23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

काव दुनिया के टॉप पांच खुफिया प्रमुखों में थे

-10 को है रामेश्वरनाथ काव का जन्मदिन- चुनावी मौसम के बीच रॉ के पूर्व अधिकारी आरके यादव एक अलग तरह की किताब ‘मिशन रॉ’ लेकर आये हैं. हथियारों के सौदों में नेताओं की भूमिका से लेकर भारत के इतिहास और वर्तमान को प्रभावित करने वाली कई घटनाओं पर रोशनी डालती है यह किताब. एक महीने […]

-10 को है रामेश्वरनाथ काव का जन्मदिन-

चुनावी मौसम के बीच रॉ के पूर्व अधिकारी आरके यादव एक अलग तरह की किताब ‘मिशन रॉ’ लेकर आये हैं. हथियारों के सौदों में नेताओं की भूमिका से लेकर भारत के इतिहास और वर्तमान को प्रभावित करने वाली कई घटनाओं पर रोशनी डालती है यह किताब. एक महीने में ही बेस्ट सेलर हो चुकी इस किताब में रामेश्वरनाथ काव का खास तौर पर जिक्र है. यादव व अन्य पूर्व रॉ अफसरों से बात करके काव के बारे में यह विशेष रिपोर्ट लिखी है रेहान फजल ने.

1996 में पूरे भारत में बांग्लादेश के जन्म की 25वीं सालगिरह का जश्न मनाया जा रहा था. इस अवसर पर कई बैठकें आयोजित की गयी थीं. एक बैठक में एक बांग्लादेशी पत्रकार ने हॉल की पिछली सीट पर एक लंबे, स्मार्ट और आकर्षक शख्स को देखा. वह उनके पास आ कर बोला, ‘सर, आपको तो वहां मंच पर बीच में होना चाहिए. आप ही की वजह से तो 1971 संभव हो सका.’ उस आकर्षक और शर्मीले इनसान ने जवाब दिया, ‘जी नहीं, मैंने कुछ नहीं किया. मंच पर बैठे लोगों की तारीफ होनी चाहिए.’

पहचान लिये जाने से परेशान वह शख्स अपनी जगह से उठा और चुपचाप निकल गया. इस शख्स का नाम था रामेश्वरनाथ काव- भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) के जन्मदाता. 1982 में फ्रांस की बाहरी खुफिया एजेंसी एसडीइसीइ के प्रमुख काउंट एलेक्जांड्रे द मेरेंचे से जब कहा गया था कि वो सत्तर के दशक के दुनिया के पांच सर्वश्रेष्ठ खुफिया प्रमुखों के नाम बताएं, तो उन्होंने काव का नाम भी लिया था. तब उन्होंने काव के बारे में कहा था, ‘शारीरिक और मानसिक सुघड़पन का अद्भुत सम्मिश्रण है यह इनसान! इसके बावजूद अपने बारे में, अपने दोस्तों के बारे में और अपनी उपलब्धियों के बारे में बात करने में इतना शर्मीला!’

आइपीएस अधिकारी: रामेश्वरनाथ काव का जन्म 10 मई, 1918 को वाराणसी में हुआ था. 1940 में उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा जिसे उस जमाने मे आइपी कहा जाता था, की परीक्षा उत्तीर्ण की और उन्हें उत्तर प्रदेश काडर दिया गया. 1948 में जब इंटेलिजेंस ब्यूरो (आइबी) की स्थापना हुई तो उन्हें उसका सहायक निदेशक बनाया गया और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गयी. अपने करियर की शुरु आत में ही उन्हें एक बहुत बारीक खुफिया ऑपरेशन करने का मौका मिला. 1955 में चीन सरकार ने एयर इंडिया का एक विमान ‘कश्मीर प्रिंसेज’ चार्टर किया जो हांगकांग से जकार्ता के लिए उड़ान भरने वाला था और जिसमें बैठ कर चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई बांडुंग सम्मेलन में भाग लेने जाने वाले थे. लेकिन अंतिम मौके पर एपेंडेसाइटिस का दर्द उठने के कारण उन्होंने अपनी यात्र रद्द कर दी थी. वह विमान इंडोनेशिया के तट के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और उसमें बैठे अधिकतर चीनी अधिकारी व पत्रकार मारे गये थे. काव को इस दुर्घटना की जांच की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी. काव ने पता लगाया था कि इस दुर्घटना के पीछे ताइवान की खुफिया एजेंसी का हाथ था. काव को नजदीक से जाननेवाले आरके यादव बताते हैं कि चाउ एन लाई उनकी जांच से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने काव को अपने दफ्तर बुलाया और यादगार के तौर पर उन्हें अपनी निजी मुहर भेंट की. जो अंत तक काव की मेज की शोभा बनी रही.

रॉ की शुरु आत : 1968 में इंदिरा गांधी ने सीआइए और एमआइ 6 की तर्ज पर भारत में भी देश के बाहर के खुफिया मामलों के लिए एक एजेंसी ‘रॉ’ बनाने का फैसला किया और काव को इसका पहला निदेशक बनाया गया. रॉ ने अपनी उपयोगिता 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में सिद्ध कर दी. काव और उनके साथियों की देखरेख में मुक्तिवाहिनी के एक लाख से अधिक जवानों को भारत में प्रशिक्षण दिया गया. काव का खुफिया तंत्र इतना मजबूत था कि उन्हें इस बात तक की जानकारी थी कि किस दिन पाकिस्तान भारत पर हमला करने वाला है.

रॉ के पूर्व निदेशक और काव के नजदीकी आनंद कुमार वर्मा कहते हैं, ‘याहिया खां के दफ्तर के हमारे एक सोर्स ने हमें पुख्ता जानकारी दे दी थी कि किस दिन हमला होने वाला है. ये सूचना वायरलेस के जरिये आयी थी. जब कोडेड सूचना को डिसाइफर किया गया तो गलती से तय तारीख से दो दिन पहले की सूचना दे दी गयी. वायुसेना को तैयार रहने के लिए कहा गया. दो दिन तक कुछ नहीं हुआ. ये लोग हाई अलर्ट पर थे. तब वायुसेनाध्यक्ष ने काव साहब से कहा कि इतने दिनों तक वायुसैनिकों को हाई अलर्ट पर नहीं रखा जा सकता. काव ने जवाब दिया, एक दिन और रु क जाइए. 3 दिसंबर को पाकिस्तान ने हमला किया और भारतीय वायुसेना उस हमले के लिए पूरी तरह से तैयार थी.’

सिक्किम विलय की योजना : भारत में सिक्किम के विलय में भी काव की जबरदस्त भूमिका रही. उन्होंने इस काम को महज चार अफसरों के सहयोग से अंजाम दिया. इस पूरे मिशन में इतनी गोपनीयता बरती गयी कि उनके नंबर दो शंकरन नायर को भी इसके बारे में कुछ पता नहीं था. आरके यादव कहते हैं, ‘उस समय इंदिरा गांधी इस क्षेत्र की निर्विवाद नेता बन चुकी थीं. बांग्लादेश की लड़ाई के बाद उनमें इतना आत्मविश्वास आ गया था कि वह सोचती थीं कि आसपास की समस्याओं को सुलझाने का जिम्मा उनका है. सिक्किम समस्या की शुरु आत तब हुई जब चोग्याल ने एक अमेरिकी महिला से शादी कर ली थी और सीआइए का थोड़ा बहुत हस्तक्षेप वहां शुरू हो गया था. काव साहब ने इंदिरा गांधी को सुझाव दिया कि सिक्किम का भारत के साथ विलय कराया जा सकता है. यह एक तरह से रक्तविहीन तख्तापलट था और इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी बात यह थी कि यह चीन की नाक के नीचे हुआ था. चीन की सेनाएं सीमा पर थीं, लेकिन इंदिरा गांधी ने चीन की कोई परवाह नहीं की. काव को ही श्रेय जाता है कि उन्होंने 3000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र का भारत में विलय कराया और सिक्किम भारत का 22वां राज्य बना.’ इंदिरा गांधी की सुरक्षा की जिम्मेदारी काव के ही पास थी.

बेस्ट ड्रेस्ड मैन : काव को बेहतरीन कपड़े पहनने का शौक था. आरके यादव कहते हैं, ‘मैंने उनको रिटायरमेंट के बाद भी हमेशा सूट-टाई में देखा. लेकिन कभी-कभी वह कुर्ता भी पहनते थे. खादी का. पोशाक उन पर फबती भी थी, क्योंकि उनका शरीर ऐसा था. पेट अंदर की तरफ और डीलडौल एथलीट जैसा. वह जब युवा थे, तब से ही घोड़ा रखते थे. वह मुझसे कहा करते थे कि मेरी तनख्वाह का आधा हिस्सा तो घोड़े को खिलाने में चला जाता है. उनके शानदार कपड़े पहनने की वजह से कुछ अफसरों को उनसे रश्क भी होता था. इसमें कोई संदेह नहीं कि ही वाज द बेस्ट ड्रेस्ड मैन.’

रॉ के पूर्व अतिरिक्त निदेशक राणा बनर्जी बताते हैं, ‘वह एक खास किस्म की बनियान पहनते थे. जाली वाली बनियान होती थी और उसकी आस्तीन में भी जाली होती थी. ये बनियान सिर्फ कलकत्ते (अब कोलकाता) की गोपाल होजरी में बना करती थी. लेकिन फिर यह कंपनी बंद हो गयी. लेकिन इसके बावजूद वो काव साब के लिए अलग से साल भर में जितनी उनकी जरूरत थी दस या बारह बनियान, वो उनके लिए बनाया करते थे. जब मेरी कलकत्ते में पोस्टिंग हुई, तो मेरे सीनियर ने मुझसे कहा कि अब ये तुम्हारी जिम्मेदारी है कि काव साहब के पास गोपाल होजरी से बनियानें पहुंचती रहें. एक बार काव साहब का फोन आया तो मैंने कहा कि मैंने बनियानें भिजवा दी हैं. इससे पहले कि वो बनियानें उन तक पहुंच पातीं, उनका दाम 25 रुपये मेरे पास पहुंच गए थे. इतना ध्यान रखते थे वो चीजों का.’

जनता सरकार की जांच : 1977 में जब इंदिरा गांधी चुनाव हार गयीं और मोरारजी देसाई सत्ता में आये, तो उन्हें इस बात का भ्रम हो गया कि आपातकाल की ज्यादतियों में काव साहब का भी हाथ था. उन्होंने यह बात काव से खुल कर कही भी. काव ने इन आरोपों का खंडन किया और कहा कि आप इसकी जांच करवा सकते हैं. इसके बाद एक एसपी सिंह कमेटी बिठायी गयी इसके लिए. उस कमेटी ने छह महीने के अंदर रिपोर्ट दी थी. उसने न सिर्फ रॉ को बेदाग बताया, बल्कियह भी कहा कि इमरजेंसी से काव का कोई लेन-देना नहीं था.

काव की दरियादिली : ज्योति सिन्हा रॉ के अतिरिक्त सचिव रह चुके हैं. वह कहते हैं, ‘क्या उनका सॉफिस्टिकेशन था, बात करने का ढंग था! वो किसी से कोई ऐसी चीज नहीं कहते थे जो उसे दुख पहुंचाये. उनका एक जुमला मुङो बहुत अच्छा लगता था. वो कहा करते थे.. अगर कोई तुम्हारा विरोध करता है तो उसे जहर दे कर क्यों मारना है.. क्यों न उसे खूब शहद दे कर मारा जाये. कहने का मतलब यह था कि क्यों न उसे मीठे तरीके से अपनी तरफ ले आया जाये. हम लोग उस जमाने में युवा थे और हम सभी उन्हें हीरो वर्शिप किया करते थे.’

विदेशी खुफिया प्रमुखों के साथ काव के निजी संबंधों से भारत को कितना फायदा हुआ, इसकी जानकारी शायद ही लोगों को कभी हो पाये. एक बार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और सीआइए के प्रमुख रह चुके जार्ज बुश सीनियर ने उन्हें अमेरिकी ‘काऊ ब्वॉय’ की छोटी सी मूर्ति भेंट में दी थी. बाद में जब उनके अनुयायियों को ‘काव ब्वॉएज’ कहा जाने लगा, तो उन्होंने उस मूर्ति का फाइबर ग्लास प्रतिरूप बनवा कर रॉ के मुख्यालय के स्वागत कक्ष में लगवाया था.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें