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वो मुस्लिम देश जहाँ हिजाब से होती है दिक्कत

<p>&quot;मिस्र की राजधानी काहिरा की तुलना में लंदन में हिजाब पहनना ज़्यादा आसान है.&quot;</p><p>ऐसा मानना है 47 साल की दालिया अनान का जो मूल रूप से मिस्र से वास्ता रखती हैं, लेकिन बीते दो सालों से लंदन में रह रही हैं.</p><p>दालिया पेशे से इंजीनियर हैं और लंदन में एक आईटी कंपनी के लिए काम करती […]

<p>&quot;मिस्र की राजधानी काहिरा की तुलना में लंदन में हिजाब पहनना ज़्यादा आसान है.&quot;</p><p>ऐसा मानना है 47 साल की दालिया अनान का जो मूल रूप से मिस्र से वास्ता रखती हैं, लेकिन बीते दो सालों से लंदन में रह रही हैं.</p><p>दालिया पेशे से इंजीनियर हैं और लंदन में एक आईटी कंपनी के लिए काम करती हैं. उनके बच्चे लंदन में ही पढ़ाई कर रहे हैं.</p><p>वो कहती हैं, &quot;मुझे लगता है कि मिस्र में हिजाब पहनने पर लोग आपके बारे में राय बनाने लगते हैं.&quot; हालांकि हर बार ऐसा हो, ये ज़रूरी नहीं है.</p><p>मिस्र एक मुस्लिम बहुल देश है और इसके बारे में ये माना जाता है कि यहां महिलाओं का हिजाब पहनना कोई नई बात नहीं है. लेकिन बीते कुछ सालों में माहौल तेज़ी से बदला है. ख़ास तौर से ऊपरी वर्ग की महिलाओं के लिए.</p><p>दालिया कहती हैं, &quot;मिस्र में, ख़ास तौर से उत्तरी तट से सटे इलाक़ों में अगर आप घूम रहे हैं और आपने हिजाब पहना हुआ है तो शाम को किसी भी पार्टी क्लब या रेस्त्रां में आपको दाखिल होने नहीं दिया जायेगा.&quot;</p><h1>पिछड़ेपन का प्रतीक?</h1><p>मिस्र के उत्तरी तट से सटे हुए इलाक़े को गर्मियों की छुट्टी में घूमने निकले यात्रियों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण माना जाता है. ईद के दौरान यहां की रौनक देखने लायक होती है.</p><p>दालिया पिछले साल इस इलाक़े की यात्रा पर गई थीं. वो कहती हैं कि हिजाब पहनने के कारण कई नामी रेस्त्रां वालों ने उन्हें प्रवेश देने से मना कर दिया था.</p><p>काहिरा में हिजाब पहनने वाली उच्च वर्ग की महिलाओं के लिए ये घटना इन दिनों आम है.</p><p>दालिया कहती हैं कि हिजाब को अब ग़रीब और निम्न वर्ग की महिलाओं से जोड़कर देखा जाने लगा है.</p><p>कनाडा में रहने वाली 23 साल की दीना हिशम की भी यही राय है. वो भी मिस्र से ही हैं. वो कहती हैं, &quot;मैंने कभी ये नहीं सोचा था कि मिस्र में किसी जगह जाने से पहले मुझे ये पता करना पड़ेगा कि वहां हिजाब पहनकर एंट्री मिलेगी या नहीं.&quot;</p><p>कई महिलाओं ने तो शिक़ायत की है कि उन्हें होटल में बुर्कीनी (पूरी शरीर को ढकने वाला स्वीमिंग सूट) पहनकर स्वीमिंग नहीं करने दी गई.</p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/sport-44474338">हिजाब पर सौम्या के समर्थन में मोहम्मद कैफ़ की दो टूक</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-42751414">हिजाब में तलवारबाज़ी करती मुस्लिम बालाएं</a></p><h1>हिजाब पर पाबंदी</h1><p>दीना टोरंटो में यॉर्क यूनिवर्सिटी की छात्रा हैं. वो कहती हैं, &quot;हिजाब के साथ दिक़्क़त ये है कि उसे वक़्त के साथ निम्न वर्ग के लोगों की पोशाक मान लिया गया है. ऐसे में जब आप हिजाब पहनकर किसी बड़ी और नामी जगह जाते हैं, जहाँ उच्च वर्ग के लोग आना पसंद करते हैं, वहां हिजाब वाली महिलाओं को दाख़िल होने से रोका जाता है.&quot;</p><p>मिस्र में उच्च वर्ग का किन्हें समझा जाता है? इसके जवाब में दीना कहती हैं, &quot; उच्च वर्ग के लोग वो हैं जिनके पास पैसा है, वो अंग्रेज़ी में बात करते हैं, अरबी कम से कम बोलते हैं और कथित तौर पर खुले दिमाग के होते हैं. यहां खुले दिमाग का होने से आशय है कि वो शराब पीते हैं और ऐसे कपड़े पहनते हैं जिनसे बदन दिखे.&quot;</p><p>ये रोक टोक सिर्फ़ महंगे होटलों और रेस्त्रां में है, ऐसा नहीं है. मिस्र में बहुत सी महिलाएं मानती हैं कि बड़े शहरों में ये दबाव बढ़ रहा है. ऐसी स्थिति में जो महिलाएं हिजाब पहनती हैं, उनके लिए हालात बदल रहे हैं.</p><p>इस कहानी के लिए जितनी भी महिलाओं से बात की गई, उनमें से उच्च वर्ग की ज़्यादातर महिलाएं हिजाब पहनना छोड़ चुकी हैं. और जो महिलाएं अभी भी हिजाब पहन रही हैं, उन्हें लगातार कई तरह के सवालों के जवाब देने पड़ रहे हैं.</p><p>खेल सामग्री बनाने वाली कंपनी नाइक की पहली हिजाबी मॉडल मनाल रोस्तम ने फ़ेसबुक पर हिजाब पहनने वाली महिलाओं का एक ग्रुप बनाया है. वो कहती हैं कि ये ‘एंटी हिजाब’ विचारों का दौर है.</p><p>मनाल इन दिनों दुबई में रहती हैं. उनके अनुसार, उनके सारे रिश्तेदार हिजाब पहनना छोड़ चुके हैं और वो मनाल पर भी ऐसा करने का दबाव बनाते हैं.</p><p>साल 2014 में शुरू हुए मनाल के फ़ेसबुक ग्रुप ‘सर्वाइविंग हिजाब’ के अब छह लाख से ज़्यादा सदस्य हैं.</p><p>मनाल कहती हैं कि इस ग्रुप को तो सफल होना ही था क्योंकि ऐसे एक ग्रुप की ज़रूरत थी.</p><p>&quot;हिजाब को लेकर जो दिक्कतें होती हैं, महिलाएं उनके बारे में बोलने से डरती हैं. ये समूह उन्हें बोलने और एकदूसरे के साथ सहयोग की सहूलियत देता है.&quot;</p><p>मनाल कहती हैं कि उन्हें उम्मीद है कि समाज वो मुकाम हासिल कर लेगा जहां इस बात से कोई फर्क नहीं होगा कि कोई हिजाब पहने हुए है या नहीं. </p><h1>#MyChoice</h1><p>इस अभियान की शुरुआत करने वालों में से एक 30 साल की हेबा मंसूर कहती हैं कि विदेश में रहने के बाद तीन साल पहले जब वो मिस्र आईं तो उन्हें एक ‘झटका’ सा लगा. </p><p>काहिरा की अमरीकन यूनिवर्सिटी में सीनियर प्रोग्रेसिव एडवाइज़र के तौर पर काम करने वाली हेबा कहती हैं, &quot;हिजाब की वजह से आपकी हंसी उड़ाई जाती है और आपको कमतर माना जाता है.&quot;</p><p>वो कहती हैं, &quot;ऐसे हालात मुझे इस पूरे अभियान के साथ मजबूती के साथ जोड़ते हैं.&quot;</p><p>रमजान के मुबारक महीने में #MyChoice हैशटैग से चलाए गए इस अभियान हिजाब पहनने वाली 19 महिलाओं की कहानियां बताई गईं. </p><p>हेबा ने बताया, &quot; ये अलग-अलग क्षेत्र में कामयाबी हासिल करने वाली महिलाएं हैं. इसके जरिए संदेश दिया गया है कि हिजाब एक बाधा नहीं है. दूसरी महिलाओं को बताया गया कि आप किस तरह दिखते हैं, इस आधार पर दूसरे को खुद के बारे में राय न बनाने दें.&quot;</p><p>वो कहती हैं, &quot;हम ये अभियान एक मकसद से चला रहे हैं, वो दूसरी महिलाओं को ये बताना है, ‘आप अकेली नहीं हैं’&quot; </p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-38127134">मैं हिजाब क्यों पहनती हूं?</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-42783196">विज्ञापन से बाहर हुईं ‘हिजाब मॉडल'</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-39806634">कैटवॉक में हिजाब से नाराज़ मुस्लिम महिलाएं</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-39058076">तुर्कीः महिला सैनिक पहन सकेंगी हिजाब</a></p><p>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए <a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a> करें. आप हमें <a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a> और <a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a> पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)</p>

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