीथेन गैस से भी वायु प्रदूषित होती है, जिसका उत्सर्जन पाचन क्रिया के दौरान जानवर करते हैं. रेडियो एक्टिव डिके, अर्थ क्रस्ट, वोल्केनिक गतिविधि आदि से भी वायु प्रदूषित होती है.
वायु प्रदूषण का प्रभाव
जीवित प्राणी को जीने के लिए एक निश्चित अंतराल पर ऑक्सीजन ग्रहण करना होता है, लेकिन वायु के प्रदूषित होने से वायुमंडल में से ऑक्सीजन की मात्र आहिस्ता-आहिस्ता कम हो रही है, जिससे जीव-जंतुओं को सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. इसके कारण आमतौर पर लोग अस्थमा, फेफड़े से संबंधित बीमारियां, कैंसर, सिस्टिक फाइब्रोसिस, कार्डियोवस्कुलर आदि बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं. डब्लूएचओ ने 25 मार्च, 2014 को जारी अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि वायु प्रदूषण के कारण विश्व में हर साल 70 लाख लोग मर रहे हैं.
समस्या के समाधान की कोशिशें
सच कहा जाये तो मौजूदा समय में पारिस्थितिक तंत्र को बचाने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किये जा रहे हैं. सिर्फ वर्षों पुराने दिखावा करनेवाले स्वांग को दोहराया जा रहा है. कल-कारखानों से निकलनेवाले अवशेषों और घातक गैसों पर काबू पाने के लिए हमारे पास अनेक डिवाइस उपलब्ध हैं, जैसे, पार्टिकुलेट्स पर नियंत्रण करने के लिए मैकेनिकल कलेक्टर्स एवं पार्टिकुलेट्स स्क्रबर्स, एनओएक्स पर काबू पाने के लिए लो एनओएक्स बर्नर एवं एनओएक्स स्क्रबर्स, एसिड गैस पर लगाम लगाने लिए वेट व ड्राइ स्क्रबर्स, मर्करी को कंट्रोल करने के लिए सोरबेंट इंजेक्शन तकनीक आदि, लेकिन स्थिति के बेकाबू होने के बाद भी इंसान इनके उपयोग के प्रति गंभीर नहीं है.
जल प्रदूषण
नदी, झील, नहर, तालाब, भूगर्भीय जल, सागर आदि में होनेवाले प्रदूषण को जल प्रदूषण कहा जाता है. प्रदूषित पानी का अर्थ है- सहने की क्षमता से अधिक मात्र में रसायन का उसमें पाया जाना. प्रदूषित पानी इंसानों के साथ-साथ पेड़-पौधों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है. डब्लूएचओ द्वारा 2010 में जारी रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषित पानी पीने से विश्व में 3.6 मिलियन लोग हर साल मर रहे हैं, जिसमें से बच्चों की संख्या 1.5 मिलियन है.
आज चीन का 90 प्रतिशत पानी पीने के योग्य नहीं है. 2007 में जारी अपनी एक रिपोर्ट में चीन के नेशनल डेवलेपमेंट एजेंसी ने कहा था कि चीन की सात प्रमुख नदियों का पानी पूरी तरह से जहरीला हो चुका है. भारत की बड़ी नदियों में यमुना तो लगभग मर चुकी है. सरस्वती तो कब विलुप्त हो गयी, इसका ठीक से हमें पता भी नहीं है. अब गंगा भी मरने के कगार पर है. कानपुर से पहले नरौरा परमाणु सयंत्र का अवशेष, और कानपुर में करीब पांच सौ कल-कारखानों का घातक रसायनिक अवशेष गंगा में रोज प्रवाहित किया जाता है. जीवनदायिनी कही जानेवाली गंगा में गंदगी, प्रदूषण और इसके सूखते जाने के कारण गंगेटिक डाल्फिन लुप्त होने के कगार पर हैं.
देश की दूसरी नदियों में भी मल-मूत्र एवं कल-कारखानों से निकलनेवाले अवशेष धड़ल्ले से प्रवाहित किये जा रहे हैं, जिससे विविध मानकों पर नदियों का पानी सहन करने लायक प्रदूषण की सीमाओं को पार कर चुका है. आमतौर पर सभी नदियों में पीएच, अल्केलिनिटी, डिजॉल्वड ऑक्सीजन (डीओ), टोटल डिजॉल्वड सॉलिड (टीडीएस), बीओडी, कैल्शियम, मैगनिशियम और क्लोराइड जैसे तत्वों की मात्र निर्धारित स्तर से ज्यादा पायी गयी है. इन तत्वों की उपस्थिति पानी में एक निश्चित स्तर तक ही होनी चाहिए. इनकी ज्यादा मात्र मानव स्वास्थ के लिए तो घातक है, साथ ही साथ यह जलीय जीव-जंतुओं के जीवन को भी खतरे में डालता है.
प्रदूषित भूगर्भीय जल
भूगर्भीय प्रदूषण का मूल कारण मिट्टी एवं सतह पर मौजूद जल का प्रदूषित होना है. मिट्टी में घातक रासायनिक तत्वों के लगातार पेवस्त होते रहने से उनकी पहुंच भूगर्भीय जल तक हो जाती है. इसी तरह मल-मूत्र और घातक रासायनिक तत्वों के नदी में प्रवाहित किये जाने से प्रदूषित नदी जल निकटवर्ती इलाकों के भूगर्भीय जल को भी प्रदूषित कर देता है. भूगर्भीय जल के प्रदूषित होने का एक बहुत बड़ा कारण कृषि कार्यो में उपयोग किया जानेवाला फर्टिलाइजर, हर्बीसाइड, इन्सेक्टिसाइड आदि भी है.
जल प्रदूषण के कारण
जल प्रदूषण का मुख्य कारण घातक रसायन, जैसे- कैल्सियम, सोडियम, मैंगनीज, पैथोजेन आदि, को माना जाता है. इस आलोक में जल प्रदूषण के कारकों को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है:-
1. ऑर्गेनिक- डिटर्जेंट, क्लोरोफॉर्म, फूड प्रोसेसिंग वेस्ट, इनसेक्टीसाइड, हबीर्साइड, पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन (मसलन- गैसोलीन, डीजल, जेट फ्यूल आदि) वोलाटाइल ओर्गेनिक कंपाउंड, सोलवेंट्स, आदि को इस वर्ग में रखा जा सकता है.
2. इनऑर्गेनिक- कल-कारखानों से उत्सर्जित एसिडिटी, जैसे- सल्फर डाइऑक्साइड, अमोनिया, रसायनिक अवशेष आदि; फर्टिलाइजर, मसलन, नाइट्रेट, फास्फेट आदि; हेवी मेटल, सिल्ट आदि को इनओर्गेनिक की श्रेणी में रखा गया है.
3. मैक्रोस्कोपिक- इस तरह के प्रदूषण का मुख्य कारण जलीय कचरा है, जिसे प्लास्टिक थैलियों, रसायनिक अवशेषों के रूप में नदी एवं समुद्र में डाला जाता है. समुद्र में जहाज के डूबने, दुर्घटनाग्रस्त होने आदि से भी समुद्री जल प्रदूषित होता है.
4. थर्मल- इस तरह के प्रदूषण का मुख्य स्नेत इंसान है. नदियों के जल को रोक कर ऊर्जा उत्पन्न करने की संकल्पना को साकार करने के लिए नदियों पर बांध बनाये जाते हैं, जिससे जल का तापमान बढ़ जाता है. अधिक तापमान से जल में ऑक्सीजन की मात्र कम हो जाती है, जिससे जलीय वनस्पतियों और जीवों का जीना दुष्कर हो जाता है.
कैसे स्वछ हो जल
घर से निकलनेवाले जलीय वेस्ट का 99.9 प्रतिशत हिस्सा जल होता है और 0.1 प्रतिशत प्रदूषित अवशेष. ऐसे प्रदूषित जल का उपचार जलशोधन प्लांट में किया जाता है, लेकिन तकनीकी कमी और जानकारी के अभाव में शोधन प्लांट में जल पूरी तरह स्वच्छ नहीं हो पाता है. उधर, नदी में प्रवाहित इंडस्ट्रियल वेस्ट का शोधन करना भी आसान नहीं होता है, क्योंकि इसमें जहरीले रसायन, हेवी मेटल्स, वोलाटाइल ऑर्गैनिक कंपाउंड आदि पाये जाते हैं. अन्य दूसरे प्रकार के जलीय अवशेषों का शोधन भी सरल नहीं है.
इस तरह की अड़चनों के बावजूद अगर हम अपनी दिनचर्या और सोच में कुछ बदलाव लाते हैं, तो नदी, झील, नहर, तालाब, भूगर्भीय जल, सागर आदि का पानी स्वच्छ हो सकता है. मोदी सरकार ने गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए उमा भारती को केंद्रीय मंत्री बनाया है, लेकिन सरकार को प्रदूषित जल के सभी स्नेतों को प्रदूषण मुक्त या उनका प्रदूषण कम करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करना होगा, तभी इसके अपेक्षित परिणाम निकल सकते हैं.
प्रदूषित भूमि
कचड़ा के असफल प्रबंधन, कृषि में पेस्टीसाइड, इन्सेक्टीसाइड, फर्टिलाइजर आदि के उपयोग, मल, फसल एवं निर्माण से संबंधित अवशेष, इंडस्ट्रियल अवशेष, जैसे, रसायन, मेटल्स, प्लास्टिक आदि; खनिज पदार्थों के लिए पहाड़ों का खनन, पेड़ों की कटाई, रसायनिक एवं न्यूक्लियर प्लांट से निकलने वाले अवशेष, तेल शोधन कारखानों में प्रयोग किये जानेवाले पेट्रो, गैस व डीजल से उत्सर्जित होनेवाले जानलेवा गैसों आदि के कारण भूमि में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है.
जंगल और पहाड़
भूमि प्रदूषण बढ़ने का सबसे बड़ा कारण जंगल और पहाड़ की दुर्दशा को माना जा सकता है. मौजूदा समय में भारत में जंगल 64 मिलियन हेक्टेयर एरिया में या कुल भूमि के 19.5 प्रतिशत हिस्से में फैला है. इस संदर्भ में यदि आंकड़ों की बात करें तो फूड एवं कृषि संगठन द्वारा वर्ष 2010 में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत विश्व के उन 10 चुनिंदा देशों में शामिल है, जहां जंगल का फैलाव तुलनात्मक दृष्टिकोण से अब भी संतोषजनक है. आकड़े बताते हैं कि पिछले 20 वर्षों में भारत में जंगल की भूमि में कुछ इजाफा हुआ है. फिर भी, स्थिति को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है.
चिपको आंदोलन का असर खत्म हो चुका है. लोग बेलगाम पेड़ों की कटाई कर रहे हैं. गांव, कस्बा, शहर सभी तेजी से कंक्रीट के जंगल में तब्दील होते जा रहे हैं. माइनिंग इंडस्ट्री को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जा सकता है. फिलहाल इसका देश के जीडीपी में 2.2 से 2.5 प्रतिशत का योगदान है. यदि खनिज पदार्थ आधारित इंडस्ट्रियल क्षेत्र के योगदान की बात करें तो यह बढ़ कर 10-11 प्रतिशत हो जाता है. इसका नकारात्मक पक्ष है, इससे होनेवाला भूमि प्रदूषण. फिलवक्त, कल-कारखानों में आइरन ओर, बॉक्साइट, यूरेनियम, कोयला, अबरख आदि कच्चे खनिज पदार्थों की आपूर्ति पहाड़ों को चीर कर की जा रही है. खनन के लिए खनिज पदार्थों से युक्त पहाड़ों का आवंटन समय-समय पर सरकार कॉरपोरेट्स को करती है, लेकिन लोग अवैध तरीके से भी पहाड़ों का दोहन कर रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि झारखंड, ओड़िशा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश आदि जंगल बहुल राज्यों में नदी, पहाड़ और जंगल त्वरित गति से मर रहे हैं.
भूमि प्रदूषण के खतरे
भूमि के प्रदूषित होने से जीव-जंतु, नदी, मिट्टी आदि बीमार हो रहे हैं. देश के हर प्रांत में गंदगी का अंबार लगा हुआ है. कचड़े की वजह से शहर में हैजा, डायरिया, पीलिया आदि जैसी बीमारियां लोगों को बार-बार अपने जकड़न में ले रही हैं. हमारी आमदनी का एक बहुत बड़ा हिस्सा स्वास्थ पर खर्च हो रहा है. सरकारी स्वास्थ महकमा लोगों को स्वस्थ रखने की कवायद कर रहा है, जिसमें अरबों-खरबों रुपये खर्च किये जा रहे हैं. लब्बोलुबाव के रूप में कहा जा सकता है कि प्रदूषण के कारण लोग अपनी स्वाभाविक जिंदगी नहीं जी पा रहे हैं.
क्या है निदान
प्रदूषित हो रही भूमि को बचाना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती जरूर है, लेकिन इस पर विजय प्राप्त किया जा सकता है. इस आलोक में जन-जागरूकता अभियान चलाना मुफीद हो सकता है. अगर हम अपनी आदतों में बदलाव लाते हैं, तो छोटी-छोटी कोशिशों के द्वारा भी अपेक्षित परिणाम प्राप्त किया जा सकता है.
यदि वस्त्र, बोतल, रैपर पेपर, कागज, शॉपिंग बैग आदि की बार-बार खरीददारी नहीं की जाये, नष्ट होनेवाली वस्तुओं का उपयोग किया जाये, पेस्टीसाइड और इन्सेक्टीसाइड के उपयोग से तौबा किया जाये, चीजों के अधिक से अधिक इस्तेमाल करने की आदत को विकसित किया जाये, कम कचड़ा पैदा किया जाये, कचड़ा को कम्पोस्ट में तब्दील करने की कोशिश की जाये, तो भूमि के प्रदूषित होने की रफ्तार धीमी पड़ सकती है.

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