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अफ़्रीका के तीन देशों में क्या करने गए हैं पीएम नरेंद्र मोदी?

<p>पिछले चार सालों में भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने अफ़्रीकी देशों की कुल 23 यात्राएं की हैं. इस साल फ़रवरी तक भारत की निर्यात-आयात बैंक ने 40 अफ़्रीकी देशों में चल रहे प्रोजेक्टों के लिए 167 बार क़र्ज़ मंज़ूर किया है. ये रक़म दस अरब डॉलर तक है. </p><p>भारतीय अधिकारियों को उम्मीद है […]

<p>पिछले चार सालों में भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने अफ़्रीकी देशों की कुल 23 यात्राएं की हैं. इस साल फ़रवरी तक भारत की निर्यात-आयात बैंक ने 40 अफ़्रीकी देशों में चल रहे प्रोजेक्टों के लिए 167 बार क़र्ज़ मंज़ूर किया है. ये रक़म दस अरब डॉलर तक है. </p><p>भारतीय अधिकारियों को उम्मीद है कि वो अफ़्रीका और भारत के बीच सालाना 52 अरब डॉलर के कारोबार को अगले पांच सालों में कम से कम तीन गुणा तक कर लेंगे. इसी उद्देश्य के लिए भारत ने इसी महीने अफ़्रीकी देशों में अपने दूतावासों की संख्या 29 से बढ़ाकर 2021 तक 47 करने का निर्णय लिया है. यानी अगले चार सालों में 18 नए मिशन स्थापित किए जाएंगे.</p><p>लेकिन अफ़्रीकी देशों में भारत के इस बढ़ते प्रभाव की तुलना जब चीन से की जाती है तो उसकी चमक फीक़ी पड़ जाती है. साल 2014 में चीन का अफ़्रीका के साथ 220 अरब डॉलर का कारोबार था लेकिन अब ये 2017 में 170 अरब डॉलर पर स्थिर है. अफ़्रीका के कुल 55 में से 54 देशों में चीन के 61 मिशन हैं. ये भारत के राजनयिक मिशनों की तुलना में दोगुने हैं.</p><p>भारत के प्रधानमंत्री रवांडा, यूगांडा और दक्षिण अफ़्रीका के दौरे पर हैं, इसी दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग सेनेगल, रवांडा, दक्षिण अफ़्रीका और मॉरीशस की यात्रा कर रहे हैं. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विमान जब रवांडा के किगाली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा तो उससे कुछ देर पहले ही शी जिनपिंग यहां से दक्षिण अफ़्रीका के लिए उड़े थे. दो नेताओं के इस कार्यक्रम से हवाई अड्डे पर प्रोटोकॉल से जुड़ी दिक्कतें ज़रूर आई होंगी. </p><h1>ब्रिक्स का विशेष सम्मेलन</h1><p>दिलचस्प बात ये है कि अपनी विदेश यात्राओं के लिए मशहूर प्रधानमंत्री मोदी ने चार साल के कार्यकाल में अब तक कुल 87 देशों की यात्राएं की हैं लेकिन वो तक सिर्फ़ सात ही अफ़्रीकी देशों में गए हैं. </p><p>भारत के प्रधानमंत्री अपनी ये यात्रा जोहानसबर्ग में समाप्त करेंगे जहां वो ब्रिक्स सम्मेलन के विशेष सत्र में भी हिस्सा लेंगे. ये सत्र ब्रिक्स की अफ़्रीका में पहुंच बढ़ाने के लिए रखा गया है और इसमें ब्रिक्स देशों (ब्राज़ील, रूस, भारत चीन और दक्षिण अफ़्रीका) के नेता नौ अफ़्रीकी देशें अंगोला, इथियोपिया, गबोन, नामीबिया, रवांडा, सेनेगल, टोगो, यूगांडा और ज़ांबिया के नेताओं से वार्ता करेंगे. </p><p>प्रधानमंत्री मोदी के पास भारत की अफ़्रीकी विदेश नीति को पारंपरिक पूर्वी तट से आगे ले जाने का ये बेहतरीन मौका होगा. मोदी का रवांडा और यूगांडा दौरा दर्शाता है कि भारत अब समूचे अफ़्रीका में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है.</p><p>मोदी सोमवार शाम छह बजे रवांडा पहुंच गए हैं. रवांडा भारत का रणनीतिक सहयोगी रहा ऐसे में मोदी की ये यात्रा अहम है. रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे हाल में दो बार भारत की यात्रा पर आ चुके हैं. वो जनवरी 2017 में बाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में हिस्सा लेने आए थे. इसी साल मार्च में अंतरराष्ट्रीय सोल अलायंस में भाग लेने भारत आए थे. </p><p>इससे भी महत्वपूर्ण ये है कि इसी साल जनवरी में रवांडा को 55 अफ़्रीकी देशों की यूनियन का अध्यक्ष चुना गया. रवांडा की राजधानी कगाली को अफ़्रीका का सबसे स्वच्छ शहर भी माना जाता है जहां के कचरा प्रबंधन से भारत अपने स्वच्छ भारत अभियान के लिए कुछ सबक ले सकता है. </p><p>हर महीने के अंतिम शनिवार को कगाली के हर नागरिक को सामुदायिक सेवा में हिस्सा लेना होता है जिसे ऊमूगांडा कहा जाता है. आलोचक कगाली प्रशासन की इसे लेकर आलोचना भी करते रहे हैं. हालांकि कगाली के लोग इस अनुशासन को लेकर असंतोष ज़ाहिर नहीं करते हैं. </p><p>1994 में रवांडा में हुए हूतियों और तुत्सियों के बीच गृह युद्ध में दस लाख से अधिक लोग मारे गए थे. उस समय रवांडा की कुल आबादी 73 लाख ही थी. यहां के बहुत से लोगों के ज़ेहन में अभी भी वो यादें ताज़ा हैं.</p><p>उस तबाही से उबरने के लिए रवांडा ने कई तरह के नए और प्रेरक कार्यक्रम चलाए थे. इनमें रवांडा का चर्चित गीरिंका कार्यक्रम भी शामिल है. कुपोषण और ग़रीबी से लड़ने के लिए 2006 में शुरू किए गए इस कार्यक्रम के तहत हर ग़रीब परिवार को गाय दी जाती है. </p><p>इस कार्यक्रम के तहत अभी तक एक लाख तीस हज़ार से अधिक परिवारों को गायें दी जा चुकी हैं. अपनी रवांडा यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी इस कार्यक्रम के लिए 200 गायें देंगे. मोदी कगाली नरसंहार स्मारक और संग्रहालय भी जाएंगे. ये स्मारक लोगों को अपने इतिहास का सच को स्वीकार करके भविष्य में सुलह का रास्ता चुनने की प्रेरणा देता है.</p><p>भारत रवांडा को दवाइयां, दो पहिया वाहन, प्लास्टिक उत्पाद और मशीनरी निर्यात करता है. दोनों देशें के बीच पांच करोड़ डॉलर का कारोबार होता है. </p><p>मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदी यूगांडा के लिए रवाना होंगे. रवांडा को भारत से चालीस करोड़ डॉरलर तक का क़र्ज़ लेने की सुविधा हासिल है. इसके अलावा रवांडा के छात्र प्रशिक्षण कार्यक्रमों और छात्रवृत्ति का भी फ़ायदा लेते हैं. </p><p>अपनी यात्रा के दौरान मोदी ने रवांडा में ओद्योगिक क्षेत्र के लिए दस करोड़ डॉलर का क़र्ज और कृषि और सिंचाई के लिए दस करोड़ डॉलर का क़र्ज़ देने की घोषणा की है. दोनों देशों के बीच संबंधों की मज़बूत आधारशिला रखते हुए रक्षा, संस्कृति, कृषि क्षेत्रों में सहयोग के समझौते भी हुए हैं.</p><h1>चीन से होड़ लेने की कोशिश</h1><p>रवांडा और भारत के सामाजिक संबंध मज़बूत रहे हैं. दोनों देशों के रिश्तों में इदी अमीन के शासनकाल की कड़वीं यादें भी हैं जब 60 हज़ार भारतीयों को वापस भारत भेज दिया गया था. 21 साल बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री यूगांडा पहुंच रहा है. दोनों देशों के बीच विकास और रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ने की उम्मीद है. </p><p>2010 से जिंजा में भारत सैन्य प्रशिक्षण केंद्र संचालित करता है. अपनी यात्रा के दौरान मोदी यूगांडा की संसद के विशेष सत्र को संबोधित करेंगे और भारत-यूगांडा व्यापार सम्मेलन को संबोधित करेंगे. मोदी यूगांडा में रह रहे भारतीय समुदाय के लोगों से भी मिलेंगे. अब यूगांडा में करीब तीस हज़ार भारतीय लोग रहते हैं. </p><p>भारत यूगांडा को बिजली लाइनें स्थापित करने के लिए 16.4 करोड़ डॉलर और दुग्ध उत्पादन और कृषि के लिए 6.4 करोड़ डॉलर का क़र्ज़ भी देगा. </p><p>भारत और यूगांडा के बीच 1.3 अरब डॉलर का कारोबार है. यूगांडा भारत को चाय और लकड़ी उत्पाद बेचता है जबकि भारत यूगांडा को दवाइयां, साइकिलें, दो पहिया वाहन, कृषि मशीनरी और खेल उत्पाद निर्यात करता है. यूगांडा अपनी तीस प्रतिशत दवाइयां भारत से मंगाता है. 2013 में भारत ने यूगांडा को 1.2 अरब डॉलर का निर्यात किया था लेकिन 2017 में ये गिरकर 59.9 करोड़ डॉलर ही रह गया था. </p><p>इसकी एक वजह ये है कि इस दौरान यूगांडा ने चीन से अधिक सामान आयात किया. चीन ने साल 2013 में 55 करोड़ डॉलर का सामान यूगांडा को निर्यात किया था जो 2016 में बढ़कर 86.1 करोड़ डॉलर हो गया. </p><p>ये दर्शाता है कि अफ़्रीका से व्यापारिक रिश्तों में चीन भारत का प्रतिद्वंदी है. भारत को चीन की अभूतपूर्व आर्थिक शक्ति का मुक़ाबला करने के बजाए अपनी ताक़त को पहचाने और उन क्षेत्रों में आगे बढ़े जिसमें उसे महारत हासिल है. यही नहीं भारत को चीन के साथ साझा उपक्रमों के मौके भी तलाशने चाहिए. </p><p>वुहान में मोदी और शी जिनपिंग की मुलाक़ात के बाद दोनों देशों के रिश्तों में जो गर्माहट आई है वो अफ़्रीका में भी दिखनी चाहिए. यहां अमरीका की मौजूदगी कम हो रही है, ऐसे में भारत और चीन के पास आपसी सहयोग से साझा उद्देश्यों के लिए मिलकर आगे बढ़ने का मौका भी है.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें</strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi"> फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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