"ब्रेस्टफ़ीडिंग को छोड़कर मैं अपने बच्चे के लिए हर वो चीज़ कर सकता हूं जो एक मां करती है."
हर मां की तरह ये ‘मां’ भी अपने बच्चे को उतना ही प्यार-दुलार करती है.
उसके लिए खाना बनाती है, उसे स्कूल के लिए तैयार करती है, उसे पढ़ाती है, उसके साथ खेलती है और उसे रात में सोने से पहले कहानी सुनाती है.
इस ‘मां’ का स्पर्श भी उतनी ही प्यार भरा है जितना किसी और मां का होता है.
लेकिन ये मां कोई महिला नहीं बल्कि एक पुरुष है.
‘मदर्स डे’ के मौके पर एक ऐसी ‘ख़ास मां’ की कहानी जो मां और बाप दोनों के किरदार में एक साथ है.
भावनाओं का समंदर…
दिल्ली में रहने वाले 39 साल के भास्कर पालित 6 साल के ईशान के पिता भी हैं और मां भी. 15 फरवरी 2014 को भास्कर अपनी पत्नी से अलग हो गए.
ईशान की उम्र उस वक्त महज़ दो साल थी. तब से वो भास्कर के हाथों में हैं.
भास्कर ने ईशान की मां की कमी बखूबी पूरी की है या ये कहें कि ईशान को कभी मां की कमी महसूस हुई ही नहीं, क्योंकि वही उसकी मां भी बन गए.
आज ईशान की पूरी दुनिया अपने बाबा (पिता) के ईर्द-गिर्द ही घूमती है. ईशान को जब कभी गिरने पर चोट लगती है तो उसके मुंह से मां नहीं बल्कि बाबा ही निकलता है.
भास्कर कहते हैं कि मां भावनाओं के समंदर का नाम है. जो भी बच्चे को उस समंदर में डुबो देता है वो उसकी मां बन जाता है.
वो कहते हैं कि मां की ममता को जेंडर के ढांचे में ढालकर नहीं देखना चाहिए.
कितनी मुश्किल ये जिम्मेदारी?
भास्कर कहते हैं कि जिस दिन उनका आशियाना उजड़ा, उस दिन उन्होंने ज़रूर ये सोचा था कि वो दो साल के बच्चे को कैसे अकेले संभालेंगे.
लेकिन उन्होंने जैसे ही अपनी गोद में बैठे ईशान की मुस्कुराहट को देखा, उनकी सारी चिंता और दुख छू मंतर हो गए.
उस दिन के बाद से उनके दिमाग में दोबारा ये ख़्याल कभी नहीं आया.
अब जब आप भास्कर और ईशान के घर में दाखिल होते हैं तो आपको वहां किसी औरत की कमी बिल्कुल नहीं खलती.
बल्कि उनके घर की हर दीवार आपके कानों में बाप-बेटे के खूबसूरत रिश्ते की कहानी कहती है.
‘सोशल लाइफ़ खत्म नहीं होती’
भास्कर कहते हैं कि एक सिंगल फादर बनने के बाद उनकी ज़िंदगी में कुछ बदलाव तो ज़रूर आए लेकिन उनकी सोशल लाइफ़ कभी खत्म नहीं हुई.
वो आज भी दोस्तों के साथ समय बिताते हैं. जब वो बाहर होते हैं तो राजू ईशान की देखरेख करते हैं. राजू भास्कर के घर में सहायक के तौर पर काम करते हैं.
भास्कर कहते हैं कि वो ईशान के बाबा होने के साथ-साथ उसके दोस्त भी हैं. दोनों साथ घूमने जाते हैं, पिक्चर देखते हैं, शॉपिंग करते हैं.
दोनों एक दूसरे को एडवाइस करते हैं किसपर कौन-सा हेयर कट अच्छा लगेगा. ईशान चेस खेलते हैं तो भास्कर उन्हें कंपनी देते हैं.
भास्कर की सिगरेट पीने की पंद्रह साल की आदत ईशान के कहने पर झटके में छूट गई.
भास्कर ईशान को मां की तरह दुलारते भी हैं और ज़रूरत पड़ने पर मीठी डांट भी लगाते हैं.
‘समाज ने स्टीरियोटाइप बना दिया है मर्द-औरत का रोल’
भास्कर कहते हैं, "हमारे समाज ने मर्द और औरत के किरदारों को स्टीरियोटाइप कर दिया है, कि एक औरत को किचन में और मर्द को बाहर होना चाहिए."
"साथ ही औरतें ही बच्चे संभालेंगी, हमें ऐसी सोच को बदलने की ज़रूरत है."
वो कहते हैं कि ईशान उन्हें घर के काम करते हुए, उसे संभालते हुए, खाने का मेन्यू डिसाइड करते हुए देखता है.
उन्हें उम्मीद है कि ईशान के बड़े होने के बाद उस पर इन बातों का गहरा असर रहेगा और वो जेंडर के आधार पर चीज़ों को स्टीरियोटाइप नहीं करेगा.
बाबा के हाथ का खाना
भास्कर को खाना बनाने का बहुत शौक है. वो ईशान को नए-नए तरह की डिश बनाकर खिलाते हैं.
वो कहते हैं कि मां के हाथ का खाना तो सब खाते हैं, कोई तो पिता के हाथ का खाना भी खाए!
भास्कर कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि जब कोई पिता अपने बच्चे को सीने से लगाकर कुछ बोलता है तो वो ममता से कुछ कम है, बस हमने उसका नाम ‘बापता’ या कुछ और नहीं दिया है.
भास्कर कहते हैं, "मैं चाहता हूं कि मदर्स डे और फादर्स डे का कॉन्सेप्ट एक दिन खत्म हो जाए. हम जेंडर स्टीरियोटाइपिंग से ऊपर उठें. कुछ मनाना ही है तो पैरेंट्स डे या फ्रेंड्स डे मनाएं."
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