<p>एक टेबल पर दो लोगों की दो हथेलियां, दोनों आपस में गुथी हुईं, हाथों की नसें उभरी हुईं, एक-दूसरे को पटकने की जी-तोड़ कोशिश और उनके चारों ओर मौजूद चेहरों से निकलती जोशीली आवाज़.</p><p>आपने अंदाज़ा लगा लिया होगा कि हम पंजा लड़ाने वाली किसी प्रतियोगिता के सीन की बात कर रहे हैं, लेकिन इस सीन में जो हथेलियां मौजूद हैं वो किस की हैं, क्या आप इसका अंदाज़ा लगा पाए? </p><p>शायद आपके ज़हन में किन्ही दो लड़कों के चेहरे उभरे हों और उनके चारों तरफ शोर मचाती आवाज़ों में लड़कियों की आवाज़ शामिल हो…</p><p>लेकिन अब इसी सीन को थोड़ा बदल दीजिए, आपस में गुथी हथेलियां लड़कियों की हैं जो अपना-अपना दमखम दिखा रही हैं. </p><p>अब शायद आपकी कल्पना की तस्वीर कुछ धुंधली हो गई हो. ऐसा होना वाजिब भी है क्योंकि लड़कियों को हम पंजा लड़ाते यानी आर्म रेसलिंग करते बहुत कम देखते हैं. </p><p>ऐसी ही एक आर्म रेसलर लड़की से आपको रूबरू करवाते हैं. जो केरल के कोझिकोड ज़िले से आती हैं. उनकी उम्र महज 24 साल है और वे डेंटल की पढ़ाई कर रही हैं. </p><p>हम बात कर रहे हैं मजीज़िया भानु की. मजीज़िया की पहचान एक ऐसी आर्म रेसलर लड़की के रूप में है जो हिजाब पहनकर आर्म रेसलिंग करती हैं. वे बॉडी बिल्डिंग का शौक़ रखती हैं, साथ ही पावर लिफ़्टिंग भी करती हैं.</p><p>कोझिकोड के ओरक्काटेरी गांव की रहने वाली मजीज़िया ने पिछले साल से ही एक प्रोफ़ेशनल खिलाड़ी के तौर पर आर्म रेसलिंग और बॉडी बिल्डिंग में हिस्सा लेना शुरू किया. वे इन खेलों में अभी तक तीन पदक जीत चुकी हैं. </p><p>इन दिनों मजीज़िया की डेंटल की परीक्षा चल रही है वे फिलहाल अपने कोर्स के चौथे वर्ष में हैं. </p><p><strong>कब आई चर्चा</strong><strong> </strong><strong>में </strong></p><p>मजीज़िया सबसे पहले चर्चा में तब आईं जब उन्होंने पिछले साल इंडोनेशिया में आयोजित एशियन पावरलिफ़्टिंग चैंपियनशिप में रजत पदक जीता था. </p><p>उन्होंने हिजाब पहनकर इस टूर्नामेंट में हिस्सा लिया था. उनके इसी पहनावे की चर्चा सोशल मीडिया पर होने लगी. मजीज़िया ने बताया कि इस टूर्नामेंट में कुल 14 देशों ने हिस्सा लिया था.</p><p>इसके बाद फ़रवरी 2018 में मजीज़िया ने केरल में आयोजित बॉडी बिल्डिंग की प्रतियोगिता में मिस्टर केरल (फ़ीमेल) का ख़िताब अपने नाम किया, यहां भी वे हिजाब पहनकर ही पहुंची. </p><p>इसी साल कोच्चि में आयोजित महिलाओं की फ़िटनेस फिजीक प्रतियोगिता में भी उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया और स्वर्ण पदक अपने नाम किया.</p><p>अब मजीज़िया की नज़रें अक्टूबर महीने में तुर्की में होने वाली 40वीं आर्म रेसलिंग विश्व चैंपियनशिप में जीत दर्ज करने पर लगी हुई हैं. वर्ल्ड आर्म रेसलिंग फ़ेडरेशन की तरफ से आयोजित की जाने वाली यह <a href="http://www.waf-armwrestling.com/event/2018-world-armwrestling-para-armwrestling-championship/">प्रतियोगिता 12 अक्टूबर से 21 अक्टूबर</a> तक एंटालिया में आयोजित की जाएगी.</p><h1>आर्म रेसलिंग और बॉडी बिल्डिंग का शौक</h1><p>मजीज़िया को शुरुआत से ही ताकत वाले खेलों का शौक था. बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने बताया, ”मैं शुरू से ही ताकत वाले खेल खेलना चाहती थी, पहले मैं बॉक्सिंग करती थी, जिसमें मेरे पंच काफी अच्छे थे, फिर मेरे कोच ने मुझे कहा कि मेरी बाज़ुओं में काफी ताकत है तो मुझे बॉडी बिल्डिंग और आर्म रेसलिंग की तरफ ध्यान देना चाहिए. इसके बाद ही मैं इस तरफ फोकस हो गई.”</p><p>मजीज़िया कहती हैं कि उनके गांव में इस तरह के खेलों के लिए कोई सुविधाएं नहीं हैं. उन्हें कई किलोमीटर की यात्रा कर प्रैक्टिस के लिए जाना पड़ता था.</p><p>मजीज़िया अपने उस संघर्ष को याद करते हुए कहती हैं, ”मैं एक मिडिल क्लास फैमिली से आती हूं, हमारे पास इतने पैसे या सुविधाएं नहीं थी कि हम आर्म रेसलिंग या पावर लिफ्टिंग जैसे खेलों का खर्चा उठा पाते. इन खेलों में खान-पान पर बहुत ध्यान देना पड़ता है, ताकत पाने के लिए बहुत अच्छी डाइट की ज़रूरत पड़ती है, इसके अलावा प्रैक्टिस के लिए रोज ट्रेन से कई किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी.”</p><p>मजीज़िया को उनके माता पिता का बहुत अधिक साथ मिला, वे हर कदम में उनके साथ रहे साथ ही मजीज़िया के मंगेतर ने भी उन्हें पावर लिफ़्टिंग और आर्म रेसलिंग में आगे बढ़ने में सहयोग दिया.</p><p>अपने परिवार के योगदान और हिजाब पहनकर खेलने के बारे में मजीज़िया बताती हैं, ”मेरे अम्मी-अब्बा ने हर बात में मेरा समर्थन किया, मेरे मंगेतर इंजीनियर हैं, वे भी यही बोलते रहे कि मुझे इन खेलों में आगे बढ़ना चाहिए. जब मैंने शुरुआत में हिस्सा लिया तो लगा कि हिजाब निकालना पड़ेगा लेकिन मैंने खेल अधिकारियों से बात की और उन्होंने कहा कि मैं हिजाब पहनकर भी हिस्सा ले सकती हूं क्योंकि कई मुस्लिम बहुल देशों की लड़कियां इन खेलों में हिजाब के साथ ही हिस्सा लेती रही हैं.”</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44837622">जब रेस में कार को भी पछाड़ दिया था हिमा दास ने</a></li> </ul> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/social-44821046">हिमा की अंग्रेज़ी पर एएफ़आई को मांगनी पड़ी माफ़ी</a></li> </ul><h1>आज भी हैं चुनौतियां</h1><p>मजीज़िया बताती हैं कि जब मैं एशियन चैंपियनशिप में हिस्सा लेने जा रही थी तब बहुत से लड़कों ने मेरा मजाक बनाया था. उनका आरोप है कि उन्हें ताने मारे गए कि वो सिर्फ वक़्त बर्बाद करने वहां जा रही हैं. मजीज़िया अपनी जीत को याद करते हुए कहती हैं, ”जब मैंने खुद को साबित कर दिखाया तो सभी ने मेरा लोहा माना. </p><p>मजीज़िया अपनी मुश्किलों के बारे में खुलकर बताती हैं, ”हिजाब की वजह से कई बार मुझे स्पॉन्सर मिलने में मुश्किलें आती हैं. आर्म रेसलिंग को सरकार फंड नहीं देती, यह अलग-अलग संगठनों की तरफ से चलाया जाता है. ऐसे में जब मुझे विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए फंड की ज़रूरत थी तो एक स्थानीय कंपनी ने सिर्फ इसलिए स्पॉन्सरशिप वापिस ले ली क्योंकि मैं हिजाब पहनती हूं. उनका कहना था कि अगर वो मुझे प्रमोट करेंगे तो उनकी कंपनी का रेपुटेशन (इज्ज़त) कम हो जाएगी."</p><p>बाकी खेलों में भी मुस्लिम लड़कियां हिस्सा ले रही हैं और कामयाब हो रही हैं लेकिन वो तो हिजाब नहीं पहनती फिर मजीज़िया के लिए हिजाब इतना अहम क्यों है?</p><p>इस सवाल का जवाब वो कुछ इस अंदाज में देती हैं.</p><p>”मुझे मालूम है कि सानिया मिर्ज़ा टेनिस में बेहतरीन हैं और वो हिजाब भी नहीं पहनती लेकिन यह उनकी अपनी पर्सनल च्वाइस है, इसी तरह हिजाब पहनना मेरी पर्सनल च्वाइस है. अगर मैं खेल के किसी नियम को तोड़ रही हूं तो मुझे हिस्सा लेने से मना किया जा सकता है. पर हिजाब पहनने की वजह से नहीं”</p><h1>बाज़ू ढकने के बाद कैसे लेती हैं हिस्सा?</h1><p>भारत में आर्म रेसलिंग के दीवाने तो बहुत मिल जाते हैं लेकिन इसे आज भी सरकार की तरफ से मान्यता प्राप्त नहीं है. भारतीय आर्म रेसलिंग फ़ेडरेशन साल 1977 में शुरू हो गई थी. देश के अलग-अलग राज्यों में इसकी इकाइयां भी हैं लेकिन आज भी यह सरकारी कागजों में दर्ज़ होने का इंतज़ार कर रही है.</p><p>फ़ेडरेशन के महासचिव मनोज नायर ने बीबीसी को बताया, ”देश भर में हम ज़िला और राज्य स्तर की प्रतियोगिताएं आयोजित करवाते हैं, हाल ही में जून के महीने में हरियाणा में नेशनल चैंपियनशिप आयोजित करवाई गई.” </p><p>आर्म रेसलिंग की तरफ भारतीय महिलाओं के झुकाव के बारे में मनोज बताते हैं, ”महिला वर्ग में दो कैटेगरी बनाई जाती है जिसे ‘बालिका’ और ‘महिला’ वर्गों में बांटा गया है, कुल मिलाकर देश भर से करीब 100 से 150 लड़कियां आर्म रेसलिंग में हिस्सा लेती हैं.”</p><p>क्या हिजाब पहनकर कोई खिलाड़ी इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले सकती है, इस बारे में मनोज कहते हैं कि वैसे तो आर्म रेसलिंग में ड्रेस कोड के अनुसार खिलाड़ी को गोल गले की टीशर्ट के साथ अपनी बाज़ू दिखानी होती है लेकिन फिर भी किसी धर्म विशेष के पहनावे में कोई रोक नहीं है. </p><p>ऐसे में सवाल उठता है कि मजीज़िया कैसे हिजाब पहनकर आर्म रेसलिंग में हिस्सा ले पाती हैं और क्या वे खेल के नियमों का उल्लंघन नहीं करतीं. इस पर मजीज़िया बताती हैं, ”मैं दाएं हाथ से आर्म रेसलिंग करती हूं, जब मैं टूर्नामेंट में हिस्सा लेती हूं तो दाएं हाथ की बाज़ू को ऊपर उठा देती हूं, जिससे किसी को शक़ नहीं रहता कि मैंने हाथ में सपोर्ट के लिए कुछ पहना है.”</p><p>वर्ल्ड आर्म रेसलिंग फ़ेडरेशन की सदस्य देशों की सूची में पांच वर्ग बनाए गए हैं जिन्हें अफ़्रीका, एशिया, यूरोप, ओसेनिया, उत्तरी अमरीका और दक्षिणी अमरीका में बांटा गया है. इन<a href="http://www.waf-armwrestling.com/members/asia/"> वर्गों में से एशिया वर्ग </a>में कुल 22 देश शामिल हैं. </p><p>मनोज बताते हैं कि अभी वर्ल्ड आर्म रेसलिंग फ़ेडरेशन भी अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक एसोसिएशन से मान्यता प्राप्त करने की कोशिशें कर रहा है, हालांकि साल 2024 में होने वाले पैरालंपिक खेलों में आर्म रेसलिंग को जगह दी गई है, यह आर्म रेसलरों के लिए एक सुखद संदेश है.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44818076">धान के खेतों से निकली भारत की नई ‘उड़नपरी'</a></li> </ul> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-43690957">उत्तर कोरियाई मैराथन में कम क्यों पहुंचे विदेशी एथलीट?</a></li> </ul><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां 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हिजाब वाली लड़की जो पंजे से देती है पटखनी
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