<p>"राइजिंग कश्मीर अख़बार के संपादक शुजात बुखारी की हत्या, अज्ञात हमलावरों ने चलाई गोली".</p><p>गुरुवार शाम मिली ये ख़बर सिहरन भरने और जड़वत बना देने वाली थी. </p><p>सदमा सिर्फ़ इसलिए नहीं है क्योंकि ये हमारे बीच से एक पेशेवर सहयोगी का चले जाने या उनके परिवार, उनकी पत्नी और दो बच्चों के सिर से उनके पिता का साया उठ गया है. </p><p>बल्कि इसलिए भी है क्योंकि इसका मकसद उनकी आवाज़ को खामोश कर देना था. </p><h1>कश्मीर की आवाज़ थे बुखारी</h1><p>कश्मीर के लिए शुजात बुखारी एक अहम आवाज़ थे. वो एक बेहद काबिल पत्रकार थे. इसके साथ ही कश्मीर के संघर्ष पर गहरा काम और शांति स्थापना के लिए उन्होंने काफी कोशिशें की थीं. </p><p>एक पत्रकार के रूप में उन्होंने जो लिखा और जो कहा उसमें से ज़्यादातर हिस्सा शांति स्थापना की बात और अलग तरह से सोचने की वकालत करता था. उनकी हत्या बोलने की आज़ादी और प्रेस की आज़ादी पर भी एक हमला है. इस घटना ने शांति स्थापित करने की कोशिशों को भी कमज़ोर किया है.</p><p>इस जघन्य अपराध को उस वक्त अंजाम दिया गया है जब भारत सरकार की ओर से रमज़ान के महीने में शुरू किए गए एकतरफा संघर्ष विराम की मियाद ख़त्म होने जा रही है और इसे आगे बढ़ाए जाने के साथ-साथ शांति की कुछ पहल किए जाने की अपेक्षा की जा रही थी. </p><p>ये घटना उस दिन हुई है जब संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर में मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन और उसकी जांच की बात कहते हुए भारत और पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा किया है. </p><p>अभी यह कहना मुश्किल होगा कि इस हत्या की वजह क्या हैं? क्या उनकी साहसिक पत्रकारिता इसकी वजह थी? या फिर शांति स्थापित करने की उनकी कोशिशें एक वजह थी? या वो शांति के प्रयासों को विफल बनाने से जुड़ी बड़ी योजना में एक मोहरा बने?</p><h1>हमले से उपजे सवाल </h1><p>इफ़्तार से ठीक पहले शुजात बुखारी रेजिडेंसी रोड पर भीड़ भरे इलाके में अपने प्रेस एनक्लेव वाले ऑफिस से निकलकर अपनी गाड़ी में बैठने वाले थे तभी दो बाइक सवार उनके साथ-साथ उनके दो सुरक्षाकर्मियों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाना शुरू कर देते हैं. </p><p>इस घटना ने कई सवालों को जन्म दिया है. एक भीड़-भाड़ वाले इलाके में हमलवारों ने हत्या की साजिश को कैसे अंजाम दिया और वहां से आसानी से कैसे निकल गए? </p><p>आमतौर पर संघर्ष वाले क्षेत्र में गोलीबारी की आवाज़ सुनते ही सुरक्षा तंत्र सतर्क हो जाता है, लेकिन शुजात बुखारी की मौत के बाद कोई सतर्कता और त्वरित कार्रवाई नहीं दिखी. </p><p>कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक़, इस घटना के बाद बुखारी और उनके दो गार्डों को अस्पताल पहुंचाने में कुछ देरी की गई. इन सब वजहों के चलते एक निष्पक्ष जांच की ज़रूरत है. </p><p>लेकिन क्या एक निष्पक्ष जांच की जाएगी?</p><h1>कश्मीर में सच की मौत का इतिहास</h1><p>कश्मीर में ऐसे मामलों का अपना इतिहास है जिनमें हत्या सच की हुई है. विडंबना ये है शुजात बुखारी सच की तलाश करने वाले ऐसे ही एक सिपाही रहे हैं. </p><p>गुरुवार को शुजात उस हिंसा का शिकार हो गए जो कई लोगों के लिए कमाई का ज़रिया है. </p><p>संघर्ष एक ऐसी मशीनरी होती है जिसमें सरकारी और गैर-सरकारी तत्वों के हित छिपे हुए रहते हैं जो शांति की पहल की हल्की सी संभावनाओं को कुचलने के लिए एक कदम आगे जाते हैं. </p><p>शुजात की उनके काम की वजह से या किसी दूसरे उद्देश्य की वजह से हत्या कर दी गई. लेकिन ये हत्या शांति के दुश्मनों और बुलंद, तार्किक और समझदार आवाज़ों के दुश्मनों ने की है. </p><p>इस घटना ने कश्मीर में शांति की बात करने वालों और पत्रकार समुदाय के जोख़िम को सामने ला दिया है. </p><p>कश्मीर की जटिल समस्या पत्रकारों और शांतिदूतों के लिए अलग-अलग तरह की चुनौतियां सामने लाती है. पेशेवर मीडिया के लिए सरकार के दबाव और गैर-सरकारी तत्वों की धमकियों की बीच अपना काम करना बेहद मुश्किल है. </p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44487541">पत्रकार शुजात बुखारी के संदिग्ध हत्यारों की तस्वीर जारी</a></p><h1>पत्रकारों के चुनौती भरा था 90 का दशक</h1><p>90 के दशक में पत्रकारों के घरों और दफ़्तरों पर चरमपंथी समूहों के हमले और सुरक्षाबलों की ओर से होने वाला शोषण एक सामान्य सी बात हो गई थी. इससे बेहद कम समय में कश्मीर में पत्रकारिता का रंग बदल गया. </p><p>इसके अलावा कश्मीरी प्रेस ने सेंसरशिप का दंश भी झेला है. यही नहीं, कश्मीरी पत्रकारों पर एक पूर्व निश्चित रुख अख़्तियार रखने के लिए आर्थिक प्रतिबंधों का सहारा भी लिया गया. </p><p>ये घटना बीते तीन दशकों की कई दूसरी घटनाओं जैसी है. कश्मीर में पहली बड़ी हत्या 1990 में दूरदर्शन के स्टेशन डायरेक्टर लास्सा कौल की हुई थी. इस हत्या के बाद दूरदर्शन केंद्र से ख़बरों का प्रसारण कुछ समय के लिए रुक गया जो 1993 की गर्मियों में एक बार फिर शुरू हो सका. </p><p>इसी तरह अलसफा अख़बार के संपादक मोहम्मद शाबन वक़ील की साल 1991 में गोली मारकर हत्या कर दी गई. इनके अलावा एक संपादक गुलाम रसूल और दूरदर्शन संवाददाता सैय्यदेन की भी हत्या कर दी गई. </p><p>साल 2003 में एक स्थानीय न्यूज़ एजेंसी नाफा की संपादक की प्रेस एन्क्लेव श्रीनगर में ही हत्या कर दी गई. इसी जगह पर एएनआई फोटोग्राफ़र मुश्ताक़ अली की मौत हो गई जब एक पार्सल बम बीबीसी संवाददाता यूसुफ़ जमील के पास पहुंचा था. </p><p>मुश्ताक अली यूसुफ जमील के दफ़्तर में बैठकर लिफाफे को खोलकर देख रहे थे तभी बम धमाका हो गया. इस हमले में सरकार और चरमपंथियों की ओर से धमकी झेलने वाले यूसुफ जमील को भी काफी चोटें आईं और उन्हें एक साल तक वादी से बाहर रहना पड़ा. </p><p>एक साल बाद वरिष्ठ पत्रकार ज़फर मेराज, जो उस समय श्रीनगर में कश्मीर टाइम्स के ब्यूरो चीफ थे, को अज्ञात हमलावरों ने गोली मारी और गंभीर रूप से जख्मी कर दिया. इस हमले में उनकी जान बच गई. </p><p>इन सभी मामलों में जांच प्रक्रिया कभी भी एक तार्किक निष्कर्ष पर नहीं पहुंची. ऐसे में शुजात की हत्या किसने की और क्यों की जैसे सवाल रहस्य ही बने रहेंगे. </p><p>इससे भी ज़्यादा अहम ये बात है कि क्या कश्मीर में पत्रकार समुदाय ख़तरे में ही रहेगा. </p><p>अगर इस हत्या का मकसद शांति की प्रक्रिया को रोकना था तो क्या सरकार ऐसे तत्वों की दबाव में शांति के लिए की जाने वाली पहल और संघर्ष-विराम को आगे बढ़ाने से पीछे हटेगी. </p><p>(ये लेखिका के निजी विचार हैं)</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44490583">ईद के लिए गांव में हो रहा था शुजात बुखारी का इंतज़ार</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44494236">शुजात बुखारी की अंतिम यात्रा में उमड़ी भीड़</a></li> </ul><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi/">फ़ेसबुक</a><strong> और </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
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नज़रिया: पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या से उपजे कई सवाल
<p>"राइजिंग कश्मीर अख़बार के संपादक शुजात बुखारी की हत्या, अज्ञात हमलावरों ने चलाई गोली".</p><p>गुरुवार शाम मिली ये ख़बर सिहरन भरने और जड़वत बना देने वाली थी. </p><p>सदमा सिर्फ़ इसलिए नहीं है क्योंकि ये हमारे बीच से एक पेशेवर सहयोगी का चले जाने या उनके परिवार, उनकी पत्नी और दो बच्चों के सिर से उनके पिता […]
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