बीते 26 अप्रैल को सत्तर-अस्सी के दशक की मशहूर अदाकारा मौसमी चटर्जी का 66वां जन्म दिन था. कुछेक समाचार माध्यमों में इस मौके पर उनके अभिनय और फिल्मी सफर का जिक्र सुकूनदेय था, क्योंकि चुनाव के मौसम में बीते वक्त के कलाकारों का जन्मदिन याद रखने की फुरसत किसे. बहरहाल, इस फेहरिस्त में एक शीर्षक ने खास तौर पर ध्यान खींचा -‘रोने के लिए ग्लिसरीन की जरूरत नहीं थी मौसमी को’. जाहिर है मौसमी चटर्जी बेहद उम्दा अदाकारा रही हैं और आज भी बरस दो बरस में छोटी सी भूमिका के जरिये भी वह अपने प्रसंशकों के इस यकीन को और मजबूत कर जाती हैं. वैसे मेरे जैसे कई दर्शक हो सकते हैं शायद, जिन्हें मौसमी चटर्जी का सिर्फ और सिर्फ हंसता हुआ चेहरा ही याद हो. एक खास किस्म की मुस्कुराहट कहें या इस मुस्कुराहट को खास बनाता उनका एक उभरा हुआ दांत, औरों से अलहदा कहीं कोई आकर्षण तो है मौसमी की मुस्कुराहट में. संभव है इसके पीछे वह सहजता हो जिसके चलते उन्हें आंसुओं के लिए ग्लिसरीन नहीं लगना पड़ा. कुछ इसी तरह स्वाभाविक मुस्कुराहट उनके चेहरे पर रहती है और आज भी उसके प्रति दर्शकों का आकर्षण कायम है. मौसमी की मुस्कुराहट का एक सिरा ‘अंगूर’ में भी मिलता है, जिसके निर्देशक गुलजार साहब को हाल ही में दादा साहेब फालके अवार्ड से नवाजा गया है. हालांकि यह फिल्म पूरी तरह से अभिनेता संजीव कुमार और देवेन वर्मा के नाम दर्ज रही है, लेकिन इसकी मीठी मुस्कान में मौसमी की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता.
मौसमी चटर्जी ने अभिनय की शुरुआत बांग्ला फिल्मों से की. वह स्कूल में पढ़ती थीं जब बांग्ला फिल्मकार तरुण मजूमदार ने उनके पिता से बात कर उन्हें अपनी फिल्म ‘बालिकाबधु’ में काम करने के लिए राजी कर लिया. इसके बाद उन्होंने बांग्ला फिल्म ‘परिणीता’ में काम किया. इसी दौरान महज 16 साल की उम्र में उनकी संगीतकार हेमंत कुमार के बेटे जयंत मुखर्जी से शादी हो गयी और वह मुंबई आ गयीं.
कैरियर की शुरुआत में ही कोई अदाकारा शादी कर ले, इससे पता चलता है कि उसकी पहली प्राथमिकता परिवार है और अभिनय का स्थान उसके बाद आता है. हालांकि ससुर हेमंत कुमार मौसमी की प्रतिभा से वाकिफ थे, इसलिए उन्होंने अपनी बहू को अभिनय जारी रखने की सलाह दी. एक साक्षात्कार में मौसमी कहती भी हैं-‘अपने कैरियर के प्रति मैं कभी गंभीर नहीं थी. मैंने कभी कोई जनसंपर्क अधिकारी नहीं रखा जो मुङो काम दिला सके. पति के साथ समय बिताने के लिए अक्सर तय समय पर शूटिंग के लिए नहीं पहुंच पाती थी. कई बार तो जाती ही नहीं थी. मैं फिल्म उद्योग और अपने सहयोगियों व शुभचिंतकों की आभारी हूं कि वह मुङो बिना मांगे ही काम देते रहे.’
1972 में शक्ति सामंत की फिल्म ‘अनुराग’ से मौसमी ने हिंदी फिल्मों में अभिनय शुरू किया और पहली ही फिल्म में उन्हें फिल्मफेयर के बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड के लिए नामित किया गया. इसके बाद उन्होंने उस दौर के लगभग सभी प्रमुख अभिनेताओं राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, शशि कपूर, जीतेंद्र, विनोद मेहरा और संजीव कुमार के साथ काम किया.
इस क्रम में मौसमी चटर्जी अभिनीत ‘रोटी, कपड़ा और मकान’, ‘बेनाम’,‘हमशक्ल’,‘उधार की जिंदगी’,‘मंजिल’,‘जहरीले इंसान’, ‘सबसे बड़ा रुपइया’ और ‘स्वयंवर’ जैसी फिल्मों को याद करना जरूरी हो जाता है. बांग्ला सिने आर्टिस्ट के लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजी जा चुकी मौसमी भले ही स्वयं को कैरियर के प्रति लापरवाह मानती हों, लेकिन अपर्णा सेन निर्देशित बांग्ला फिल्में ‘द जैपनीज वाइफ’ और हाल ही में प्रदर्शित हुई ‘गोयनार बक्शो’ अभिनय के प्रति उनकी गंभीरता को जाहिर करती हैं, जिनमें वह सहायक अभिनेत्री के तौर पर भी प्रभावित करती हैं. बहरहाल वह कोलकाता में रहती हैं, और मनपसंद भूमिकाएं मिलने पर अभिनय का सफर जारी रखने का इरादा रखती हैं. उनके प्रसंशकों को भी इस बात का इंतजार रहेगा.
प्रीति सिंह परिहार