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अब ‘अच्छे दिनों’ की बारी है

।। प्रमोद जोशी ।। वरिष्ठ पत्रकार वोटरों में साफ नजर आती है ‘पहचान की राजनीति’ से बाहर निकलने की छटपटाहट भाजपा की यह जीत नकारात्मक कम सकारात्मक ज्यादा है. दस साल के यूपीए शासन की एंटी इनकम्बैंसी होनी ही थी. पर यह जीत है, किसी की पराजय नहीं. कंग्रेस जरूर हारी, पर विकल्प में क्षेत्रीय […]

।। प्रमोद जोशी ।।

वरिष्ठ पत्रकार

वोटरों में साफ नजर आती है ‘पहचान की राजनीति’ से बाहर निकलने की छटपटाहट

भाजपा की यह जीत नकारात्मक कम सकारात्मक ज्यादा है. दस साल के यूपीए शासन की एंटी इनकम्बैंसी होनी ही थी. पर यह जीत है, किसी की पराजय नहीं. कंग्रेस जरूर हारी, पर विकल्प में क्षेत्रीय पार्टियों का उभार नहीं हुआ. नरेंद्र मोदी ने नये भारत का सपना दिखाया है. यह सपना युवा-भारत की मनोभावना से जुड़ा है. यह तख्ता पलट नहीं है. यह उम्मीदों की सुबह है. इसके अंतर में जनता की आशाओं के अंकुर हैं. वोटर को नरेंद्र मोदी के इस नारे को पास किया है कि ‘अच्छे दिन आने वाले हैं.’

अब यह मोदी की जिम्मेदारी है कि वे अच्छे दिन लेकर आएं. उनकी लहर थी या नहीं थी, इसे लेकर कई धारणाएं हैं. पर, देश भर के वोटर के मन में कुछ न कुछ जरूर कुछ था. यह मनोभावना पूरे देश में थी.

देश की जनता पॉलिसी पैरेलिसिस और नाकारा नेतृत्व को लेकर नाराज थी. उसे नरेंद्र मोदी के रूप में एक कड़क और कारगर नेता नजर आया. ऐसा न होता तो तीस साल बाद देश के मतदाता ने किसी एक पार्टी को साफ बहुमत नहीं दिया होता. यह मोदी मोमेंट है. उन्होंने वोटर से कहा, ये दिल मांगे मोर और जनता ने कहा, आमीन. देश के संघीय ढांचे में क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पंख देने में भी नरेंद्र मोदी की भूमिका है. एक अरसे बाद एक क्षेत्रीय क्षत्रप प्रधानमंत्री बनने वाला है.

इस चुनाव के दो-तीन बुनियादी संदेश और कुछ चुनौतियां हैं जो नरेंद्र मोदी से रू-ब-रू हैं. पहला संदेश यह कि देश वास्तव में जाति और संप्रदाय की राजनीति से बाहर आना चाहता है.

बेशक, जाति और संप्रदाय के जुमले इस चुनाव पर भी हावी थे, पर जनादेश देखें तो उसमें ‘पहचान की राजनीति’ से बाहर निकलने की वोटर की छटपटाहट साफ नजर आती है. उत्तर प्रदेश में मायावती और मुलायम सिंह की राजनीति की हवा ही नहीं निकली, चौधरी अजित सिंह के रालोद का भी सफाया हो गया. इसके पीछे मुजफ्फरनगर के दंगों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. नरेंद्र मोदी ने भी सोशल इंजीनियरी का सहारा लिया और चुनाव के अंतिम दिनों में अपनी जाति को लेकर बयान दिये. पर, प्रकट रूप से संकीर्ण नारों का सहारा लेने के बजाय, उन्होंने गवर्नेस पर जोर दिया. संघ परिवार से जुड़े कुछ नेताओं के जहरीले बयानों पर हालांकि पार्टी ने कोई औपचारिक कार्रवाई नहीं की, पर अंदरूनी तौर पर इस किस्म के बयानों को रोका गया.

भारतीय जनता पार्टी पहली बार पैन इंडियन पार्टी (अखिल भारतीय पार्टी) के रूप में नजर आ रही है. हालांकि उसे केरल में सीट नहीं मिली है, पर वहां उसने पैर पसारे हैं. दूसरी ओर उन्होंने तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बंगाल, ओड़िशा और असम तक में अपनी उपिस्थति दर्ज करायी. गुजरात और राजस्थान में सूपड़ा साफ किया और महाराष्ट्र में कांग्रेस की चूलें हिला दीं. उत्तर भारत में केवल पंजाब में एनडीए को धक्का लगा है, जिसका सबसे बड़ा कारण अकाली दल के खिलाफ एंटी इनकम्बैंसी थी, जिससे पिछले विधानसभा चुनाव में तो पार पा लिया गया, पर इस बार उसे रोका नहीं जा सका.

इस जीत के बाद नरेंद्र मोदी के सामने तमाम चुनौतियां हैं. इनमें राजनीतिक, प्रशासनिक और आर्थिक चुनौतियां शामिल हैं. चुनाव परिणाम आने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रि या में पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने नरेंद्र मोदी को न तो बधाई दी और न उन्हें जीत का खुले शब्दों में श्रेय दिया.

इसी प्रकार की प्रतिक्रि या सुषमा स्वराज की थी. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का एक तबका उनके लिए चुनौती खड़ी करेगा. एग्जिट पोल के परिणाम सामने आने के बाद से पूछा जा रहा था कि आडवाणी जी को क्या पद मिलेगा? मोदी पर केवल कांग्रेस के हमले ही नहीं होंगे. भीतर के प्रहार भी होंगे. भाजपा को ‘पार्टी विद अ डिफरेंस’ कहा जाता था. पिछले साल से उसे ‘पार्टी विद डिफरेंसेज’ या ‘भारतीय झगड़ा पार्टी’ कहा जाने लगा है. दूसरी चुनौती है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ. जीत हासिल करने के बाद नरेंद्र मोदी का कद बढ़ा है. क्या वे अपनी सरकार बनाने और चलाने का काम स्वतंत्रता पूर्वक कर पायेंगे?

इस साल मॉनसून कमजोर होने की संभावना है. हालांकि दो रोज पहले की खबर है कि मॉनसून उतना विलंब से नहीं आ रहा, जितना अंदेशा था. नयी सरकार को सबसे पहले महंगाई के मोरचे पर कुछ करना होगा. हमारे यहां मौसम का महंगाई से गहरा रिश्ता है. नयी सरकार के पास इस साल के बजट में कुछ क्रांतिकारी काम करने का मौका नहीं है. शायद जून में बजट आयेगा. नयी सरकार मंत्रालयों की संरचना में बड़ा बदलाव करना चाहती है. क्या यह काम फौरन होगा? नरेंद्र मोदी के साथ वरिष्ठ नौकरशाहों का सलाहकार मंडल है.

काम का खाका पहले से बना कर रखा गया है. सरकार के पास लोकसभा में बहुमत है, पर राज्यसभा में वह अल्पमत है. सरकार को नये कानून बनाने के लिए कांग्रेस की मदद लेनी होगी. देश में बड़े स्तर पर रोजगारों का सृजन करने के लिए भारी पूंजी निवेश की जरूरत होगी. मोदी सरकार की आहट आने के साथ ही रु पये की कीमत बढ़ने लगी है. इससे पेट्रोलियम की कीमत पर असर पड़ेगा भुगतान संतुलन में देश की स्थिति बेहतर होगी. अच्छी बात यह है कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत हैं.

मोदी के सामने एक बड़ी चुनौती विदेश नीति के बाबत है. आमतौर पर विदेश नीति के मामले में बड़े बदलाव नहीं होते हैं. खासतौर से पाकिस्तान के साथ रिश्तों को लेकर उनसे बड़ी अपेक्षाएं की जा रहीं हैं. हाल में उन्होंने मीडिया के साथ बातचीत में कहा है कि हम पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते बना कर रखना चाहेंगे. वस्तुत: मोदी सरकार की परीक्षा नीतियों से ज्यादा उसके प्रशासन को लेकर होगी. उनकी छवि कड़क नेता की है. जनता को कड़क सरकार चाहिए, जो उसकी परेशानियां दूर करे.

सिर्फ सत्ता नहीं,युग बदला है

तरुण विजय, राज्यसभा सांसद, भाजपा

यह कहना भी कम लगता है कि इतिहास रचा गया. वास्तव में ऐसा लगता है कि 1857 की भारतीय फौज 157 साल बाद जीती और अंगरेजों की काली छाया से मुक्ति मिली. यह केवल सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि राजनीतिक-शैली, छंद और भाषा का परिवर्तन है. भ्रष्टाचार और अहंकार की राजनीति के विरुद्ध दशकों से जनता के मन में जो गुस्सा ठहरा हुआ था, वह मोदी पर भरोसा करके फट पड़ा. यह जन-विद्रोह का चरम है, जिसने संविधान के ढांचे में लोकतंत्र की मर्यादा रखी और अंतत: देश पर बोझ बने नेहरू -गांधी परिवार की जमींदारी को उजाड़ फेंका.

इन लोगों ने देश और जनता को अपने पिछवाड़े की फसल समझ लिया था. बस मीडिया मैनेज कर लो, पैसा फेंक दो, विज्ञापन दे दो, तो सभी खुश हो जायेंगे. कांग्रेस का अहंकार तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अपमान में भी झलका. छोटे से राजकुमार ने उनका हर बार अपमान किया. भ्रष्टाचार पर खामोशी रखी, सत्ता के दो केंद्र बनाये, अपने लोगों के गलत कामों को नजरअंदाज कर दिया, विपक्षी पर व्यक्तिगत आघात किये, गालियों और चरित्र हनन की राजनीति की. नतीजा क्या निकला? जनता ने जो फैसला सुनाया, यदि अब भी वे उससे सबक नहीं सीखेंगे, तो ईश्वर भी उनकी रक्षा नहीं कर पायेगा.

मोदी रूस के पुतिन, अमेरिका के ओबामा और चीन के शिनजिनपिंग से बड़े अंतरराष्ट्रीय महत्व के नेता बनेंगे. न केवल राष्ट्रीय परिदृश्य में बदलाव आयेगा और सेना, सरहद तथा सामान्य जन की रक्षा और सम्मान बढ़ेगा, बल्कि सबसे पहली वरीयता होगी अर्थव्यवस्था को सुधारना व रुपये की कीमत को मजबूत बनाना. सकल घरेलू उत्पाद की दर को आठ प्रतिशत तक पहुंचाने का कठिन काम सामने है. देश के निर्माण सेक्टर की स्थिति बेहद नाजुक है. छोटे-बड़े उपकरण चीन से आयात करने पड़ रहे हैं.

इसलिए इस सेक्टर को मजबूत बनाने की बड़ी जिम्मेवारी है. शिक्षा के क्षेत्र में सामान्य जन की पहुंच को सुगम बनाना और श्रेष्ठता के मानक स्थापित करना अगर एक चुनौती है, तो उतनी ही बड़ी चुनौती है कृषि क्षेत्र में किसान को उपज का बेहतर मूल्य दिलवाना तथा सिंचाई के साधन सब जगह पहुंचाना. पेयजल हो या ग्रामीण विद्युतीकरण, सड़कें या रेलमार्ग, एक प्रकार से मोदी को पूरे देश का ही नवनिर्माण करने के काम में जुटना पड़ेगा.

हर प्रकार के आघात और झूठ का नरेंद्र मोदी के विरुद्ध इस्तेमाल किया गया, लेकिन अंतत: जन भावनाओं की विजय हुई और मोदी दुनिया के तमाम लोगों को आश्चर्यचकित करते हुए एक ऐसे नायक के रूप में उभरे, जिनके उभार से भारतवर्ष पृथ्वी पर शक्तिशाली एवं स्वाभिमानी राष्ट्र के रूप में उभर कर आयेगा.

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